शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड की कर्मचारी यूनियन ने राज्य सरकार को एक पत्रकार वार्ता के माध्यम से सीधी चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगे न मानी गयी तो बोर्ड के दस हजार कर्मचारी प्रदेश सचिवालय का घेराव करने को बाध्य हो जायेंगे। बोर्ड कर्मचारी इस घेराव के रास्ते पर आने के लिये तब विवश हुए हैं जब मुख्यमन्त्री उनके सम्मेलन में आने का न्योता स्वीकार करने के बाद भी नहीं पहुंचे। स्वभाविक है कि यदि मुख्यमन्त्री इस सम्मेलन में पहुंच जाते तो यह कर्मचारी उनके सामने अपनी मांगो के साथ-साथ बोर्ड के भीतर की असली तस्वीर भी उनके सामने रखते जिसे शायद प्रबन्धन सार्वजनिक नहीं होने देना चाहता है।
कर्मचारी यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह खरबाड़ा ने बोर्ड केअध्यक्ष ई0 जेपी काल्टा को तुरन्त उनके पद से हटाने की मांग की है। स्मरणीय है कि बोर्ड अध्यक्ष अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद भी इसी पद पर बने हुए हैं। यूनियन ने आरोप लगाया है कि अध्यक्ष राजस्व की उगाही में भी पूरी तरह से विफल रहे हैं और उनके कार्यकाल में बोर्ड में भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर पहुंच चुका है। भ्रष्टाचारियों को सजा देने के स्थान पर उन्हे संरक्षण दिया जा रहा है। राजस्व की उगाही का एक बड़ा खुलासा सोलन में सामने आया है जहां पर 29,81,869.95 पैसे के बिजली के बिलों का भुगतान लम्बे समय से लटका हुआ है लेकिन यह भुगतान न होने पर भी इनके बिजली कनैक्शन नहीं काटे जा रहे हैं।
यूनियन ने यह भी आरोप लगाया है कि फील्ड मे काम कर रहे कर्मचारियों को आवश्यक उपकरणों के बिना काम करना पड़ रहा है जिसके कारण दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही है। पिछले दो वर्षों में ही इन उपकरणों की कमी के कारण 50 से अधिक दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन प्रबन्धन को इन हादसों की कोई चिन्ता नही है। कर्मचारी यूनियन ने बोर्ड में खाली पड़े 7000 पदों को शीघ्र भरने और निजिकरण को तुरन्त बन्द करने की मांग की है। बोर्ड में पिछले दिनों 48 श्रेणियों के कर्मचारियों के वेतन मान कम किये जाने पर कड़ा रोष जताते हुए इसे तुरन्त प्रभाव से बहाल करने की मांग की है। कर्मचारी 2003 के बाद भर्ती किये कर्मचारियों के लिये भी पुरानी पैन्शन योजना बहाल किये जाने की मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि यदि कर्मचारियों की मांगो का समय रहते हल न किया गया तो यह आन्दोलन 1990 के शान्ता कुमार के कार्यकाल में हुए बड़े आन्दोलन का कारण बन जायेगा क्योंकि आऊट सोर्स कर्मचारी वीरभद्र सरकार के समय से ही अपने लिये सीधी सरकारी नौकरी की मांग करते आ रहे हैं और आज भी वह बड़े संघर्ष के लिये तैयार है।