उच्च न्यायालय ने मैहरा पर प्रतिबन्ध और स्टेट ब्रांच की विस्तृत जांच के दिये आदेश

Created on Wednesday, 11 December 2019 08:20
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने सीटू नेता विजेन्द्र मैहरा द्वारा नगर निगम शिमला के खिलाफ किसी भी धरना प्रदर्शन में भाग लेने पर रोक लगी दी है यह रोक लगाते हुए उच्च न्यायालय ने यह कहा है कि नगर निगम के किसी भी कार्य निष्पादन में मैहरा कोई बाधा खड़ी नही करेंगे। इस प्रतिबन्ध का आधार नगर निगम के उस शपथपत्र को बनाया गया है जिसमें निगम ने यह आरोप लगाया था कि मैहरा ने 7 दिसम्बर को निगम आयुक्त के कार्यालय में आकर कामकाज में बाधा पहुंचायी और अभद्रता की। इसके लिये उच्च न्यायालय ने मैहरा को शोकाॅज नोटिस भी जारी किया है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कारवाई की जाये। अदालत का प्रतिबन्ध विजेन्द्र मैहरा पर है सीटू पर नहीं, इसलिये उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद यह भी धरना प्रदर्शन जारी रहेगा यह स्पष्ट है क्योंकि पूरे सीपीएम ने नगर निगम कि खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भाजपा से पहले नगर निगम पर सीपीएम का कब्जा था इस नाते सीपीएम नेतृत्व को निगम की पूरी जानकारी है।
सीटू का आन्दोलन शहर की तहबाज़ारी समस्या को लेकर है। तहबाजारी को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने 2007 में कुछ दिशा निर्देश जारी किये थे। इन निर्देशों के बाद 2014 में स्ट्रीक वैन्डरज एक्ट बना। इस समय पूरे देश में स्थानीय निकाय इस एक्ट की अनुपालना सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं शिमला में भी इसी एक्ट की अनुपालना किये जाने को लेकर तहबाजारी धरना प्रदर्शन करने को बाध्य हुए है और इनका नेतृत्व सीपीएम का सीटू कर रहा है। उच्च न्यायालय में दायर अपने शपथपत्र में  नगर निगम ने स्वीकारा है कि अभी तक  केवल 168 तहबाजारीयों की सूची को ही अन्तिम रूप दिया जा सका है और 1065 अभी शेष हैं। सीटू का आरोप है कि तह बाजारीयों की संख्या 599 थी जिसे बढ़ाकर 1065 कर दिया गया और इसी में घपला हुआ है। इसी संबंध में सीटू का प्रतिनिधि मण्डल 7 दिसम्बर को आयुक्त से मिलने गया था। इसी मुलाकात में अभद्रता घटी जिसको लेकर सीटू नेताओं विजेन्द्र मैहरा, बाबू राम और किशोर ढटवालिया ने 8 दिसम्बर को पुलिस अधीक्षक शिमला को आयुक्त के खिलाफ एफआईआर दर्ज किये जाने के आग्रह की लिखित शिकायत कर दी। निगम आयुक्त ने उच्च न्यायालय में लंबित चल रहे एक मामले में इस अभद्रता को लेकर शपथपत्र दायर कर दिया जिस पर मैहरा के खिलाफ यह आदेश आया है। नगर निगम ने इसी शपथपत्र में यह भी स्वीकारा है कि निगम की खलीनी स्थित पार्किंग पिछले तीन वर्षों से अवैध रूप से आपरेट हो रही है। उच्च न्यायालय ने इस अवैधता का कड़ा संज्ञान लेने हुए पूरी स्पष्टता से कहा है कि ऐसी अवैधता नगर निगम प्रशासन की मिलीभगत के बिना संभव नही हो सकता। अदालत ने इस संबध में निगम की ऐस्टेट ब्रांच के खिलाफ विस्तृत जांच करके ब्रांच के हर कर्मचारी और विशेषकर अधीक्षक की भूमिका की जांच करने के निर्देश दिये हैं। In the reply filed by the Municipal Corporation, it is not in dispute that the parking at Khalini belonging to the Municipal Corporation was being carried out unauthorisedly for the last about 3 years. Obviously, the same could not have been done without the active connivance of the officials of the Municipal Corporation, more especially, the Estate Branch. Therefore, let the Municipal Corporation conduct a thorough inquiry qua the role of each of the official/officer posted in the said Branch, more particularly, the Superintendent of Estate and submit report by 31.03.2020.  स्वभाविक है कि तीन वर्षों तक ऐसी अवैधता निगम प्रशासन की मिलीभगत के बिना संभव नही हो सकती। सबसे बड़ी हैरानी तो इस बात की है कि तीन वर्षों तक यह अवैधता न तो महापौर और न ही निगम के शीर्ष प्रशासन के संज्ञान में आयी। क्या इस  अवैधता को इन बड़ों का भी संरक्षण प्राप्त था यह अपने में एक अलग जांच का विषय हो जाता है। इसी के साथ यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि जब उच्च न्यायालय ने एस्टेट ब्रांच की जांच करने के आदेश दिये हैं तो क्या प्रशासन अपने स्तर पर भी संबधित दोषियों के खिलाफ कारवाई करेगा।
सीपीएम नेता और निगम के पूर्व महापौर ने इसी पार्किंग को लेकर प्रशासन पर बड़े भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। एक आरोप में निगम में चौदह करोड़ का घपला होने की बात की गयी हैै। सीटू ने अपनी शिकायत में 6 दिसम्बर 2019 को हुई एफआईआर 187/19 का भी संद्धर्भ उठाया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि जब सीपीएम द्वारा लगाये गये आरोपों का संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने भी जांच के आदेश दिये हैं तो फिर सीटू के धरना प्रदर्शन को काम में बाधा पहुंचाने की संज्ञा कैसे दी जा सकती है।