दो साल बाद पता लगा 45 करोड़ के दुरूपयोग का

Created on Tuesday, 24 December 2019 10:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार के सत्ता में दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर सरकार एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है। इसी रैली में सरकार अबतक की अपनी बड़ी उपलब्धियों का ब्योरा जनता के सामने रखेगी। यह ब्यौरा रखना सरकार का हक और दायित्व दोनो ही हैं लेकिन इसका आकलन प्रदेश की जनता करेगी कि हकीकत में उसके पास कितना और क्या पहुंचा है। क्योंकि सत्ता में बैठी हर सरकार को यही लगता है कि जो कुछ उसने किया है वही सही और आवश्यक था। आज कांग्रेस के शासनकाल में स्थापित और विकसित किये गये औद्यौगिक क्षेत्रों पर खर्च किये गये 45 करोड़ रूपये मुख्यमन्त्री की नजर में एकदम धन का दुरूपयोग रहा है। जिसकी जांच किया जाना आवश्यक है। लेकिन इतने बड़े धन के दुरूपयोग का पता मुख्यमन्त्री को दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद सीएजी की रिपोर्ट से चल पाया है। उन्हें इस दुरूपयोग की जानकारी उन अधिकारियों से नही मिल पायी है जो अधिकारी इसके लिये जिम्मेदार रहे हैं। जिस वित्त सचिव के हाथों इस पैसे की स्वीकृति दी गयी है वह इस सरकार में आज मुख्य सचिव हैं और सेवानिवृति के बाद रेरा के सर्वेसर्वा होने जा रहे हैं। सरकार की कार्यप्रणाली की जानकरी रखने वाले जानते हैं कि सरकार में पैसे के उपयोग और दुरूपयोग की बड़ी जिम्मेदारी वित्त विभाग की ही रहती है। ऐसे में जब मुख्यमन्त्री इस जांच की बात कर रहे हैं तो स्वभाविक रूप से यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या इन संवंद्ध अधिकारियों तक भी यह जांच पहुंचेगी या नही। क्योंकि मुख्यमन्त्री ने इस जांच की बात ऐसे समय में की है जब इन्वैस्टर मीट को लेकर विपक्ष पहले ही सरकार पर हमलावर हो चुका है।
सरकार की उपलब्धियों का आकलन हमेशा वित्तिय स्थिति के आईने में ही किया जाता है। यहां सरकार की स्थिति लगभग हर माह कर्ज लेने वाली रही है। कर्ज लेकर काम चालाना कोई अपराध नही है लेकिन जब कर्ज लेकर घी पीने वाली कहावत को अन्जाम दिया जाता है  तो स्थिति वैसी ही हो जाती है जो सीएजी ने इस 45 करोड़ के दुरूपयोग को लेकर की है। जब इन्वैस्टर मीट पर केन्द्र के 12 करोड़ को खर्च किये जाने का तर्क यह जायज ठहराने के लिये दिया जाता है कि यह पैसा प्रदेश सरकार का तो नही था। तब यह तर्क अपने में ही हास्यस्पद हो जाता है। इन्वैस्टर मीट सरकार का अब तक का सबसे बड़ा काम कर रहा है क्योंकि पूरा शीर्ष प्रशासन इसी के प्रबन्धन में व्यस्त रहा है। लेकिन जब इसी निवेश जुटाने के जुगाड़ में पर्यटन की सरकारी सपंतियों को निजि क्षेत्र को देने की योजना का खुलासा सामने आया तब सरकार एकदम इस पर बैकफुट पर आ गयी। पर्यटन सचिव को हटाकर पूरे मामले की जांच मुख्य सचिव से करवाने की घोषणा की गयी। लेकिन इस जांच का सच विधानसभा सत्र में आये सवाल के जवाब में सामने आया है। जब जवाब में यह 16 होटलों को लीज आऊट करने की बात दुर्भावपूर्ण मंशा से नही की गयी थी। संभव है औद्य़ौगिक क्षेत्रों के लिये हुए खर्च की जांच में भी ऐसी मंशा सामने आये।
आज दो वर्ष पूरे होने पर इस तथ्य को कैसे नजरअन्दाज किया जा सकता है कि इसी अवधि में भ्रष्टाचार के आरोप लगते हुए कई पत्रा सोशल मीडिया में वायरल होकर सामने आये हैं। इन्ही वायरल पत्रों की शिकायत पुलिस में पहुंची। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और जांच में भाजपा के ही एक पूर्व मन्त्री का मोबाईल फोन कब्जे में लिया गया। इस फोन की फारैन्सिक जांच रिपोर्ट आने के बाद बड़ा बवाल उठा लेकिन अन्त में सबकुछ दब गया। लेकिन क्या जनता इसको आसानी से भूल पायेगी शायद नही। विकास के नाम पर जिन राष्ट्रीय राज मार्गों को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता को परोसा गया था। वह अभी भी सिन्द्धात रूप की स्वीकृति से आगे नही बढ़ पाये हैं। बल्कि आज इस सबके लिये केन्द्र से चौदह हजार करोड़ मांगे गये हैं। शिक्षा के क्षेत्र में आयी प्रदेश उच्च न्यायालय की टिप्पणी से सारा खुलासा हो जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में केन्द्र की आयुष्मान भारत योजना से अवश्य कुछ लोगों को लाभ मिला है लेकिन प्रदेश सरकार चिकित्सा सहायता के नाम पर अब तक 208 लोगों को करीब दो करोड़ ही दे पायी है।
प्रशासन के नाम पर सरकार की बड़ी उपलब्धि अधिकारियों के आवश्यकता से अधिक तबादले रहे हैं इन तबादलों के परिणामस्वरूप कुछ अधिकारियों के गिर्द ही सरकार केन्द्रित होकर रह गयी है जबकि कुछ लगभग खाली बैठने जैसी स्थिति में पहुंच गये हैं इसी सबका परिणाम रहा है कि एक अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर की महिला अधिकारी मन्त्रीमण्डल की बैठक में रोने तक के हालात पैदा हो गये। नगर निगम में आयुक्त के साथ हुए अभद्रता के व्यवहार को लेकर मामला पुलिस तक पहुंच गया। अदालत के फैसलों पर वर्षों तक अमल नही हो रहा है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि न्यूनतम निविदा को छोड़कर अधिक दर वाले को काम दिया जा रहा है। बिलासपुर में निर्माणाधीन चल रहे हाईड्रो कालिज में इसी निविदा प्रकरण में आठ करोड़ का घपला कर दिया गया है। लेकिन इसकी जांच का जोखिम नही उठाया जा रहा है। ऐसे कई उदाहरण है।