क्या प्रदेश कर्ज के चक्रव्यूह में फंसने जा रहा है

Created on Tuesday, 22 September 2020 09:22
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या प्रदेश कर्ज के चक्रव्यूह की ओर बढ़ रहा है? यह सवाल उठाना इसलिये प्रसांगिक हो जाता है क्योंकि हिमाचल प्रदेश भी उन राज्यों में शामिल है जिन्होंने केन्द्र द्वारा जीएसटी की क्षतिपूर्ति करने में असमर्थता दिखाने पर कर्ज लेने की सलाह को स्वीकार कर लिया है। हिमाचल की आर्थिक स्थिति यह है कि इसके कुल बजट का करीब 67% से प्राप्त होता है। राज्य के अपने संसाधनों से केवल 33% की ही उपलब्धता रह पाती हैै। कैग की वर्ष 2018- 19 की विधानसभा मेें रखी गयी रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्रिय करों और शुल्कों का राज्यांश 18% और भारत सरकार से सहायतानुदान 49% मिला है। वर्ष 2020-21 का राज्य का कुल बजट 49 हज़ार करोड़ का है। इसके मुताबिक करीब 32 हज़ार करोड़ के लिये प्रदेश केन्द्र पर निर्भर रहेगा। ऐसे में जब केन्द्र राज्यों को उनका जीएसटी का हिस्सा देने में ही असमर्थता दिखा चुका है तो क्या उससे 67% की यह सहायता मिल पायेगी? क्या इस क्षतिपूर्ति के लिये राज्य सरकार ऋण उठायेगी और वह एफआरवीएम के मानकों के भीतर रह पायेगा यह एक बड़ा सवाल इस समय प्रदेश के समाने खड़ा है। लेकिन विडम्बना यह है कि इस सवाल पर विधानसभा के इस सत्र में कोई चर्चा नही हो पायी है।
मुख्यमन्त्री प्रदेश के वित्तमन्त्री भी हैं और पिछले दिनों यह कहा जाता रहा है कि प्रदेश सरकार के पास 12000 करोड़ की राशी अप्रयुक्त (Unspent) पड़ी हुई है। बल्कि इसके लिये जलशक्ति मन्त्री मेहन्द्र सिंह की अध्यक्षता में मन्त्रीयों की एक उप समिति भी बनी थी। महेन्द्र सिंह ने भी यह दावा किया था कि 12000 करोड़ का ऐसा धन सरकार के पास उपलब्ध है लेकिन इस विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का इस संबंध में एक प्रश्न आया था। इस प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि विभिन्न विभागों में केवल 5156.25 करोड़ की ही अप्रयुक्त राशी है और इसमें वह राशी भी शामिल है जो विधायक निधि और रेडक्रास की विभागों के पास बतौर डिपोजिट पड़ी हुई है। इसी के साथ सदन में विधायक राजेन्द्र राणा का यह सवाल भी था कि सरकार ने इस वर्ष जनवरी से लेकर जुलाई तक कितना ऋण लिया है 31 जुलाई तक जीएसटी मे केन्द्र से क्या मिला है और कितना जीएसटी केन्द्र के पास बकाया है। इसके जवाब में बताया गया है कि जनवरी से जुलाई तक शुद्ध ऋण 2953 करोड़ है। वर्ष 2019-20 में 2477 जीएसटी के रूप में मिल चुके हैं और 2020-21 के लिये 1628 करोड़ का बकाया है। इसी कड़ी में विधायक हर्षवर्धन ने पूछा था कि इन छः महीनों में केन्द्र से कितना पैसा प्रदेश को मिला है। इसके जवाब में बताया गया है कि इस अवधि में केन्द्र से 11001 करोड़ मिले हैं जिनमें से 10974 करोड़ ग्रांट और 27 करोड़ ऋण के रूप में मिले हैं।
वित्तिय स्थिति के इस परिदृश्य में प्रदेश के बजट पर नजर डाली जाये तो 31 मार्च 2019 को प्रदेश का कर्ज 54000 करोड़ हो चुका है। इसके बाद वर्ष 2019-’20 के ऋण को अब तक जोड़ा जाये तो यह आंकड़ा अब 60,000 करोड़ के पार जा चुका है। फरवरी से जुलाई तक 10974 करोड़ ग्रांट के रूप में मिले हैं जिनमें निश्चित रूप से पिछले वित्त वर्ष 2018-19 का भी एक बड़ा हिस्सा रहा होगा। इस तरह चालू वित्त वर्ष के लिये पूरी ग्रांट नही मिल पायी है। सरकार जो अपने पास 12000 करोड़ के अप्रयुक्त धन की उपलब्धता की बात कर रही थी वह अब केवल 5156.25 करोड़ ही रह गया है। इसी में 7000 करोड़ का आकलन गड़बड़ा गया है। ऐसी स्थिति में बजटीय जिम्मेदारीयां पूरी करने के लिये यदि ऋणों का सहारा लिया जाता है तो वह प्रदेश के भविष्य  के लिये घातक होगा। ऐसे में प्रदेश को केन्द्र की तर्ज पर अपने खर्चे कम करने के लिये कड़े फैसले लेने होंगे।