शिमला/शैल। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना के तहत कोरोना काल में केवल 100 दिन का ही रोजगार गांव के लोगों को मिल पा रहा है। केन्द्र सरकार ने मनरेगा के तहत वर्ष 2019-2020 में 71000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया था। लेकिन वर्ष 2020 -21 के बजट में इसे घटाकर 61000 करोड़ कर दिया था। परन्तु जब 24 मार्च को कोरोना के कारण लाकडाऊन लगाया गया था तब देशभर में प्रवासी मजदूरों की समस्या खड़ी हो गयी थी। करोड़ो लोगो का रोज़गार छीन गया था। यह लोग अपने-अपने पैतृक स्थान को वापिस आने के लिये बाध्य हो गये थे। प्रवासी मजदूरों को अपने घर गांव में ही रोज़गार देने के लिये जब 20 लाख करोड़ रूपये के राहत पैकेज की घोषणा की गई थी तब मनरेगा के लिये दस हजार करोड़ रूपये का और प्रावधान कर दिया गया था।
मनरेगा का प्रावधान बढ़ाने के साथ ही यह घोषणा की गयी थी कि प्रवासी मजदूरों को रोज़गार का संकट नही आने दिया जायेगा और उनको मनरेगा के तहत काम दिया जायेगा। लेकिन सरकार की इस घोषणा के बाद का व्यवहारिक सच यह है कि मनरेगा के तहत पहले 120 दिन का रोजगार मिलता था जो कि अब केवल 100 दिन का ही रहा गया है। इसमें दैनिक मजदूरी भी 198 रूपये ही मिल रही है। 100 दिन का यह रोजगार भी पूरे परिवार को मिल रहा है भले ही परिवार में काम की आवश्यकता चार लोगों को हो। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मनरेगा में हर प्रभावित प्रवासी को रोजगार मिल जायेगा इस दावे की कथनी और करनी में दिन रात का अन्तर है। बल्कि इसका व्यवहारिक सच यह है कि जो रोजगार पहले एक आदमी को मिलता था अब वही काम चार आदमीयों में बांटकर हरेक के हिस्से में केवल 25-25 प्रतिशत ही रह गया है। इसी तरह रसोई गैस सिलैण्डर पर मिलने वाला अनुदान बंद होने से सभी लोग इससे प्रभावित हो गये हैं जबकि एक समय लोगों को मुफ्त रसोई गैस का सिलैण्डर और चूल्हा देकर इसके प्रति आकर्षित किया गया था। परन्तु अब सभी उपभोक्ता इससे प्रभावित हो रहे हैं।