क्या भाजपा विस्फोट की ओर बढ़ रही है

Created on Monday, 01 June 2020 18:42
Written by Shail Samachar

 शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा में जो कुछ इन दिनों घट रहा है यदि उसके राजनीतिक अर्थ लगाये जायें तो कोई भी विश्लेषक यह मानेगा कि निकट भविष्य में कोई बड़ा विस्फोट होने वाला है। क्योंकि कांगड़ा में पिछले दिनो सांसद किशन कपूर और पूर्व मंत्री रविन्द्र रवि कि कुछ अन्य नेताओं के साथ हुई बैठक को जिस तरह से बागी गतिविधि करार देकर कांगड़ा, चम्बा के दस विधायकों और अन्य नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर बागीयों के विरूद्ध कारवाई करने की मांग की उससे पार्टी के भीतर की स्थिति स्वतः ही बाहर आ गयी है। क्योंकि इस बैठक को लेकर जब पहली बार सवाल उठे थे तब किश्न कपूर ने यह स्पष्ट किया था कि सांसद से मिलने के लिये कार्यकर्ताओं को पहले से समय लेने की आवश्यकता नही होती है। लेकिन कपूर के इस स्पष्टीकरण के बावजूद दस विधायकों द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर कारवाई की मांग करना पार्टी के भीतर की कहानी को ब्यान कर देता है।
 इस स्थिति को समझने के लिये यदि थोड़ा और पीछे जायें तो यह सामने आता है कि पार्टी के आठ विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष के साथ एक संयुक्त पत्र लिख कर विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की थी। सभी लोगों ने सामूहिक रूप से यह पत्र विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा था। विधानसभा अध्यक्ष ने इस पर और विधायकों के हस्ताक्षर करवाने का सुझाव दिया था। विधानसभा सत्र बुलाने की यह मांग जब सार्वजनिक हुई तब पार्टी अध्यक्ष राजीव बिन्दल ने एक ब्यान जारी करके विधायकों की इस मांग को अनुचित करार दिया था। लेकिन बिन्दल के इस ब्यान से यह प्रमाणित हो गया था कि इन आठ विधायकों ने सत्र बुलाने की मांग की थी। सत्र बुलाने के लिये कोरोना पर सदन में चर्चा करने का तर्क दिया गया था। कोरोना पर चर्चा की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी थी वह सैनेटाइज़र खरीद और पीपीई किट्स खरीद के विजिलैन्स में पहुंचने से स्पष्ट हो जाती है।
इसी के साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लोकसभा चुनावों के दौरान जो दो मन्त्री पद रिक्त हुए थे वह अब तक खाली चले आ रहे हैं। फिर विपिन परमार के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद एक और पद खाली हो गया था। एक मन्त्री पद पहले ही खाली रखा गया था। इस तरह मन्त्रीमण्डल में चार मन्त्री पद भरे जाने हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री  के अतिरिक्त बारह मन्त्री हो सकते हैं। सरकार का आधा कार्यकाल समाप्त हो चुका है। कार्यकाल के अनितम छः महीने तो चुनाव का समय होता है। इस समय कोरोना के कारण पूरे देश की अर्थव्यवस्था संकट में चल रही है। प्रदेश सरकार ही अब हर माह कर्मचारियों का एक-एक दिन का वेतन दान में ले रही है। ऐसे में यदि चारों मन्त्री पद भरे जाते हैं तो निश्चित रूप से जनता इस पर सवाल उठायेगी ही। उधर मन्त्री बनने की ईच्छा पाले हुए विधायक झण्डी पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं। और इस कुछ भी में विरोध और विद्रोह को नकारा नही जा सकता।
उधर प्रशासनिक स्तर पर यह मुख्यमन्त्री के अपने ही कार्यालय की स्थिति यह है कि अढ़ाई वर्ष के कार्यकाल में प्रधान सचिव के पद पर चैथी नियुक्ति करनी पड़ी है। इसी के साथ एक सेवानिवृत अधिकारी को अब सलाहकार के रूप में नियुक्त करना पड़ा है। प्रधान सचिव के पद पर जनवरी 2022 में पांचवी नियुक्ति करनी पड़ेगी या सेवानिवृत के बाद पुनः नियुक्ति देनी पड़ेगी। तब कार्यालय के अन्त तक  पहुंचते पहुंचते यह सरकार भी वीरभद्र शासनकाल के टार्यड और रिटार्यड के मुकाम तक पहुंच जायेगी। इस परिदृश्य में यह सवाल उठने स्वभाविक है कि क्या मुख्यमन्त्री कार्यकाल के पहले दिन से ही इन अधिकारियों को अपने पास तैनाती नही दे सकते थे। अब तो जैसे जैसे कार्यकाल आगे बढ़ेगा उसी अनुपात में विपक्ष आक्रामक होता जायेगा क्योंकि भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामलों में यह सरकार कोई कारवाई नहीं कर पायी है।