शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा की दो सीटों के लिये हुए उपचुनावों के परिणाम भविष्य की राजनीति पर निर्णायक प्रभाव डालेंगे यह तय है क्योंकि लोकसभा चुनावों के छः माह के अन्दर ही यह उपचुनाव आ गये हैं। इन उपचुनावों में जहां जयराम सरकार के अब तक के कामकाज पर लोग फतवा देंगे वहीं पर इस बात की भी परख हो जायेगी कि इन छः महीनों में मोदी सरकार के प्रभाव में कितनी कमी या बढ़ौत्तरी हुई हैं। इसी के साथ जनता की सामान्य समझ का भी पता चल जायेगा कि विपक्षी नेतृत्व के अभाव में उसे अपने तौर पर राष्ट्रीय और प्रादेशिक मुद्दों की कितनी समझ आ पायी है।
उपरोक्त संद्धर्भ में यदि इस उपचुनाव की समीक्षा की जाये तो सबसे पहले जयराम सरकार के अब तक के कामकाज का सवाल आता है। प्रदेश सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब उसे किस तरह की आर्थिक विरासत मिली थी उसको लेकर यह सरकार कोई श्वेतपत्र प्रदेश की जनता के सामने नही रख पायी है। इसलिये आज यह सरकार खराब आर्थिक स्थिति का कोई कवर नही ले सकती है। अब अगर सरकार की आर्थिक सेहत की बात की जाये तो सरकार केवल कर्ज के सहारे ही चली हुई है। हर माह सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है यह तथ्य विधानसभा सत्रों में इस संद्धर्भ में पूछे गये सवालों के जवाबों से हर बार सामने आ चुका है और शैल यह आंकड़े हर बार अपने पाठकों तक पहुंचाता रहा है। आर्थिक स्थिति के बाद यदि रोजगार की उपलब्धता की बात की जाये तो प्रतिवर्ष जितने सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत हुए हैं उतने उनके स्थान पर नये भर्ती नही हो पाये हैं। जो भी थोड़ा बहुत रोजगार दिया गया है वह आऊट सोर्स के माध्यम से दिया गया है और उसमें यहां तक आरोप लग चुके हैं कि सरकार के मन्त्री तक आऊट सोर्स के ऐजैन्ट बने हुए हैं। प्रदेश विश्वविद्यालय और राज्य बिजली बोर्ड इसके सबसे बड़े प्रमाण के रूप में सामने हैं। सरकार के विभागों की परफारमैन्स का अन्दाजा इसी से लग जाता है कि शिक्षा विभाग में मेधावी बच्चों को यह सरकार अब तक लैपटाॅप नहीं दे पायी है। यही नहीं बच्चों को दी जाने वाली मुफ्त बर्दी की भी यही कहानी है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में जिलावार जो रैंकिंग स्वयं अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य ने पत्रकारों के सामने रखी है उसमें मुख्यमन्त्री के अपने जिले की रैंकिंग से ही पता चल जाता है।
लोक निर्माण विभाग मुख्यमन्त्री के अपने पास है। सरकार प्रदेश में तीन मैडिकल काॅलिजों का निर्माण करवा रही है लेकिन यह निर्माण कार्य अपने लोक निर्माण विभाग से न करवा कर केन्द्र सरकार के उपक्रमों से करवाया जा रहा है और उसमें खुली टैण्डर प्रक्रिया को सरकारी उपक्रम के नाम पर नजरअन्दाज कर दिया गया है जबकि प्रदेश सरकार के अपने निर्देशों और उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तथा सीबीसी के निर्देशों के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता। केन्द्रिय उपक्रमों की कार्यशैली का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिलासपुर के बन्दला में हाईड्रो कालिज का निर्माण किया जा रहा है इसके लिये भारत सरकार ने पैसा दिया है और सचिव तकनीकी शिक्षा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी हुई है। इस निर्माण के लिये जब निविदायें आमन्त्रित की गयी तब भारत सरकार के उपक्रम एनपीसीसी ने इसमें भाग लिया और उसके रेट कम होने से काम उसको आवंटित हो गया। लेकिन जब आगे एनपीसीसी ने ठेकेदारों से इसके लिये निविदायें मांगी तो इस केन्द्र के उपक्रम ने न्यूनतम दर 92 करोड़ को नजरअन्दाज करके 100 करोड़ की दर वाली कंपनी को काम दे दिया और टैण्डर आवंटन में ही प्रदेश सरकार को आठ करोड़ का चुना लग गया। संवद्ध प्रशासन के संज्ञान में है यह सबकुछ लेकिन इस पर कोई कारवाई नही हो रही है। मान जा रहा है कि मैडिकल कालिज के निर्माण में भी इसी तरह का कुछ घट सकता है। इस प्रकरण से सरकार के खिलाफ विभिन्न वायरल हुए पत्रों के माध्यम से भ्रष्टाचार के जो आरोप अब तक लगे हैं उन्हें स्वतः ही प्रमाणिकता हासिल हो जाती है।
प्रशासनिक स्तर पर तो अधिकारियों के करीब हर माह हो रहे तबादलों का रिकार्ड सबकुछ ब्यान कर देता है। शायद इसी प्रशासनिक परामर्श के कारण सरकार इस पूरे साल इन्वैस्टर मीट क माध्यम से निवेश जुटाने के प्रयासों में लगी हुई है। इसी सरकार के कार्यकाल में कितना निवेश सही में आ पाता है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। जबकि अब तक केन्द्र द्वारा घोषित राष्ट्रीय उच्च मार्ग अभी तक कोई शक्ल नहीं ले पाये हैं। ऐसे कई और उदाहरण हैं। इसलिये इस परिदृश्य में हुए इन उपचुनावों के परिणाम प्रदेश के भविष्य की राजनीति को प्रभावित करेंगे यह तय है। क्योंकि केन्द्र सरकार का धारा 370 हटाना और तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं को निजात दिलाना, मंहगाई और बैंकिंग क्षेत्र पर आये संकट के साये तले बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं रह जाते हैं। इसलिये इन उपचुनावों के बाद नड्डा, अनुराग और जयराम के नाम से उभरे तीनों सत्ता केन्द्रों में संघर्ष का शुरू होना अवश्यंभावी है। फिर इस उपचुनाव में जिस तरह से शांता कुमार के पुतले तक जलाने और उनके धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने को लेकर आये ब्यान से राजनीतिक विवाद उभरा है उसकी भी प्रभावी भूमिका रहेगी यह तय है। इसलिये यह चुनाव परिणाम मुख्यमन्त्री की राजनीतिक सेहत पर सीधा प्रभाव डालेंगे यह स्पष्ट है।