संगठन चुनावों के बाद भ्रष्टाचार को लेकर लड़ाई तल्ख होने की संभावना बढ़ी

Created on Tuesday, 19 November 2019 10:17
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश मन्त्रीमंडल में मन्त्रीयों के दो खाली चले आ रहे पदों को भरना मुख्यमन्त्री के लिये कठिन होता जा रहा है बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि इन पदों को भरने के साथ ही राजनीतिक बिस्फोट की संभावनाएं एकदम बढ़ जायेंगी। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि एक समय जब धूमल सरकार के खिलाफ कुछ लोगों ने शान्ता कुमार के अपरोक्ष नेतृत्व में मोर्चा खोला था और आरोपों का एक लम्बा-चौड़ा ज्ञापन तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को सौंपा था ठीक आज उसी तर्ज पर जयराम सरकार के खिलाफ तैयारियां चल पड़ी हैं। इन तैयारियों को हवा वायरल हुए उस पत्र की पुलिस जांच से मिली है जो किसी ने कथित रूप से शान्ता कुमार को लिखा था और उसमें कुछ मन्त्रीयों के खिलाफ आरोप लगाये गये थे। यह पत्र जब वायरल हो गया और अखबारों की खबर भी बन गया तब इस पत्र को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज हुई। इस शिकायत की जांच पूर्व मन्त्री रविन्द्र रवि तक पहुंच गयी तथा पुलिस ने उनका मोबाईल फोन कब्जे में ले लिया। इस फोन की जांच के बाद अब यह कहा जा रहा है कि यह रविन्द्र रवि के कहने पर वायरल किया गया था। पुलिस ने दावा किया है कि इस जांच के बाद वह शीघ्र ही इस मामले में चालान दायर करने जा रही है। पुलिस की ओर से यह जानकारी बाहर आने के बाद रविन्द्र रवि ने अपनी प्रतिक्रिया में यह मामला सीबीआई को सौंपे जाने की मांग करते हुए यह पड़ताल किये जाने की भी मांग की है कि यह पत्र लिखा किसने है इसका भी पता लगाया जाना चाहिये। इसके बाद रविन्द्र रवि की पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार से भी मुलाकात हुई है। रवि और धूमल के मिलने को भी इसी संद्धर्भ में देखा जा रहा है। इससे पहले कांगड़ा में अनुराग के साथ किश्न कपूर और इन्दु गोस्वामी का मिलना भी राजनीतिक संद्धर्भो में ही देखा जा रहा है। यह मिलना धर्मशाला में हुई इन्वैस्टर मीट के बाद हुआ है और इस मीट में अनुराग ठाकुर, किश्न कपूर और प्रेम कुमार धूमल की भूमिकाएं नहीं के बराबर रही हैं। बल्कि इस मीट में अपने सत्र को संबोधित करते हुए अपरोक्ष इसके आयोजको को अपनी नाराज़गी भी बड़े शब्दों में सामने रख दी थी। उस  सत्र में मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव संजय कुण्डु मौजूद थे और अनुराग का इंगित भी शायद उन्हीं की ओर था क्योंकि मीट के प्रबन्धन में प्रधान सचिव की भूमिका अग्रणी कही जा रही है। इस मीट से पहले ही जयराम के खेलमन्त्री गोविन्द ठाकुर और अनुराग ठाकुर में क्रिकेट स्टेडियमों को लेकर जिस तरह की ब्यानबाजी रही है उसके परिणाम भी राजनीतिक समीकरणों की ओर ही ईशारा करते हैं गोविन्द ठाकुर और मुख्यमन्त्री के रिश्ते तो इसी से सामने आ जाते हैं जब मानसून सत्र में घाटे में चल रही एचआरटीसी द्वारा मुख्यमन्त्री को गाड़ी भेंट किये जाने की चर्चाएं चली थी। मुख्यमन्त्री अधिकारियों के दवाब में चल रहे हैं यह आरोप वरिष्ठ नेता महेश्वर सिंह भी एक ब्यान में लगा चुके हैं। यही नहीं पिछले कुछ अरसे से मण्डी में एक वर्ग आरटीआई के माध्यम से आईपीएच मन्त्री मेहन्द्र सिंह ठाकुर को लेकर भी कई आरोप उछाल चुका है जिनमें यह कहा गया है कि महेन्द्र सिंह मुख्यमन्त्री के चुनाव क्षेत्र सिराज और अपने चुनावक्षेत्र धर्मपुर में ही भेदभाव की राजनीति कर रहे हैं। इन्ही आरोपों में एक आरोप 45 लाख रूपया अब तक खाने आदि पर ही खर्च कर देने का लगाया गया है।
 अब जिस तरह से इस वायरल पत्र को लेकर चल रही जांच में रवि केन्द्रित होते जा रहे हैं निश्चित रूप से उसका परिणाम राजनीतिक विस्फोटक ही होगा। इस पत्र में जो आरोप लगाये गये हैं वह कितने प्रमाणिक हैं यह तो किसी जांच से ही पता चलेगा जो अब तक हुई नहीं है। लेकिन इन आरोपों से हटकर जहां पैसे के दुरूपयोग के दस्तावेजी आरोप सामने हैं लेकिन फिर भी उन आरोपों की जांच न हो तो स्वभाविक है कि इससे कुछ लोगों की ओर अंगुलियां उठेंगी ही। इनमें बिलासपुर में बन रहे हाइड्रो कालिज के निर्माण के लिये आमन्त्रित टैण्डर में 92 करोड़ के रेट को छोड़कर 100 करोड़ का रेट देने वाले को काम आबंटित कर दिया गया और  इस तरह टैण्डर आबंटन में ही आठ करोड़ का घपला कर दिया गया। यह आठ करोड़ किसकी जेब में जायेगा इसको लेकर कई चर्चाएं चल रही हैं लेकिन इसमें जांच करवाने की बात नहीं की जा रही है। इसी तरह राजकुमार राजेन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर अमल नही हो रहा है जबकि यह फैसला सितम्बर 2018 में आ चुका था और इसमें दो माह के भीतर अमल होना था। राज्य में बन रहे तीन मेडिकल कालेजों का निर्माण लोक निर्माण विभाग को छोड़कर केन्द्रिय सरकार की ऐजैन्सीयों को बिना टैण्डर आमन्त्रित किये ही दे दिया गया है। केन्द्रिय ऐजैन्सीयों में किस तरह का भ्रष्टाचार व्याप्त है इसका पता एनपीसीसी से चल जाता है भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते यह ऐजैन्सी सीबाआई के शिकंजे में है और इसे भंग करके इसका विलय एनवीसीसी में कर दिया गया है। हाईड्रो कालिज का निर्माण इसी एनपीसीसी को दिया गया था। ऐसे दर्जनों मामले है जहां राज्य सरकार के पैसे का खुला दुरूपयोग हो रहा है लेकिन जांच करने का साहस नही किया जा रहा है। एशियन विकास बैंक द्वारा सौंदर्यकरण के नाम पर शिमला के दोनों चर्चों को दिया गया करीब 21 करोड़ रूपया कहां गया है इसकी आज तक कोई जानकारी सामने नही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनो में भ्रष्टाचार के यह मामले राजनीतिक विस्फोट में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। सूत्रों की माने तो संगठन चुनावों के बाद पार्टी के अन्दर चल रही खेमेबाजी खुलकर सामने आ जायेगी और भ्रष्टाचार इस लड़ाई में केन्द्रिय बिन्दु होगा।