उच्च न्यायालय के फैसले पर तन्त्र की कुण्डली

Created on Wednesday, 11 December 2019 08:50
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या लोकसेवा आयोग के सदस्यों को पैन्शन का अधिकार नही मिलेगा? यह सवाल प्रदेश सरकार के उस फैसले से चर्चा में आया है जब सरकार ने आयोग के सदस्यों सर्वश्री डा. मान सिंह, प्रदीप सिंह चौहान और मोहन चौहान के इस आश्य के आवेदनों को अस्वीकार कर दिया। सरकार के अस्वीकार के बाद इन लोगों ने प्रदेश उच्च न्यायालय में इस संबंध में एक याचिका दायर कर दी जिसका फैसला 16 अक्तूबर 2019 को इनके पक्ष में आ गया। लेकिन सरकार ने इस फैसले पर अमल करने की बजाये इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का मन बनाया है।
स्मरणीय है कि लोक सेवा आयोग के संद्धर्भ में 1974 में राज्यपाल ने फैसला लिया था "11-A: The Chairman or a Member, who at the date of his appointment as such was not in the service of the Central Government or a State Government, a Local Authority, A University, a Privately Managed Recognized School or Affiliated College or any other body wholly or substantially owned or controlled by the state Government of Himachal Pradesh shall on his ceasing to hold office as Chairman or Member be paid a pension for his life @ Rs. 300/- (Rupees three hundred per month) in the case of Chairman and Rs. 250/- (Rupees two hundred and fifty per month) in the case of Member for each completed year of service as Chairman or Member, as the case may be subject to maximum of Rs. 1800/- (Rupees one thousand one eight hundred) and Rs. 1500/- (rupees one thousand five hundred) per month in the case of Member”. इस फैसले के तहत प्रदेश लोकसेवा आयोग के चेयरमैन रहे ब्रिगेडियर एल एस ठाकुर को आयोग में दी गयी सेवा के लिये पैन्शन लाभ दिया गया था। आयोग का यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय में भी एक संद्धर्भ में पहुंच चुका है और वहां भी इसे बहाल रखा गया था। इसी आधार पर इन सदस्यों ने भी इसके लिये सरकार में आवेदन किया जिसे 19-4-17 को अस्वीकार कर दिया गया और उसके बाद इन्होंने उच्च न्यायानय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने इनकी याचिका एल एस ठाकुर की तर्ज पर स्वीकार कर ली। लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर अमल नही किया है और इसकी अपील में जाने का मन बनाया है।
स्वभाविक है कि जब सेवानिवृति के बाद अध्यक्ष नियुक्त हुए ब्रिगेडियर एल एस ठाकुर को यह पैन्शन लाभ मिल सकता तो स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद आयोग के सदस्यों को भी यह लाभ उसी तर्ज पर मिल जाना चाहिये। लेकिन सरकार इन अधिकारियों के मामले को एल एस ठाकुर के मामले से भिन्न मानती है और तीन बार अस्वीकार कर चुकी है। कार्मिक विभाग यह अस्वीकार रैगुलेशन छः के आधार पर कर रहा है लेकिन उच्च न्यायालय के 16 अक्तूबर के फैसले में रेगुलेशन छः का कोई उल्लेख ही नही है। इसलिये सरकार के इस अस्वीकार को अलग ही नजर से देखा जा रहा है। लोक सेवा आयोग में आज तक नियुक्त हुए अध्यक्ष और सदस्य अधिकांश में केन्द्र /राज्य सरकार/ सेना आदि से सेवानिवृत हुए अधिकारी ही नियुक्त हुए हैं और संयोगवश इनकी स्थिति यह रही है कि सेवानिवृति के समय यह पूरी पैन्शन के पात्र रहे हैं। इसलिये इन्हें रैगुलेशन 11। से कोई ज्यादा अन्तर नही पड़ता रहा है। वैसे भी पैन्शन की अवधारणा सामाजिक सुरक्षा की रही है और इसी अवधारणा का सरकार ने ओल्ड एज, अपंग और विधवा आदि सामाजिक पैन्शन की कई योजनाएं लागू की हैं।
1974 में लोक सेवा आयोग के सदस्यों के लिये रैगुलेशन 11। का प्रावधन भी संभवतः ऐसे सदस्यों के लिये किया गया था जो ऐसी नियुक्ति से पूर्व किसी भी तरह की ऐसी सेवा में रहे हों जिन्हें किसी भी रूप में कोई नियमित पैन्शन लाभ मिलता हो। संयोगवश आज तक प्रदेश लोक सेवा आयोग में शायद ऐसे चार-पांच लोग ही सदस्य नियुक्त हो पाये हैं जो ऐसी किसी सेवा में नही थे। इस समय भी लोकसेवा आयोग में एक ही ऐसी सदस्या हैं डा़ रचना गुप्ता। इनसे पूर्व के एस तोमर आयोग के अध्यक्ष रहे हैं वह भी किसी ऐसी सेवा से ताल्लुक नही रखते थे। चर्चा है कि इन लोगों ने पिछले दिनों सरकार को इस आश्य का कोई ज्ञापन दिया था और इनके ज्ञापन के बाद ही यह मुद्दा चर्चा और विवाद में आया है इसमें दिलचस्प तो यह है कि 1974 में जो 300 और 250 रूपये प्रतिमाह का प्रावधान किया गया था उसे आज तक रिव्यू ही नही किया गया है जबकि कर्मचारियों की पैन्शन मे मंहगाई भत्तों के अनुसार बढ़ौत्तरी होती है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में ऐसे सदस्यों को इसी तर्ज पर पैन्शन मिलती है। इस परिदृश्य में पैन्शन के इस मुद्दे पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।