अवैध निर्माणों के आरोपों में घिरा नगर निगम शिमला

Created on Tuesday, 16 June 2020 06:23
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल।  पिछले कुछ अरसे से नगर निगम शिमला अवैध निर्माणों को लेकर समाचारों और चर्चाओं का केन्द्र बना हुआ है। अवैध निर्माण के यह आरोप स्वयं नगर निगम के अपने कर्मचारियों पर लगे हैं। यहां तक आरोप है कि निगम की जमीन पर ही अवैध कब्जा करके अवैध निर्माणों को अंजाम दे दिया गया है। यह चर्चाएं बाहर आते ही नगर निगम ने दो सफाई कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है और अतिरिक्त आयुक्त विधि की अध्यक्षता में सारे मामलों की जांच करने के लिये कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी की रिपोर्ट अभी तक आयी नही है। लेकिन जब निगम ने ही अपने दो कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है तो यह स्वतः ही सिद्ध हो जाता है कि आरोप निराधार नही हैं। लेकिन इन आरोपों से कुछ बुनियादी सवाल नये सिरे से खड़े हो गये हैं जो महत्वपूर्ण हैं।
नगर निगम क्षेत्र में कोई भी निर्माण निगम द्वारा नक्शा पास किये बिना नही बन सकता यह नियम है। लेकिन इसी नगर निगम के क्षेत्र में अवैध निर्माणों को नियमित करने के लिये नौ बार रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी हैं यह एक कड़वा सच है। हर बार पाॅलिसी लाते हुए उसमें यह दर्ज रहा है कि इसके बाद किसी भी अवैध निर्माण को नियमित नही किया जायेगा। लेकिन नौ बार ऐसा हो गया। कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारों में ऐसा हुआ है। निगम पर भी कांग्रेस-भाजपा दोनों का कब्जा रहा है। बल्कि एक बार सीधे चुनाव में महापौर और उपमहापौर के दोनों पद सी पी एम के कब्जे में भी रहें हैं। लेकिन कोई भी शासन अवैधताओं के खिलाफ कोई ठोस कारवाई नही कर पाया है। मन्त्रीयों, विधायकों और पाषर्दों तक अधिकांश पर स्वयं अवैध निर्माण करने या करवाने के आरोप लगे हैं। यदि कोई निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच कमेटी बने तो यह सारा सामने आ जायेगा। विधानसभा के सदन तक ऐसे निर्माणों की सूचियां पहुंची हुई हैं। शहर के नालों तक पर पार्षदों का कब्जा है और ऐसे मामलों के अदालत में पहुंचने के बाद भी उन पर दशकों तक फैसला नही आया है। निगम का विधि विभाग भी ऐसे मामलों पर कुछ नही कर पाया है। शहर के मध्यम में स्कूल के नाम पर होटलनुमा सरायं खड़ी हो गयी लेकिन किसी की हिम्मत नही हुई उस ओर आंख उठाकर देखने की जबकि एक पूर्व पाषर्द ने ही आरटीआई के माध्यम से इस मामले को उजागर किया।
एनजीटी ने ऐसे मामलों का कड़ा संज्ञान लेते हुए शहर में अढ़ाई मंजिल से अधिक के निर्माणों पर रोक लगा रखी है। लेकिन इस फैसले के बाद कितने निर्माणों में इस फैसले की अवेहलना की गयी है। इसका सही पता तो निष्पक्ष सर्वे में ही सामने आयेगा। परन्तु इसी दौरान नगर निगम शिमला के रिड़का गांव क्षेत्रा में जो ग्याहर मंजिल होटल का निर्माण सामने आया है उसके लिये किसको जिम्मेदार ठहराया जायेगा यह सवाल अभी तक अनुतरित है। इस होटल के निर्माण का मुद्दा रेरा तक पहुंचा था। लेकिन रेरा ने इस पक्ष को छुआ ही नही कि एनजीटी के फैसले के बावजूद इतना बड़ा निर्माण हो कैसे रहा है। रेरा द्वारा नजर अन्दाज होने के बाद इस निर्माण का मुद्दा डा. बन्टा ने एनजीटी में उठाया। इस पर एनजीटी ने नगर निगम शिमला, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और अन्य संवद्ध पर अपनी नाराजगी जताते हुए इसे तुरन्त प्रभाव से रोकने के आदेश दिये। इन आदेशों के बाद प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने इसकी बिजली आदि काटने के आदेश दिये। यहां यह स्वाल उठता है कि क्या इस निर्माण के लिये संवद्ध विभागों के खिलाफ कारवाई नही बनती है?
 शहर की सबसे बड़ी समस्या पार्किंग है। करीब 75% निर्माणों के पास पार्किंग नही है क्योंकि शुरू से ही इस बारे में कोई चिन्ता और चिन्तन नही किया गया। आज भी यदि प्रदेश उच्च न्यायालय के साथ जिस तर्ज पर महाधिक्ता कार्यालय का निर्माण हुआ है और पार्किंग का प्रावधान किया गया है। उसी तर्ज पर जहां-जहां संभव हो वहां-वहां ऐसे निर्माणों की अनुमति देकर शहर की एक बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है। इसी के साथ आवश्यकता इसकी है कि जहां भी अवैध निर्माण सामने आते हैं वहां उस क्षेत्र के पार्षद से लेकर नगरनिगम के संवद्ध प्रशासन के खिलाफ पहले कारवाई की जाये तब ऐसी अवैधताओं पर रोक लग पायेगी अन्यथा नही। नगर निगम के सफाई कर्मचारियों का निलंबन इसका कोई हल नही है। क्योंकि जिस जमाने में निगम की कालोनियों का निर्माण हुआ है उस दौरान हर आवास में अनिवार्य शौचालय का प्रावधान नही था। इस समय इन काॅलोनियों में जो अवैध निर्माण हुए हैं हो सकता है कि उनमें अधिकांश ऐसी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किये गये हों।
जवाब मांगते कुछ निर्माण

महाधिवक्ता भवन हिमाचल प्रदेश शिमला


















































निर्वाण वुडज़ होटल रिड़का, शिमला