दो परीक्षाओं में एक जैसे प्रश्न आ जाना एक संयोग या षडयन्त्र पुलिस, पटवारी और काॅलिज प्रवक्ता परीक्षाओं से उठा सवाल

Created on Monday, 02 March 2020 17:15
Written by Shail Samachar

 

शिमला/शैल। जयराम सरकार को सत्ता में आये दो वर्ष हो गये हैं सरकार ने सत्ता में आते ही प्रदेश लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड में कुछ बदलाव किये थे। लोकसेवा आयोग में तो दो नये पद सृजित किये गये थे परन्तु भरा उनमें से एक ही गया था। लोक सेवा आयोग की कार्य प्रणाली पर मुख्यमंत्री ने लम्बे आंकड़े सदन में रखते हुए गंभीर सवाल खड़े किये थे। इन सवालों से यह संदेश उभरा था कि इस सरकार में भर्तीयों के मामले में पारदर्शिता और सतर्कता दोनों पर ध्यान केन्द्रित रहेगा। पूर्व में घट चुके चिट्टों पर भर्ती जैसे मामले पुनः दोहराये नही जायेंगे। लेकिन इन जनापेक्षाओं पर यह सरकार खरी नही उतरी है।
इस सरकार में सबसे पहले पुलिस में भर्तीयां हुई। इन भर्तीयों में युवाओं को परीक्षा पास करने के बाद भर्ती किया गया। नियुक्ति पत्र मिलने के बाद ज्वाईनिंग हो गयी। भर्ती की प्रक्रिया काफी लंबी चली थी लेकिन प्रक्रिया के दौरान एक ही आरोप लगा कि बहुत सारे युवाओं के नाम भर्ती के लिये जारी हुए आनलाईन पोर्टल में आयी गड़बड़ी के कारण परीक्षा केन्द्रों में मिले ही नही थे। हजारों की संख्या में छात्र परीक्षा में बैठ नही पाये थे। यह प्रकरण भी जांच का विषय बना जिसका कोई परिणाम सामने नही आया है। इसी परिदृश्य में परीक्षा हो गयी और परीक्षा के दौरान कहीं किसी को शक नही हुआ कि ए के स्थान पर बी ही ए बनकर परीक्षा दे रहा है। जबकि हर परीक्षा में यह सामान्य नियम रहता है कि हाल के अन्दर उसी परीक्षार्थी को प्रवेश दिया जाता है जिसके पास पहचान के पूरे प्रमाण होते हैं। लेकिन अब आयी शिकायतों में यह सामने आया है कि मूल छात्रों के स्थान पर कोई और ही परीक्षा देकर चला गया। ऐसे घोटाले के कुछ लाभार्थीयों की गिरफ्तारीयां तक हो चुकी हैं। क्या इसमें उन लोगों की जिम्मेदरारी नही आती है जो परीक्षा के संचालन में लगे हुए थे? ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि संचालन में लगे लोगों को इसकी जानकारी ही न रही हो।
पुलिस भर्तीयों के बाद पटवारीयों की भर्ती हुई। यह मामला उच्च न्यायालय ने जांच के लिये सीबीआई को सौंप दिया है। इसमें आरोप लगा है कि इसकी परीक्षा में वही प्रश्न डाल दिय गये जो पहले जेबीटी के लिये डाले गये थे। जेबीटी और पटवारी दोनों के लिये न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता एक बराबर है। ऐसे में यह बहुत संभव है कि जो बच्चे पहले जेबीटी की परीक्षा में बैठे हों उन्ही में से कुछ जो उसमें सफल नही हो सके हों वह पटवारी परीक्षा में बैठे हों और उन्हें परीक्षा में इसका स्वभाविक रूप से लाभ मिल गया हो। लेकिन इसमें मूल प्रश्न यह उठता है कि पटवारी और जेबीटी दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। इनमें एक जैसा ही प्रश्नपत्र डाल दिया जाना क्या स्वभाविक हो सकता है शायद नहीं। यह अपने में एक गंभीर विषय बन जाता है क्योंकि यह तभी संभव हो सकता है यदि जिसने पटवारी की परीक्षा का प्रश्न पत्र डाला हो उसी का कोई अपना पहले जेबीटी की परीक्षा में बैठा हो और उसके माध्यम से उसे जेबीटी का प्रश्नपत्र मिल गया हो और उसने उसी प्रश्नपत्र के सवाल पटवारी परीक्षा के लिये डाल दिये हों। अभी इस जांच की कोई रिपोर्ट सामने आयी नही है।
इसके बाद फरवरी में काॅलिज के हिन्दी प्रवक्ताओं के लिये परीक्षा हुई। अब इस परीक्षा के परिणाम भी रद्द कर दिये गये हैं। इसमें यह आरोप लगा है कि इस परीक्षा के प्रश्नपत्र में भी वही प्रश्न डाल दिये गये जो इससे पहले हो चुकी जिला भाषा अधिकारियों की परीक्षा में डाले गये थे। इस संद्धर्भ में भी वही तरीका अपनाया गया जो पटवारीयों की परीक्षा में अपनाया गया था। इस संद्धर्भ में जब सचिव प्रदेश सेवा आयोग के पास शिकायत पहुंची तब उन्होंने प्रवक्ताओं की परीक्षा को रद्द कर दिया है। लेकिन परीक्षा रद्द करने के साथ ही इस बारे में कोई जांच भी करवाये जाने की जानकारी अभी तक सामने नही आयी है।
प्रदेश में हुई इन तीन परीक्षाओं में से दो में एक जैसा फार्मूला अपनाया गया है। जो सवाल पहले किसी परीक्षा में पूछे गये हैं वही सवाल दूसरी परीक्षा में भी पूछ लिये गये। नियमानुसार इसमें कोई गलती नही है कि जो प्रश्न एक परीक्षा में पूछेे गये हैं वही प्रश्न दूसरी परीक्षा में नहीं पूछे जा सकते। क्योंकि जब दोनों परीक्षाओं के लिये मूल शैक्षणिक योग्यता एक जैसी ही है तो ऐसा हो सकता है। इसमें घपला तब नहीं हो सकता जब दोनों परीक्षाएं एक ही दिन हो रही हों। लेकिन जब परीक्षायें दो अलग-अलग दिन हो रही हों तो इसका लाभ बाद की परीक्षा में मिलना स्वभाविक है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इसकी जांच में यह सब एक संयोग निकलता है या इसके पीछे कोई सुनियोजित योजना रही है।