दो साल बाद भी सरकार की गवर्नैन्स सवालों में

Created on Monday, 02 December 2019 11:43
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार को दिसम्बर में दो वर्ष पूरे होने जा रहे  हैं इस अवसर पर एक आयोजन भी आयोजित किया जा रहा है। इस नाते अब तक के कार्यकाल का एक अवलोकन आवश्यक हो जाता है। राजनीतिक तौर पर सत्ता में आने के बाद इस सरकार का पहला टैस्ट लोकसभा चुनाव हुए और उनमें चारों सीटें जीत कर सफलता हासिल कर ली। लेकिन इन्हीं लोकसभा चुनावों के कारण पांच माह बाद ही हुए दोनो विधानसभा उपचुनावों में एक जगह 13000 तो दूसरी जगह 11000 मतदाता सरकार का साथ छोड़ गये। लोकसभा चुनावों के परिणामस्वरूप ही दो मन्त्री पद खाली हुए लेकिन छः माह में भी इन पदों को भरा नही जा सका। यही नहीं नगर निगम शिमला में पार्षदों के जो स्थान मनोनयन से भरे जाने थे वह अबतक भरे नही जा सके। बहुत सारे निगमो/बोर्डों में भी कई ताजपोशीयां अभी तक नही हो पायी है। राजनीतिक संद्धर्भों में लंबित होते जा रहे इन फैसलों से सीधे यही संकेत उभरता  है कि इसमें सरकार और संगठन के भीतर कई तरह के दबाव और प्रति दबाव चले हुए हैं। अभी संगठन के चुनाव चल रहे हैं और प्रदेश के लिये नया अध्यक्ष चुना जाना है। भाजपा में संगठन के चुनावों में वोट से चयन के स्थान पर मनोनयन ही होता है यह अब तक की स्थापित परंपरा है। इस बार भी  ऐसा ही होगा यह स्वभाविक है। इसलिये प्रदेश अध्यक्ष के लिये किसका मनोनयन होता है उससे स्पष्ट हो जायेगा कि आने वाली राजनीतिक तस्वीर का रूख क्या होने जा रहा है।
 इस समय जो अध्यक्ष बनेगा उसका 2022 के विधानसभा चुनावों में बड़ा दखल रहेगा यह स्वभाविक है। पार्टी में बहुत सारे फैसले आरएसएस के निर्देशों से होते हैं यह भी सर्वविदित ही है। यह संघ का ही निर्देश था कि अब पचास से कम आयु के कार्यकर्ताओं को ही आगे बढ़ाया जायेगा हमीरपुर की बैठक में यह स्पष्ट रूप से सामने आ गया था। विधानसभा उपचुनावों के उम्मीदवारों का चयन भी इसी पैमाने पर किया गया था।
 इस मानदण्ड के अनुसार अगला अध्यक्ष भी इसी आयु वर्ग के आसपास  का होगा लेकिन इस समय जिस तरह से वायरल पत्रों के माध्यम से कथित भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उद्योग मन्त्री विक्रम सिंह और स्वास्थ्य मन्त्री विपिन परमार पर निशाना साधा जा रहा है उससे मुख्यमन्त्री की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं इनके अतिरिक्त परिवहन मन्त्री गोविन्द ठाकुर की पत्नी के चण्डीगढ़ में गाड़ी से अढ़ाई लाख चोरी होने का मामला घटा है उससे समस्या और गंभीर हो गयी है। इसी तरह सोलन में भी एक बड़े नेता की गाड़ी से पुलिस ने पिछले दिनों चिट्टा पकड़ा। इस पर केस बना जिसमें आगे चलकर रिकार्ड से गाड़ी तो बदल दी गयी परन्तु ड्राइवर के खिलाफ केस बना दिया गया। फिर उसी दौरान इसी नेता की खदान में मजदूरों के दबने का हादसा हो गया। इस हादसे पर कोई बड़ी कारवाई तो प्रशासन ने नहीं की लेकिन नेता के विरोधीयों ने यह सबकुछ हाईकमान तक पहुंचा दिया है। इस तरह जयराम सरकार कुछ अपने ही लोगों के खिलाफ उठ रही इस तरह की अंगुलियों से परेशान हो गयी है। संयोगवश विवादों में आने वाले यह सारे नेता मुख्यमन्त्री के विश्वस्त माने जाते हैं। प्रशासन ऐसे मामलों में कितनी समझदारी से काम ले रहा है यह पिछले वर्ष खली प्रकरण और इस बार एनजीओ साड़ा की  कारगुजारी से सामने आ चुका है। इस तरह राजनीतिक फलक पर घटे इस सबका एक ही संदेश जाता है कि गवर्नेन्स के नाम पर सरकार कमजोर ही चल रही है।
 प्रशासनिक स्तर पर भी स्थिति यह है कि अब तक के कार्यकाल में जितना प्रशासनिक फेरबदल हुआ है उससे अधिकारियों में यह भावना बन ही नही पायी कि वह इस पदभार पर लम्बे समय तक बने रहेंगे और इस नाते उन्हें परिणाम देने की नीयत और नीति से काम करना होगा। शीर्ष प्रशासन में कुछ लोगों के पास बहुत ही ज्यादा काम है तो कुछ लोग लगभग खाली बैठने जैसी स्थिति में चल रहे हैं। अब फिर प्रशासनिक फेरबदल चर्चाओं में है और इस बार मुख्यमन्त्री कार्यालय में भी पूरा ढांचा बदलने के कयास लगाये जा रहे हैं। मुख्यमन्त्री कार्यालय से जब से प्रैस सलाहकार को हटाया गया है तब से उस स्थान पर अब तक नयी नियुक्ति नही हो पायी है और न ही प्रदेश से निकलने वाले अखबारों के लिये कोई नीति बन पायी है। आज भी अधिकारी इसी बात पर लगे हुए हैं कि कुछ चैनलों पर मुख्यमन्त्री का साक्षात्कार प्रसारित करवा दो और कुछ मीडिया घरानों से सरकार को श्रेष्ठता के आवार्ड दिला दो। जैसा पिछली सरकारों में होता था उसी तर्ज पर अब हो रहा है। वह सरकारें भी श्रेष्ठता के सैंकड़ों अवार्ड लेकर सत्ता से बाहर हो गयी थी। इस तथ्य को यह प्रशासन भी मुख्यमन्त्री को समझने नही दे रहा है। जबकि आज जनता में उसी मीडिया की विश्वसनीयता है जो दस्तावेजी प्रमाणों के साथ तथ्यों को जनता के सामने रख रहा है। आज प्रशासन का एक वर्ग जिस तरह से मुख्यमन्त्री को गुमराह करके चल रहा है उसी का परिणाम है कि अब तक नये मुख्य सचिव को लेकर स्थिति  स्पष्ट नही है।
 इसी तरह वित्तिय मुहाने पर हालात हर रोज गंभीर होते जा रहे है। जहां केन्द्र सरकार किसान की आय दोगुणी करने के दावे कर रही है वहीं पर इस सरकार को रसोई गैस, पैट्रोल, डीजल और दूध के दाम बढ़ाने पड़े हैं। यह दाम उस समय बढ़ाये गये हैं जब ग्लोबल इन्वैस्टर मीट में आये निवेशकों के खाने- पीने, ठहरने और आने-जाने का सारा खर्च सरकार ने उठाया है। आज जब जीडीपी का आकलन 4.5ः पर आ गया है तो स्वभाविक है कि इस परिदृश्य में कोई निवेशक क्यों निवेश करने आयेगा। हाईड्रो परियोजनाओं पर लाहौल-स्पिति में जनाक्रोश उभर आया है वहां की जनता इसका विरोध कर रही है। सिरमौर में सीमेन्ट प्लांट के विरोध मे लोेग खड़े हो गये हैं।
ऐसे में यदि दो साल के कार्यकाल के बाद भी सरकार इस तरह की अनिश्चितताओं में घिरी रहेगी तो स्वभाविक रूप से पूरे प्रशासन पर ही सवाल खड़े होंगे। माना जा रहा है कि जिस तरह से प्रशासनिक और मन्त्री परिषद स्तर पर बड़े फेरबदल की चर्चाएं चल रही है उनमें बहुत संभव है कि जो मंत्री वायरल पत्रों के हमलों में राडार पर आ गये हैं उनमें से ही किसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का प्रयास मुख्यमन्त्री करेंगे क्योंकि यदि अब यह पत्र आने के बाद किसी मन्त्री को हटाया जाता है या उसके विभाग बदले जाते हैं तो यह अपरोक्ष में आरोपों को स्वीकारने जैसा ही होगा। इसलिये विक्रम सिंह, विपिन परमार और गोविन्द ठाकुर में से ही किसी एक का अध्यक्ष बनना तय है। इनमें जो अनुराग और नड्डा को भी स्वीकार्य होगा उसके बनने की संभावना ज्यादा होगी।