शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के नेता पूर्व विधायक और मुख्य सचिव नीरज भारती को सीआईडी ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। भारती के खिलाफ शिमला के एक अधिवक्ता नरेन्द्र गुलेरिया ने शिकायत दी थी। गुलेरिया ने 20 जून को शिकायत देकर यह आरोप लगाया था कि पिछले 24 घन्टों में भारती ने सोशल मीडिया पर जो पोस्ट डाले थे उनसे देशद्रोह परिलक्षित होता है। इस पर भारती के खिलाफ अपराध दण्डसंहिता की धाराओं 124A ,153A, 504 और 505 के तहत एफआईआर दर्ज की गयी। एफआईआर दर्ज होने के बाद उन्हे 24 जून को जांच में शामिल होने का नोटिस दिया गया। जब नोटिस की अनुपालना करते हुए वह जांच में शामिल हुए तो उसके दूसरे दिन गिरफ्तार करके सोमवार तक पुलिस रिमांड हासिल कर लिया गया है।
लोकतन्त्र में
भारती की गिरफ्तारी से राजनीतिक क्षेत्रों में एक बहस खड़ी हो गयी है। कांग्रेस इस गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध करार दे रही है तो भाजपा इसे जायज़ ठहरा रही है। कांग्रेस ने राज्यपाल को भी इस आश्य का एक ज्ञापन सौंपकर भारती की रिहाई की मांग की है। भारती ओबीसी वर्ग से आते हैं और प्रदेश के सबसे बड़े ज़िले कांगड़ा से ताल्लुक रखते हैं। कांगड़ा का हर छोटा बड़ा कांग्रेस नेता भारती के साथ खड़ा हो गया है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस को भारती की गिरफ्तारी से एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है और आने वाले दिनों में सरकार के लिये यह एक बड़ी परेशानी का कारण बनेगा। क्योंकि भाजपा में जिस तरह से पिछले दिनों ओबीसी से ताल्लुक रखने वाले ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला को विधायक दल की बैठक में घटे घटनाक्रम के लिये खेद प्रकट करने के कगार तक धकेल दिया गया था उस पर ओबीसी वर्ग ने जिस तर्ज पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है उससे कांगड़ा का संभावित ध्रुवीकरण स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। लेकिन इस गिरफ्तारी का प्रभाव कांगड़ा से बाहर पूरे प्रदेश पर भी होगा और राष्ट्रीय स्तर पर भी। यह ऐ बड़ा सवाल रहेगा। क्योंकि आने वाले समय में बहुत सारे मुद्दों पर बहुत लोगों के मतभेद सत्ता से सामने आयेंगे यह पूछा जायेगा कि क्या सत्ता से मतभेद राष्ट्रद्रोह होता है।
इस परिदृश्य में अपराध दण्डसंहिता की धारा 124Aको समझना आवश्यक हो जाता है क्योंकि इसमें सुनवाई का अधिकार क्षेत्र केवल सत्र न्यायालय से शुरू होता है और आसानी से ज़मानत मिलना भी कठिन हो जाता है। धारा 124A में कहा गया है कि Whoever by worlds, either spoken or written on by sings, or by visible represention, or otherwise brigns or attempts to bring into hatred or contempt , or excites or attemps to excite disaffection towards, the Government established by law in india, shall be punished with imprisonment which may extend to three years, to which fine may be added , or with fine.
Explanation-1 The Expression " disaffection" includes disloyalty and all fellings of enmity,
Explanation-2 Comments expressing disapprobation of the measures of the Government with a view to obtain their alteration by lawful means, without exciting or attempting to excite hatred , contempt or disaffection, do not constitute an offence under this section.
Explanation-3 Comments expressing disapprobation of the administrative or other action of the Government without exciting or attempting to excite hatred, contempt or disaffection, do not constitute an offence under this section. इसमें चयनित सरकार के प्रति किसी भी माध्यम से असन्तुष्टि व्यक्त करना राजद्रोह श्रेणी में आता है। इसके मुताबिक चयनित सरकार के किसी भी फैसले और कृत्य पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। इसमें मत भिन्नता के लिये कोई स्थान नही है और इस परिपेक्ष में संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के साथ इसका सीधा टकराव हो जाता है। लेकिन लोकतन्त्र में मतभिन्नता और सवाल पूछना तो आवश्यक है। इसीलिये सर्वोच्च न्यायालय ने मतभिन्नता को आवश्यक करार दिया है। आज जिस तरह का राजनीतिक और सामाजिक वातावरण बनता जा रहा है उसमें इस तरह की गिरफ्तारीयों से बुनियादी सवालों पर जन बहस का वातावरण अपने आप खड़ा हो जायेगा यह तय है। लेकिन इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि मतभिन्नता के नाम पर अभद्र भाषा का प्रयोग भी नही किया जा सकता। परन्तु अभद्र भाषा के खिलाफ मानहानि का मामला दायर करने का भी पूरा अधिकार और प्रावधान है। ऐसें में मानहानि की बजाये देशद्रोह के तहत कारवाई करना निश्चित रूप से सरकार की नीयत और नीति पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
यहां पर भारत की उन पोस्टों पर नज़र डालना भी आवश्यक हो जाता है जिन्हे राष्ट्रद्रोह की संज्ञा दी गयी है। भारती की भाषा से अधिकांश को आपत्ति हो सकती है और होनी भी चाहिये। लेकिन जो सवाल भारती ने उठाये हैं क्या उनकी राष्ट्रद्रोह के नाम पर जांच नही होनी चाहिये। पूरा देश जानता है कि जम्मू -कश्मीर के पुलिस इन्सपैक्टर देवेन्द्र सिंह को कितने गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ जम्मू-कश्मीर पुलिस और एनआईए दोनो ही जांच कर रहे थे। लेकिन उसे अब ज़मानत मिल गयी है क्या इसके लिये सवाल नहीं पूछा जाना चाहिये। इस समय भारत चीन सीमा विवाद चल रहा है। देश के बीस सैनिक मारे गये हैं। संसद में इसी वर्ष मार्च में डा. अमर सिंह ने सवाल पूछा था कि भारत की कितनी ज़मीन पर चीन का कब्जा है। सरकार ने इस सवाल के जवाब में बताया है कि 38 हज़ार किलो मीटर पर चीन का कब्ज़ा है लेकिन अब जून में सरकार ने कहा है कि 43 हज़ार कि. मी. चीन के पास है। जब मार्च में यह आंकड़ा 38 हज़ार था और अब जून में 43 हज़ार हो गया है तब क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिये कि तीन माह मे ही यह 5 हजार वर्ग कि. मी. का अन्तर क्यों और कैसे? इस मुद्दे पर रक्षा मन्त्री, विदेशमन्त्री और प्रधानमन्त्री तीनों के ही ब्यानों में भिन्नता है। क्या इस भिन्नता पर सवाल नही बनता है। भारती ने अपनी पोस्टों में जो कुछ कहा है क्या उसे बिना किसी जांच के ही अपराध मान लिया जायेगा। क्या अदालत इन पोस्टों में उठाये गये सवालों पर जांच के आदेश नही देगी।
यह हैं विवादित पोस्ट