क्या लाक डाउन और कर्फ्यू लगाकर ही सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है

Created on Tuesday, 24 March 2020 08:07
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने पूरे प्रदेश में 23 मार्च से लाक डाउन लागू कर दिया है। लाक डाउन के दौरान कौन सी सेवाएं उपलब्ध रहेगी और सामान्य नागरिकों से क्या अपेक्षाएं रहेंगी इसका पूरा जिक्र मुख्य सचिव के आदेश में दर्ज है। कोरोना की प्रदेश में वास्तविक स्थिति क्या है इसका खुलासा अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य आर डी धीमान ने एक पत्रकार वार्ता में सामने रखा है। उनके मुताबिक अब तक 1030 मामले निगरानी में रखे गये थे। जिनमें से 387 व्यक्ति निगरानी के 28 दिन पूरे कर चुके हैं और अब उनमें इस रोग के कोई लक्षण नही हैं तथा पूरी तरह स्वस्थ हैं। अब केवल 515 लोग निगरानी में चल रहे हैं। प्रदेश में आई.जी.एम.सी. शिमला, राजेन्द्र प्रसाद मैडिकल कालिज टाण्डा और राजकीय मैडिकल कालिज नेरचैक मण्डी में आईसोलेशन वार्ड बना दिये गये हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री के मुताबिक कोरोना के केवल दो मामले पाजिटिव पाये गये हैं। मुख्यमन्त्री और अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य के ब्यानों के मुताबिक कोरोना से भयभीत होने की आवश्यकता नही है।
कोरोना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित की गयी है। दुनिया के अधिकांश देशों में फैल चुकी और अभी तक इसका कोई अधिकारिक ईलाज भी सामने नही आया हैं। केवल इसके लक्षणों की जानकारी उपलब्ध है और यह बताया गया है कि यह संक्रमण से फैलती है और संक्रमण एक दूसरे के संपर्क में आने से होता है। इसलिये अभी तक केवल संक्रमण से ही बचने के उपाय किये जा सकते हैं और इसके हर उस आयोजन को बंद कर दिया गया है जहां भी दूसरे के संपर्क में आने की संभावनाएं रहती हैं। सरकार ऐसे आयोजनों पर जनता कर्फ्यू और लाक डाउन के आदेश जारी होने से पहले ही प्रतिबन्ध लगा चुकी है। अब जब लाक डाउन के आदेश आ गये हैं तो इसमें सबसे ज्यादा प्राईवेट सैक्टर के कारोबार पर असर पडे़गा। दिहाड़ीदार मज़दूर सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। इसलिये यह सवाल उठना स्वभाविक है कि सरकार इस वर्ग के लिये क्या सहायता उपलब्ध करवायेगी इस बारे में अभी तक सरकार की ओर से कोई घोषणा सामने नही आयी है। सरकार आवश्यक सामान की आपूर्ति तो सुनिश्चित करने के प्रयास तो कर रही है लेकिन यह कैसे सुनिश्चित होगा कि दिहाड़ीदार मज़दूर यह आवश्यक सामान खरीद सकने की क्षमता में भी है या नही।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या लाक डाउन और कर्फ्यू ही सरकार के स्तर पर आवश्यक कदम हैं। जब कोई दवाई तक सामने नही आयी है और हर व्यक्ति को सैनेटाईज़र प्रयोग करने की सलाह दी  जा रही है तो क्या सार्वजनिक स्थालों पर इसका छिकड़काव किया जाना आवश्यक नही होना चाहिये। क्योंकि इस समय दवाई के अभाव में सैनेटाईज़र और अन्य कीटनाश्कों का छिड़काव ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। लेकिन सरकार की ओर से इस दिशा में अभी तक कोई कदम नही उठाये जा रहे हैं। इस रोग के परीक्षण की सुविधा और आईसोलेशन वार्डों की उपलब्धता ही ज़िला मुख्यालय पर उपलब्ध नही है। प्रदेश के सारे मैडिकल कालिजों तक में यह सुविधा उपलब्ध नही है। क्या सरकार की प्रशासनिक स्तर पर सारे सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबन्ध लगाकर ही जिम्मेदारी पूरी हो जाती है इसको लेकर अब सवाल उठने शूरू हो गये है। व्यापारिक संगठनों ने व्यापार प्रभावित होने के कारण आर्थिक सहायता की मांग तक कर दी है। लेकिन सरकार अभी तक प्रदेश की जनता को यह नही बता पायी है कि उसने इस बीमारी से निपटने के लिये कितना आर्थिक प्रावधान कर रखा है।
यह माहमारी एक प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आयी है और प्राकृतिक आपदायें पूर्व निश्चित होती है। यह आकस्मिक होती है और इसलिये संविधान की धारा 267 के तहत बजट में आकस्मिक निधि का प्रावधान रखा गया है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उस निधि से पैसा निकाला जा सकें। लेकिन प्रदेश में कुछ अरसे से आकस्मिक निधि के तहत कोई धन का प्रावधान ही किया जा रहा है और कभी कोई माननीय इस ओर ध्यान ही नही दे रहा है। कैग रिपोर्ट में इसको लेकर सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की गयी है। बल्कि कैग ने तो इसी के साथ रिस्क फण्ड रखने की भी बात की है। लेकिन कैग की टिप्पणी के वाबजूद सरकार की ओर से कोई कदम न उठाया जान कई सवाल खड़े करता है।