रेनबो सुरक्षा इन्टरप्राईज पर लगा करोड़ो के घपले का आरोप

Created on Monday, 23 September 2019 14:10
Written by Shail Samachar

 

शिमला/शैल। पिछले दिनों वायरल हुए एक पत्र में स्वास्थ्य विभाग औरं मंत्री की कार्यप्रणाली पर लगे सवालों के बाद अब इन्दिरा गांधी मैडिकल कालिज प्रबन्धन कालिज में तैनात सुरक्षा कर्मीयों को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल सीटू के राज्यध्यक्ष विजेन्द्र मेहरा ने लगाये हैं। आईजीएमसी में सुरक्षा प्रदान करने का काम एक सिक्योरिटी ऐजैन्सी रेनबो इन्टरप्राईज को दिया गया है। आरोप है कि इस ऐजैन्सी ने 187 लोग सुरक्षा में रखने थे लेकिन रखे सिर्फ 137 ही हैं और सरकार से 187 के पैसे लिये जा रहे हैं। इस तरह 50 सुरक्षा कर्मीयों के नाम पर लिया जा रहा पैसा सीधा भ्रष्टाचार है। सीटू नेताओं विजेन्द्र मेहरा और रमाकांत मिश्रा के मुताबिक तीन करोड़ के ठेके में एक करोड़ रुपए से ज्यादा घपला कर दिया गया है। इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के मुख्यन्यायाधीश को जांच की मांग को लेकर सीटू की ओर से चिट्ठी भी लिखी जा रही है। मेहरा ने सवाल उठाए कि 187 सुरक्षा कर्मियों की निर्धारित संख्या में से 50 कम सुरक्षा कर्मियों का एक का 48 लाख रुपए, ईएसआई के मेडिकल फंड का 12 लाख रुपये, ईपीएफ का साढ़े 21 लाख रुपये, सुरक्षा कर्मियों की छुट्ट्टियों के 15 लाख रुपये किसके खाते में चले गए। इसके अलावा सबसे कम अनुभव, योग्यता व गुणवत्ता के बावजूद रेनबो कम्पनी को ठेका कैसे मिला। व इतनी सारी अनियमितताओं के बावजूद रेनबो कम्पनी को एक साल के बाद ठेके की अवधि खत्म होने के बावजूद अवधि विस्तार कैसे और क्यों दी गयी।
उन्होंने कहा कि हिमाचल जोन के ईएसआई राज्य निदेशक की ओर से रेनबो कम्पनी पर ईएसआई के लाखों रुपये के गबन की रिपोर्ट देने के बावजूद रेनबो कम्पनी आईजीएमसी में कैसे अपना कार्य जारी रखे हुए है। इस पूरे मामले में घोटालों का सूत्रधार कौन है। टेंडर वितरण के समय बिना लाइसेंस के रेनबो कम्पनी को ठेका कैसे व किन नियमों के तहत दिया गया। इस कम्पनी का श्रम विभाग में पंजीकरण व लाइसेंस ठेका मिलने के लगभग एक साल बाद अगस्त 2019 में बना जो नियमों के पूरी तरह विपरीत था।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि ठेके के आवंटन के समय जमा की जाने वाली 26 लाख रुपए की राशि या मार्जिन मनी जमा न होने के बावजूद भी यह ठेका रेनबो कम्पनी को क्यों दिया गया।  रेनबो कम्पनी ने काॅन्ट्रैक्ट की शर्तों के अनुसार आज तक मजदूरों की हाजिरी के लिए बायोमेट्रिक क्यों नहीं लगाए।
इसके अलावा ठेके की शर्तों के अनुसार सुपरवाइजर के चार पद सृजित थे व जिनका वेतन 40 हजार रुपए तय था। इसी तरह मुख्य सुरक्षा अधिकारी का वेतन 50 हजार रुपये तय था। उन्हें केवल 18 से 23 हजार रुपये वेतन देकर इन पांच लोगों के वेतन से हर साल लगभग 14 लाख रुपये का घोटाला किया जा रहा है, उस पर प्रबंधन क्यों खामोश है।
आईजीएमसी की रेड क्राॅस बिल्डिंग जोकि असुरक्षित घोषित की जा चुकी है उसमें रेनबो कम्पनी को कमरे देने की मेहरबानी के पीछे क्या मुख्य कारण है। अगर भविष्य में यह बिल्डिंग अचानक गिर जाए व किसी की मौत हो जाये तो क्या उसकी जिम्मेवारी आइजीएमसी प्रबंधन व रेनबो कम्पनी लेगी। कहीं असुरक्षित घोषित किये गए रेड क्राॅस भवन के इन कमरों को अनैतिकता के कार्यों के लिए तो नहीं इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन सभी घोटालों व अनियमितताओं के बावजूद भी रेनबो कम्पनी का ठेका क्यों बरकरार है। विजेन्द्र मेहरा ने इस प्रकरण की जांच करवाये जाने को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय को यह पत्र लिखा है।
मेहरा ने जांच के लिये लिखा उच्च न्यायालय को पत्र
माननीय मुख्य न्यायधीश,
उच्च न्यायालय,
हिमाचल प्रदेश,शिमला।
 
विषय : आईजीएमसी शिमला में न्यायिक जांच के विषय में।
 
महोदय
             विनम्र निवेदन यह है कि आईजीएमसी शिमला पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार व अनियमितताओं का अड्डा बना हुआ है। आईजीएमसी शिमला में सुरक्षा कार्य को कार्यान्वित करने के लिए आईजीएमसी प्रबंधन द्वारा रेनबो कम्पनी को दिए गए कुल तीन  करोड़ रुपये के ठेके में एक वर्ष में लगभग एक करोड़ 10 लाख रुपये का घोटाला व  अन्य अनियमितताएं हुई हैं। इसलिए इस विषय पर आप स्वयं अथवा उच्च न्यायालय के किसी माननीय न्यायधीश से न्यायिक जांच करवाने का कष्ट करें। मैं आपका अत्यंत आभारी हूँगा।
               मान्यवर,आईजीएमसी में जिस रेनबो सिक्योरिटी एंटरप्राइज को सिक्योरिटी का ठेका दिया गया है,उसका आबंटन नियमों के विपरीत हुआ है। योग्यता में ऊपर कई कम्पनियों को बाहर करके प्रबंधन की मिलीभगत से इस कार्य को अनुभव व गुणवत्ता में सबसे नीचे रेनबो कम्पनी को दे दिया गया। भ्रष्टाचार की शुरुआत यहीं से हुई व जो लगातार बढ़ती गयी। इस कम्पनी को जो कॉन्ट्रैक्ट दिया गया,उसकी सेवा शर्तों के अनुसार कुल 187 सुरक्षा कर्मचारियों का ठेका इस कम्पनी को दिया गया। परन्तु इस कम्पनी ने केवल 137 लोग कार्य पर नियुक्त किये। इस कम्पनी के प्रबंधन ने 50 कम लोग इस कार्य पर लगाए व प्रबंधन के साथ मिलकर  आईजीएमसी के इतिहास में सबसे बड़े घोटाले को जन्म दिया।
            मान्यवर, इस ठेके में 50 लोगों की कम भर्ती करके कम्पनी प्रबंधन हर साल 48 लाख रुपये का घोटाला कर रहा है। यह पैसा रेनबो सिक्योरिटी कम्पनी प्रदेश सरकार व आईजीएमसी प्रबंधन से ले रही है परन्तु 50 सुरक्षा कर्मियों की भर्ती न होने से यह पैसा रेनबो सिक्योरिटी की जेब में जा रहा है। इस कम्पनी ने पिछले एक वर्ष में मजदूरों के ईएसआई मेडिकल फंड का 12 लाख 11 हज़ार 760 रुपये सिक्योरिटी कर्मियों के खाते में नहीं डाला है। इसी तरह 21 लाख 54 हज़ार 240 रुपये की मजदूरों की एक वर्ष की ईपीएफ राशि कम्पनी प्रबंधन ने जमा नहीं करवाई है। मजदूरों की छुट्टियों का लगभग 14 लाख 96 हज़ार रुपये कम्पनी प्रबंधन खा  गया है। कुल चार सुपरवाइजरों के वेतन में एक वर्ष में लगभग 14 लाख रुपये का डाका डाला गया है। इस तरह कुल मिलाकर एक करोड़ 10 लाख रुपये के महाघोटाले को रेनबो कम्पनी ने अंजाम दिया है जिसे आईजीएमसी प्रबंधन का खुला समर्थन रहा है। कुल ठेका राशि की 40 प्रतिशत राशि रेनबो कम्पनी व आईजीएमसी प्रबंधन हड़प कर गए हैं। इस तरह आईजीएमसी भ्रष्टाचार का केंद्र बना हुआ है। इस भ्रष्टाचार में ठेकेदार के साथ आईजीएमसी प्रबंधन की भूमिका की जांच भी  आवश्यक है।
 जांच के बिंदु
1. 187 कुल सुरक्षा कर्मियों की निर्धारित संख्या में से 50 कम सुरक्षा कर्मियों के एक वर्ष में 48 लाख रुपये के गबन की जांच की जाए।
2. ईएसआई के मेडिकल फंड का 12 लाख रुपये के गबन की जांच की जाए।
3. ईपीएफ का साढ़े 21 लाख रुपये के गबन की जांच की जाए।
4. सुरक्षा कर्मियों की छुट्टियों का 15 लाख रुपये के गबन की जांच की जाए।
5. सबसे कम अनुभव,योग्यता व गुणवत्ता के बावजूद रेनबो कम्पनी को ठेका मिलने की मिलीभगत की जांच की जाए।
6. इतनी सारी अनियमितताओं के बावजूद रेनबो कम्पनी को एक साल के बाद ठेके के अवधि खत्म होने के बावजूद एक्सटेंशन देने की जांच की जाए।
7.  माननीय उच्च न्यायालय के दिशादनिर्देश पर राज्य के ठेका मजदूरों व विशेष तौर पर आईजीएमसी के कर्मचारियों के मुद्दे पर 5 अगस्त 2019 को हिमाचल प्रदेश के श्रम मंत्री की अध्यक्षता में हुई संविदा श्रम सलाहकार समिति की बैठक व बाद में उसके निर्देश पर श्रमायुक्त हिमाचल प्रदेश के निर्देश पर संयुक्त श्रमायुक्त की अध्यक्षता में हुई 23 अगस्त 2019 की बैठक में हिमाचल ज़ोन के ईएसआई राज्य निदेशक द्वारा रेनबो कम्पनी पर ईएसआई के लाखों रुपये के गबन की रिपोर्ट देने के बावजूद रेनबो कम्पनी आईजीएमसी में अपना कार्य जारी रखे हुए है,इस पूरे मामले में गड़बड़ी की जांच की जाए।
8. टेंडर वितरण के समय बिना लाइसेंस के रेनबो कम्पनी को ठेका नियमों को ताक पर रख कर दिया गया। इस कम्पनी का श्रम विभाग में पंजीकरण व लाइसेंस ठेका मिलने के लगभग एक साल बाद अगस्त 2019 में बना जो नियमों के पूरी तरह विपरीत था। इस विषय की जांच की जाए।
9.  ठेके के आबंटन के समय जमा की जाने वाली 26 लाख रुपये की राशि अथवा मार्जिन मनी जमा न होने के बावजूद भी यह ठेका रेनबो कम्पनी को दिया गया। इसकी जांच की जाए।
10. रेनबो कम्पनी ने कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों के अनुसार आज तक मजदूरों की हाजिरी के लिए बायोमेट्रिक नहीं लगाए। इस विषय की जांच की जाए।
11. ठेके की शर्तों के अनुसार सुपरवाइजर के चार पद सृजित थे व जिनका वेतन 40 हज़ार रुपये तय था। उन्हें केवल 18 से 23 हज़ार रुपये वेतन देकर इन चार  लोगों के वेतन से हर वर्ष लगभग 14 लाख रुपये का घोटाला किया जा रहा है,इस पर जांच की जाए।
12.  आईजीएमसी की रैड क्रॉस बिल्डिंग जोकि असुरक्षित घोषित की जा चुकी है,उसमें रेनबो कम्पनी द्वारा अवैध कब्ज़ा किया गया है। भविष्य में इस असुरक्षित बिल्डिंग के गिरने से किसी की भी  मौत हो सकती है। इस विषय की गहनता से जांच की जाए।
13.   इन सभी घोटालों व अनियमितताओं के बावजूद भी रेनबो कम्पनी का ठेका बरकरार है। इन सभी विषयों पर न्यायिक जांच बेहद आवश्यक है।
          इसलिए आपसे विनम्र प्रार्थना है कि इन सभी विषयों की गहनता से जांच की जाए। मैं आपका अत्यंत आभारी हूँगा।
 
दिनांक : 22 सितंबर,2019
 
 भवदीय,
 
विजेंद्र मेहरा
9,बावा बिल्डिंग,दी माल,
शिमला - 3

कुछ कर्मीयों के माध्यम से पलटवार का भी हुआ कमजोर प्रयास
दूसरी ओर आईजीएमसी में ही तैनात कुछ सुरक्षा कर्मीयों ने भी एक पत्रकार वार्ता में विजेन्द्र मेहरा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए सीटू नेतृत्व पर ही गंभीर आरोप लगाये हैं। इन सुरक्षा कर्मीयों का आरोप है कि जब से इन्होंने सीटू का साथ छोड़ा है तभी से इन पर राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है। इन कर्मीयों ने सीटू के ही लोगों पर इनके साथ मारपीट करने का भी आरोप लगाया है और इसमें विजेन्द्र मेहरा और एक लड़की सन्दीपा तक का नाम लिया है। सीटू द्वारा इनसे 1,35,000 रूपये लेने का भी आरोप लगाया है। लेकिन यह पैसा क्यों और किसके लिये लिया गया इसका कोई सन्तोषजनक जबाव नही दे पाये। सीटू का आरोप है कि 187 सुरक्षा कर्मचारियों की जगह केवल 137 ही काम कर रहे हैं इस पर इन लोगों का जबाव था कि आईजीएमसी में 137 लोगों की हाजिरी तो मशीन द्वारा लगायी जा रही है। लेकिन बाकि के 50 लोग मैडिकल कालिज और के एन एच में अपनी सेवाएं दे रहे है। लेकिन वहां पर इनकी हाजिरी मशीन द्वारा नहीं लग रही है और इसीलिये इनके तैनात ही न होने का आरोप लगाया जा रहा है।
इस परिप्रेक्ष में जिस तरह से यह आरोप और प्रत्यारोप लगने शुरू हुए हैं इनकी असलियत एक निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकती है। अब जब मेहरा द्वारा उच्च न्यायालय को जांच के लिये पत्र लिख दिया गया है तो सारी निगाहें इस ओर लग गयी हैं। लेकिन इस सबमें यह सवाल अहम बन गया है कि सुरक्षा ऐजैन्सी पर लम्बे समय से आरोप लग रहे हैं और इनका सीधा संबंध-सरकार है। परन्तु सरकार इस पर लगातार चुप्पी बनाये हुए हैं और इसी चुप्पी से भ्रष्टाचार की अपरोक्ष में पुष्टि हो रही है।