फेक न्यूज से लेकर आवारा पशु और व्यापारी वर्ग के पत्र ने बढ़ाई सरकार की मुश्किल

Created on Monday, 13 April 2020 12:52
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल।  हिमाचल सरकार ने फेक न्यूज रोकने और उसके खिलाफ कारवाई करने के लिये निदेशक लोक संपर्क की अध्यक्षता में एक आठ सदस्यों की कमेटी का  गठन किया है। इस कमेटी के अतिरिक्त एक बैव पोर्टल भी जारी किया गया है। सरकार के इन कदमों के बाद अभी मुख्यमन्त्री के अपने ज़िले मण्डी में ही सेाशल मीडिया में भ्रामक और भड़काऊ पोस्ट डालने के लिये सात केस दर्ज किये गये हैं। एसपी मण्डी गुरदेव चन्द के अनुसार इन पोस्टों में एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया है। स्मरणीय है कि जब से निजा़मुद्दीन मरकज दिल्ली में तब्लीगी समाज का समागम हुआ है उसके बाद से पूरे देश में एक प्रचार कर दिया गया कि यही समाज कोरोना के लिये जिम्मेदार है। कुछ मीडिया कर्मीयों ने तो इन्हें तालीबान और मानव बमों की संज्ञा तक दे दी। इस तरह के प्रचार के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई और मीडिया के लिये दिशा निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया। इस आग्रह पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र और केन्द्र ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये जिन पर कमेटीयों के गठन के कदम उठाये गये हैं। अभी सर्वोच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर हुई हैं जिसमें केजरीवाल सरकार के खिलाफ मरकज मामले में सीबीआई जांच की मांग की गयी है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग बहुत ही सुनियोजित ढंग से देश के मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा है। आज यह पूरी स्थिति इस तरह विस्फोटक हो चुकी है कि इस महामारी में भी इस प्रचार को विराम नही दिया जा रहा है। महामारी के प्रकोप से जब भी समाज निजात पायेगा तब यह मुद्दा एक बहुत बड़ी सार्वजनिक बसह का विषय बनेगा यह तय है। यह भी तय है कि इस प्रचार से जिस तरह का ध्रु्रवीकरण आगे शक्ल लेगा उससे सबसे ज्यादा नुकसान सत्ता पक्ष को ही होगा। शायद सत्ता पक्ष को भी इसका आभास होने लगा पड़ा है। इसलिये आज फेक न्यूज को लेकर कमेटी गठन से पुलिस में आपराधिक मामले दर्ज करने की नौबत आ गयी है। क्योंकि इस समय तालाबन्दी से जिस तरह का आर्थिक संकट देश के समाने खड़ा हो गया है उससे बहुत सारे लोगों के लिये रोटी का संकट पैदा हो गया है रोटी के इस संकट से शायद कोई भी प्रदेश अछूता नही बचा है। हिमाचल में ही सरकार के सारे प्रत्यनों के वाबजूद प्रदेश के कई भागों से ऐसी शिकायतें आनी शुरू हो गयी है। कुल्लु के सरबरी में प्रवासी मज़दूरों को खाना नही मिल पाया है। बरोट और पन्डोह में कश्मीरी मज़दूरों को पीटने का विडियो वायरल हो चुका है। हमीरपुर में प्रवासी मज़दूरों की पिटाई को लेकर पुलिस में मामला दर्ज हो चुका है। आज प्रदेश के बहुत सारे क्षेत्रों में लोगों की निर्भीरता प्रवासी मज़दूरों पर हो चुकी है। लेकिन जिस तरह से इन मज़दूरों को निशाना बनाया जा रहा है उससे आने वाले दिनों में खेत से लेकर बागीचों तक लेबर का संकट खड़ा हो जायेगा।
इस समय समुदाय विशेष को निशाना बनाने वाले समाज का गोरक्षा को लेकर भी दोहरा चरित्र सामने आने लग पड़ा है। सरकार ने जिस बड़े पैमाने पर हर पंचायत में गोशालाएं खोलने का अभियान छेड़ा था और उसके लिये ज़मीन तथा धन दोनों उपलब्ध करवाये गये हैं। लेकिन आज यह गौधन फिर आवारा पुशओं की शक्ल में लोगों के खेतों में नुकसान कर रहा है या फिर खुले आसमान के नीचे विचरण कर रहा है क्योंकि गौशाला वालों ने चारे के अभाव में इसे खुला छोड़ दिया है। इससे सरकार की पूरी योजना और गाय की रक्षा के सारे दावों की हवा निकल गयी है।
तालाबन्दी में आर्थिक गतिविधियां किस कदर प्रभावित हुई है और उससे व्यापारी वर्ग किस तरह आहत हुआ है उसका अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि व्यापारीयों कि ओर से भी एक पत्र सोशल मिडिया के मचों पर वायरल हुआ है जिसमें सरकार से कई राहते मांगी गई है। इन्होने तर्क दिया है कि जिस तरह से सूखा प्रभावित किसानों को आर्थिक सहायता दी गई है उसी तर्ज पर इन्हें भी सहायता दी जाये। इस कथित पत्र से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार इस वर्ग की इन मांगो को पूरा कर पायेगी।