शिमला/शैल। राजीव बिन्दल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन गये हैं और पद संभालने के बाद बतौर अध्यक्ष उन्होने सबसे पहले पूर्व अध्यक्षों से मिलने का कार्यक्रम बनाया। इस समय शान्ता कुमार, प्रेम कुमार धूमल, सुरेश भारद्वाज तथा सतपाल सत्ती पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं। सत्ती से तो बिन्दल ने कार्यभार संभाला है और सुरेश भारद्वाज शिक्षा मन्त्री हैं इसलिये इनसे अलग से मिलने का कोई बड़ा अर्थ नही रह जाता है। शान्ता, धूमल दोनों पूर्व मुख्यमन्त्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। दोनों का अपना-अपना जनाधार आज भी अपनी जगह बना हुआ है। इसी जनाधार के चलते धूमल को 2017 के चुनावों में नेता घोषित किया गया था। यदि धमूल ने अपने चुनाव क्षेत्र में कुछ ज्यादा समय दिया होता तो वह चुनाव जीत भी जाते और उस सूरत में आज प्रदेश की राजनीति का परदिृश्य कुछ दूसरा ही होता। बिन्दल की ताजपोशी के अवसर पर यही दोनों मौजूद नही थे। इसलिये बिन्दल के लिये यह एक राजनीतिक आवश्यकता थी कि वह इन दोनों वरिष्ठ नेताओं से उनके घर जाकर मिलते और संवाद स्थापित करते। बिन्दल ने किया भी ऐसा ही। अब बिन्दल की टीम जब घोषित होगी तब स्पष्ट हो जायेगा कि उसमें स्थान पाने वाले नेताओं/कार्यकर्ताओं की निष्ठाएं किसके साथ कितनी हैं।
बिन्दल की ताजपोशी के बाद राजनीतिक स्तर पर दो महत्वपूर्ण फैसले आने हैं। पहला है विधानसभा ना नया अध्यक्ष चुनना। इस चयन को टाला नही जा सकेगा क्योंकि आगे बजट सत्र आना है। जब विधानसभा अध्यक्ष चुना जायेगा तो इसी के साथ मन्त्री परिषद के दोनों खाली स्थानों को भरने का दवाब भी बढ़ जायेगा और उसे आगे टालना कठिन हो जायेगा। इस समय रमेश धवाला और नरेन्द्र बरागटा दो ऐसे विधायक हैं जो धूमल मन्त्रीमण्डल में मन्त्री रह चुके हैं। जयराम मन्त्रीमण्डल में इन्हें स्थान न मिलने पर दोनों की नाराजगी बाहर आ गयी थी और इस नाराजगी को दूर करने के लिये दोनों को मन्त्री रैंक में सचेतक और मुख्य सचेतक के पद आफर किये गये थे। बरागटा ने यह आफर स्वीकार कर ली थी परन्तु धवाला ने नही। उसके बाद ही धवाला की ताजपोशी की गयी थी। परन्तु यह दोनों अपनी वरियता के नाते अब भी मन्त्री पद की दौड़ में हैं। इन्ही के साथ राकेश पठानिया और सुखराम चौधरी जिस तरह से सदन में अपने तेवर जाहिर करते रहे हैं उससे स्पष्ट है कि यह लोग भी मन्त्री पद की दौड़ में हैं। फिर बिन्दल के पार्टी अध्यक्ष बनने से सिरमौर का सरकार में प्रतिनिधित्व का दावा भी खड़ा हो जायेगा।
अब यह एक सुखद संयोग है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। यहीं से विधायक, मन्त्री और सांसद रहे हैं यहीं से छात्र राजनीति में आये थे। अब जब त्रिलोक जम्वाल, धर्माणी, रणधीर शर्मा के नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में आये थे तब इन सबको नड्डा के साथ ही जोड़कर देखा जा रहा था। यह दूसरी बात है कि अब बिन्दल भी महेन्द्र पांडे के माध्यम से नड्डा के नजदीकी बन चुके थे और राजनीतिक समीकरणों तथा वरियता के नाते इन सब पर भारी पड़ते थे इसलिये नड्डा का आर्शीवाद उन्हे हासिल हो गया। इस परिदृश्य में यह स्वभाविक होगा कि प्रदेश से जुड़े हर राजनीतिक फैसले में नड्डा की भूमिका प्रभावी रहेगी। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि नड्डा बिन्दल के माध्यम से प्रदेश की राजनीति पर पूरा कन्ट्रोल रखेंगे। लेकिन इस समय राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य जिस मोड़ पर पहुंच चुका है उसमें भाजपा की कठिनाईयां बढ़ती जा रही हैं। अभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और माना जा रहा है कि यहां भाजपा की सरकार नही बन पायेगी जबकि पूरी केन्द्र सरकार इस चुनाव में उतर चुकी है। सभी राज्यों के मुख्यमन्त्रीयों तक को भाजपा ने चुनाव में उतार दिया है। भाजपा का इस बार भी दिल्ली हारना पार्टी के लिये पहले से भी ज्यादा नुकसान देह होगा। इस हार का असर हर प्रदेश पर पड़ेगा और उसके बाद कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल सरकार के खिलाफ ज्यादा आक्रामक हो जायेंगे।
इस समय हिमाचल से मुख्यमन्त्री सहित भाजपा की एक बड़ी टीम दिल्ली में चुनाव प्रचार पर गयी हुई हैं इसी के कारण जनमंच जैसा कार्यक्रम आगे खिसकाना पड़ा है। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि दिल्ली का यह चुनाव प्रदेश सरकार और भाजपा के लिये क्या अर्थ रखता है। अभी दिल्ली में जिस तरह से नितिन गडकरी ने प्रदेश लोक निर्माण विभाग के सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव से कुछ बिन्दुओं पर जवाब तलबी करने के साथ ही मुख्यमन्त्री से भी नाराजगी जताई है उसको लेकर कई तरह की चर्चाएं चल निकली हैं। कुछ हल्कों में इसे परवाणु, शिमला फोरलेन के निर्माण के साथ जोड़कर देख रहे हैं क्योंकि कंपनी ने आगे काम करना बन्द कर दिया था और इसके कर्मचारी भी कंपनी के खिलाफ धरने प्रदर्शन पर बैठ गये थे जबकि फोरलेन के लिये तो पैसा केन्द्र दे रहा है। यह राज्य सरकार की कार्यप्रणली पर अपने में ही एक गंभीर सवाल हो जाता है। सरकार के बड़े बाबू किस तरह से काम कर रहे हैं इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब जयराम ने सत्ता संभाली थी तब चण्डीगढ़ में एक पत्रकार वार्ता में बड़ा दावा किया गया था कि चण्डीगढ़ से मिलने वाले हिस्से के लिये पूरे प्रयास करेंगे, यह संदेश दिया गया था कि सब कुछ तुरन्त मिल जायेगा लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ भी ठोस नजर नही आया है। इस तरह के कई प्रकरण हैं जहां सरकार की कारगुजारी औसत से भी बहुत कम है और आने वाले दिनों में यह सब कुछ सामने आता जायेगा।
पार्टी अध्यक्ष राजीव बिन्दल के खिलाफ कांग्रेस ने एक बार चार दिन तक सदन सुचारू रूप से चलने नही दिया था। आज बिन्दल को उसी कांग्रेस का बतौर अध्यक्ष सामना करना होगा। अभी तक वह सारे पुराने मसले अपनी जगह खड़े हैं। सरकार की भी ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नही है जिसके आधार पर राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित मान लिया जाये। बल्कि पिछले दिनों जाखू में एक मकान खरीद के प्रकरण में जिस तरह से कुछ नाम चर्चा में आ गये थे यदि ऐसे प्रकरण आने वाले दिनों में जन चर्चा का विषय बन जाते हैं तो कई लोगों के लिये परेशानीयां खड़ी हो जायेगी। इस परिदृश्य में बिन्दल वरिष्ठ नेताओं, सरकार और पार्टी में कैसे सन्तुलन बनाये रखते हैं इस पर सबकी निगाहें लगी रहेगी।