इन्वैस्टर मीट पर मुकेश ने मांगा श्वेतपत्र -उपचुनावों में मुकाबला हुआ तिकोना

Created on Monday, 14 October 2019 15:36
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। देश में 442 विधानसभा सीटों के लिये चुनाव हो रहा है जिसमें 288 सीटें महाराष्ट्र और 90 सीटें हरियाणा विधानसभा की हैं। शेष 64 सीटों पर विभिन्न राज्यों में उपचुनाव हो रहे हैं। इन्ही में हिमाचल की भी दो सीटें पच्छाद और धर्मशाला में उपचुनाव हो रहा है। लोकसभा में 303 सीटों का आंकड़ा हासिल करने वाली भाजपा के लिये यह चुनाव शायद एक नयी चुनौती बन गये हैं क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमितशाह इन्हे तीन तलाक और धारा 370 को हटाये जाने की उपलब्धि के गिर्द केन्द्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री की विपक्ष को यह चुनौती की यदि उसमें साहस है तो धारा 370 फिर से लगाने की घोषणा करें। विपक्ष मोदी-शाह की इस चुनौती का कैसे और क्या जवाब देता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन मोदी की यह चुनौती विपक्ष से ज्यादा आम आदमी की समझ और उसके धैर्य के लिये भी एक कसौटी होगा। क्योंकि आर्थिक मंदी में नौकरियों पर मण्डराता खतरा और प्याज-टमाटर के बढ़ते दामों का तीन तलाक और धारा 370 से परोक्ष/अपरोक्ष में कोई वास्ता नही है।
यह चुनाव विधानसभा के लिये हो रहे हैं इस नाते इन चुनावों में राज्य सरकारों की कारगुजारी की समीक्षा ही मुख्य मुद्दा रहना चाहिये। इस परिप्रेक्ष में यदि प्रदेश की दोनों सीटों का आकलन किया जाये तो सबसे पहले यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनांे ही सीटों पर भाजपा अपने विद्रोहीयों को चुनाव मैदान से हटाने में सफल नही हो पायी है। भाजपा के इन विद्रोहीयों के कारण दोनांे जगह मुकाबला तिकोना हो गया है। भाजपा को इस उपचुनाव में विधानसभा अध्यक्ष को प्रचार में उतारना पड़ा है। इसको लेकर चुनाव आयोग नोटिस तक जारी कर चुका है। मुख्यमन्त्री विधानसभा अध्यक्ष का बचाव करने को मजबूर हो गये हैं। इसी के साथ जो शान्ता कुमार सक्रिय राजनीति से सन्यास की घोषणा कर चुके हैं उन्हे भी अब चुनाव प्रचार में उतारा गया है। पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद धूमल जिस तरह से हाशिये पर धकेल दिये गये थे वह जंजैहली प्रकरण से लेकर अब अनुराग ठाकुर की प्रदेश यात्राओं के दौरान भाजपा के एक बड़े वर्ग का उनकी सभाओं से दूरी बनाये रखना बहुत कुछ ब्यान कर देता है। इसके बावजूद भी धूमल चुनाव प्रचार में उतर गये हैं।
लेकिन अभी इन्ही चुनावों में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर प्रदेश में जिस बड़े अन्दाज में लेकर आये उस अन्दाज की हवा बिलासपुर और मण्डी की सभाओं में पूरी तरह निकल कर बाहर आ गयी है। क्योंकि इन दोनों ही स्थानों पर जनता की हाजिरी आशाओं से कहीं बहुत कम थी। बिलासपुर नड्डा का अपना घर था तो मण्डी मुख्यमंत्री का अपना घर था। मण्डी की दसों सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई है इसलिये यहां नड्डा की रैली के लिये पचास हजार की भीड़ का लक्ष्य रखा गया था। मण्डी के जिस सेरी मंच पर यह आयोजन रखा गया था वह मंच तो 3500 लोगों के साथ ही भर जाता हैै लेकिन जो तस्वीरें बाहर आयी हैं उनमें मंच पर भी खाली जगह रही है। मण्डी में हाजिरी का कम होना क्या किसी तय योजना का हिस्सा था या जनता के मोह भंग का संकेत है इसको लेकर कई चर्चाएं चल निकली हैं। लेकिन यह सभांए निश्चित रूप से राष्ट्रीय अध्यक्ष की गरिमा से कहीं कम थी। शायद इसी कारण नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार अपने प्रदेश में आने पर न ही तो पत्रकार वार्ता करके गये और न ही उपचुनावों में कोई जनसभा करके गये।
ऐसे में इन उपचुनावों में सरकार के पास उपलब्धि के रूप में इन्वैस्टर मीट के माध्यम से 77000 करोड़ से अधिक के निवेश के आश्वासनों के समझौता ज्ञापनों से हटकर कुछ नही है। इन्वैस्टर मीट में हुए एम ओ यूज पर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोाी ने सरकार से श्वेत पत्र जारी करने की मांग करके एक बहुत बड़ी चुनौतीे खड़ी कर दी है। क्योंकि सरकार ने यह निवेश जुटाने के लिये निवेशकों को जिस तरह की सुविधायें प्रदान करने और इसके लिये जिस हद तक नियमों का सरलीकरण करने की बात की है उससे भविष्य में प्रदेश के लिये ही कई समस्यांए खड़ी हो जाने की आशंका है। क्योंकि पर्यावरण को लेकर जिस स्तर की चिन्ताएं एन.जी.टी. से लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय जाहिर कर चुके हैं उनके परिदृश्य में यह शंकाएं बढ़ जाती हैं। स्की विलेज परियोजना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
इसी के साथ अभी जो एसजेवीएनएल के साथ 18165 करोड़ के एमओयू साईन किये गये हैं उसमें सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है कि एसजेवीएनएल तो राज्य सरकार का हीे एक पीएसयू है। हिमाचल सरकार इसमें भागीदार है। फिर लूहरी और सुन्नी की परियोजनाओं पर तो यह उपक्रम एक दश्क से काम कर रहा है और धौला सिद्ध भी इसे 2011 में आबंटित हो गया था। ऐसे में इन्हंे नये एमओयू के रूप में प्रचारित करने का कोई औचित्य नही रह जाता है। इसी कड़ी में मुकेश अग्निहोत्री ने सरकार से पूछा है कि उन 63 राष्ट्रीय उच्च राजमार्गों का क्या हुआ है जिसकी घोषणा बड़े पैमाने पर नितिन गडकरी ने की थी और इस संद्धर्भ में नड्डा को लिखा पत्र भी मीडिया को जारी किया गया था। माना जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष द्वारा श्वेत पत्र की मांग सरकार के समीकरणों को बिगाड़ सकती है।