क्या प्राईवेट स्कूल फिर सरकार को गुमराह करने में सफल हो गये है

Created on Tuesday, 26 May 2020 18:22
Written by Shail Samachar

 

शिमला/शैल। प्राईवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना अधिकांश अभिभावकों की मजबूरी है। क्योंकि शहरों में सरकारी स्कूल इतनी मात्रा में नही हैं जिनमें सारे बच्चों को दाखिला मिल पाये। सरकार इस तथ्य को भलीभांति जानती है। शिक्षा सबको चाहिये यह भी एक सच है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर क्या है इसकी जानकारी सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज रिपोर्ट में से मिल जाती है। वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक विभिन्न ग्रेडों के भीतर बच्चों के पढ़ने के स्तर में भिन्नता दर्शाती है। उदाहरण के लिए, कक्षा III में 2 प्रतिशत बच्चे अक्षर भी नहीं पढ़ सकते हैं, 9.2 प्रतिशत अक्षर पढ़ सकते हैं, लेकिन शब्द या उससे ज्यादा नहीं पढ़ सकते हैं, 15.7 प्रतिशत शब्द पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा एक स्तर के पाठ या उससे ऊपर नहीं पढ़ सकते, 25.4 प्रतिशत कक्षा एक के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं लेकिन कक्षा द्वितीय स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते। प्रत्येक कक्षा के लिए, सभी स्तरों की कुल संख्या 100 प्रतिशत है।
2012 में कक्षा तीन के निजी और सरकारी स्कूल केवल 39 प्रतिशत बच्चे कक्षा दूसरी के स्तर का पाठ पढ़ पाए थे, जबकि इस स्थिति में 2018 में सुधार हुआ और बढ़कर 48 प्रतिशत बच्चे कक्षा दूसरी स्तर के पाठ पढ़ने में सक्षम हो गए।
सरकारी स्कूलों की यह स्थिति है जो अभिभावकों को प्राईवेट स्कूलों में जाने के लिये बाध्य करती है। इसी व्यवहारिक स्थिति के कारण बड़े शहरों में प्राईवेट स्कूलों की संख्या अधिक होती है। इसी का फायदा उठाकर प्राईवेट स्कलों के प्रबन्धकों ने शिक्षा को एक बड़ा बाज़ार बनाकर रख दिया है। प्लसटू तक के इन स्कूलों में बच्चों से इतनी अधिक कीमत फीस और अन्य शुल्कों के नाम पर वसूली की जाती है जितनी शायद कालिज, विश्वविद्यालय या प्रोफैशनल संस्थानों में भी नही वसूली जाती है। सरकार भी इस तथ्य से परिचित है। सरकार ने जहां प्रोफैशनल संस्थानों के लिये नियामक आयोग बना रखे हैं वहां पर इन स्कूलों के लिये नियामक के नाम पर कुछ नही है। यह स्कूल बच्चों को किताबें, कापियां और वर्दी तक खुले बाज़ार से नही लेने देते हैं। पढ़ाई के अतिरिक्त यह एक अलग व्यापार यहां पर चलता है जिस पर कोई नियन्त्राण नही है।
यह प्राईवेट स्कूल अभिभावकों पर कितना आर्थिक बोझ डालते हैं इसका अन्दाजा लगाना आसान नही है। कई बार इनके व्यापारीकरण के खिलाफ आवाज़ भी उठ चुकी है। सरकार ने कई निर्देश भी जारी किये हैं। लेकिन इन निर्देशों पर अमल कितना हुआ है इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है। यह स्कूल फरवरी, मार्च में बच्चों को दाखिला दे देती हैं और उसी समय सारे वार्षिक शुल्क ले लेते हैं। ऐसे में अब जब सारे स्कूल मार्च से बन्द चल रहे हैं तब इन स्कूलों को लेकर यह मांग उठी थी कि इस दौरान की फीस बच्चों से न ली जाये। सरकार ने इस मांग को मानते हुए यह आदेश कर दिये कि केवल टयूशन फीस ही ली जायेगी। जबकि इसी टयूशन फीस को न लेने की मांग थी क्योंकि बाकी चार्जज तो स्कूल पहले ही ले चुके हैं। ऐसे में लगता है कि यह स्कूल सरकार को गुमराह करने में सफल हो गये है और सरकार से यह घोषणा करवा दी कि अभिभावकों को बड़ी राहत दे दी है। जबकि व्यवहार में कुछ नही मिला है।