जमानत के बाद क्या सक्सेना से ऊर्जा विभाग ले लिया जायेगा

Created on Monday, 02 December 2019 12:57
Written by Shail Samachar

 

शिमला/शैल। आईएनएक्स मीडिया प्रकरण में चिदम्बरम के साथ सह अभियुक्त बने वित्त मन्त्रालय के सभी छः अधिकारियों को अन्ततः इस मामले में जमानत लेनी पड़ी है। इन लोगों को अभी अदालत से अन्तरिम जमानत ही मिली है। अभी यह रैगुलर होना शेष है। इस मामले में हिमाचल सरकार के प्रधान सचिव प्रबोध सक्सेना भी एक सह अभियुक्त हैं क्योंकि वह उस समय वित्त मन्त्रालय में विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड के निदेशक थे। इस प्रकरण में सीबीआई और ईडी दोनों ने मामले दर्ज किये हुए हैं। सीबीआई प्रकरण में चिदम्बरम को जमानत मिल चुकी है और इसका चालान भी ट्रायल कोर्ट में दायर हो चुका है। सीबीआई प्रकरण में इन अधिकारियों को जमानत लेने की आवश्यकता नही पड़ी है।
लेकिन चिदम्बरम सीबीआई के बाद ईडी की हिरासत में चल रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय में उनकी जमानत याचिका पर फैसला रिजर्व चल रहा है। चिदम्बरम की जमानत का विरोध सीबीआई और ईडी सबसे अधिक इस पर कर रहे हैं कि वह बाहर निकलकर गवाहों और साक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं। चिदम्बरम प्रकरण में सहअभियुक्त बने इन अधिकारियों की भूमिका सरकार और सीबीआई तथा ईडी दोनो के लिये महत्वपूर्ण है। अभी तक इन अधिकारियों की ओर से यह नही आया है कि इनके ऊपर कभी चिदम्बरम का दवाब रहा है। अब ईडी प्रकरण में भी यह माना जा रहा है कि चिदम्बरम को जमानत मिल सकती है। इस परिदृश्य मे अब इन अधिकारियों को इस स्टेज पर जमानत की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या इनकी जमानत का ईडी और सीबीआई विरोध करेगी? यदि इन्हें रैगुलर जमानत नही मिलती है तो क्या इनकी गिरफ्तारी होगी? यह सारे सवाल एकदम खडे़ हो गये हैं।
ऐसे में प्रदेश सरकार के लिये एक बड़ा सवाल यह हो जायेगा कि अब अन्तरिम जमानत मिलने के बाद सक्सेना सीधे ओडीआई के दायरे मे आ जाते है। ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण संवेदनशील विभागों की जिम्मेदारी नही दी जानी चाहिये ऐसे निर्देश प्रदेश उच्च न्यायालय दे चुका है। इस परिदृश्य में यह चर्चाएं चलना शुरू हो गयी हैं कि क्या सरकार सक्सेना से ऊर्जा विभाग ले लेगी? क्योंकि इसमें अब कई निवेशक आयेंगे और उससे यह संवदेनशील विभाग हो जाता है।