मुख्यमन्त्री को भी कुन्दन होकर निकलने की आवश्यकता हैः विक्रमादित्य

Created on Tuesday, 09 June 2020 11:58
Written by Shail Samachar
शिमला/शैल।  प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में इन दिनों भ्रष्टाचार एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। ऐसा इसलिये हुआ है कि विभाग में पिछले दिनों हुई कुछ खरीदीयों को लेकर विजिलैन्स में ही सैनेटाईज़र और पीपीई किट्स को लेकर दो मामले दर्ज हो चुके हैं। एक मामलें में सचिवालय के अधीक्षक को निलंबित भी कर दिया गया है। दूसरे मामलें में विभाग के तत्कालीन निदेशक की गिरफ्तारी के बाद एक और व्यक्ति की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस दूसरे व्यक्ति को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष डा.राजीव बिन्दल का नज़दीकी करार दिया गया था। इस निकटता के आरोप पर राजीव बिन्दल ने नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। तीसरे मामले वैंन्टीलेटर खरीद में एक बेनामी पत्र के माध्यम से आरोप लगे। इन बेनामी आरोपों पर भी एक जांच कमेटी बैठानी पड़ गयी है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि जब विभाग में तीन मामलों को लेकर जांच की स्थिति आ पहुंची हो तो न केवल विपक्ष ही बल्कि आम आदमी भी विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर शक करने पर विवश हो जायेगा।
फिर जब मुख्यमन्त्री विपक्ष की मांग पर यह कहने तक आ जाये कि यदि उन्हें ज्यादा विवश किया जायेगा तो वह नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ आ रहे पत्रों पर भी जांच के आदेश दे देंगे। लोकतान्त्रिक प्रणाली में विपक्ष ही नही बल्कि हर नागरिक को सत्ता से सवाल पूछने का हक हासिल है। लेकिन इस हक पर जब सत्तापक्ष की ओर से यह कहा जायेगा कि वह आपके खिलाफ भी जांच आदेशित करने को बाध्य हो जायेंगे तब सारे मामले का प्रंसग ही एक अलग मोड़ ले लेता है। क्योंकि ऐसे कथन का अर्थ तो होता है कि ‘‘तुम मेरे भ्रष्टाचार पर चुप रहो और मैं तुम्हारे पर चुप रहूंगा’’।  जबकि नैतिकता की मांग तो यह है कि हरेक के भ्रष्टाचार को सज़ा के अन्जाम तक ले जाया जाना चाहिये। लेकिन मुख्यमन्त्री की ऐसी प्रतिक्रिया तो समझौते की याचना की श्रेणी में आती है।
मुख्यमन्त्री ने जब वैन्टीलेटर खरीद प्रकरण में एक बेनामी पत्र पर जांच कमेटी गठित कर दी है तो उसी तर्क पर अन्य मामलों में भी जांच किया जाना आवश्यक हो जाता है। इस समय स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमन्त्री के पास है। इसी के साथ विजिलैन्स भी मुख्यमन्त्री के ही पास है और जिस तर्ज पर मुख्यमन्त्री ने अपरोक्ष में विपक्ष को चुप रहने की सलाह दी है उसके परिदृश्य में यह स्वभाविक हो जाता है कि कोई भी आदमी सहजता से विजिलैन्स और सरकार द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्टो पर विश्वास नही कर पायेगा। इसी परिप्रेक्ष में कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य ने मुख्यमन्त्री से त्यागपत्र की मांग करते हुए यह कहा है कि उन्हें भी राजीव बिन्दल की तरह इस प्रकरण में कुन्दन हो कर बाहर निकलने की जरूरत है। इस प्रकरण में जिस तरह से मुख्यमन्त्री और अन्य भाजपा नेता विपक्ष के आरोपों का जवाब दे रहें उस परिदृश्य में कांग्रेस के पास इस सारे मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष ले जाने की बाध्यता आ जायेगी। क्योंकि मुख्यमन्त्री ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को व्यक्तिगत स्तर पर चुनौती दी है। उनके खिलाफ भी जांच करवाने की बात की है। ऐसे में कांग्रेस के लिये अपने को जनता में प्रमाणित करने के लिये इस मामले को अन्तिम अजांम तक ले जाना जरूरी होगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के यह सारे मामले उस समय घटे हैं जब पूरा देश और प्रदेश कोरोना के प्रकोप से जुझ रहे है।