कर्ज के आंकड़ों पर जयराम को मुकेश की खुली चुनौती

Created on Tuesday, 03 September 2019 11:44
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मानसून सत्र के अन्तिम दिन विधानसभा में विधायक रमेश धवाला और जगत सिंह नेगी तथा राजेन्द्र राणा का प्रश्न था कि गत तीन वर्षों में दिनांक 31-7- 2019 तक प्रदेश सरकार ने विश्व बैंक, एशियन विकास बैंक तथा अन्य ऐजैन्सीयों से कितना ऋण लिया है (क) किन योजनाओं हेतु कितनी राशी ऋण के रूप में स्वीकृत हुई है। (ख) स्वीकृत ऋण में से कितनी धन राशी कहां और किस योजना पर खर्च हुई ब्योरा दें। इस प्रश्न के उत्तर मे सदन में रखी गयी जानकारी के मुताबिक 2017-18 में कुल ऋण 5200.13 करोड़ लिया गया जिसमें से 3099.68 करोड़ वापिस कर दिया है। 2018-19 में 4932.03 करोड़ लिया और 3177.41 करोड़ वापिस किया गया तथा 2019-20 में (31-7-2019) में 1197.69 करोड़ लिया और 240.42 करोड़ वापिस किया। इसके  मुताबिक तीन वर्षों में 11329.85 करोड़ का ऋण लिया गया जिसमें से 6517.51 करोड़ वापिस करने के बाद 4812.34 करोड़ का ऋण शेष बचा है।
ऐसा ही एक सवाल बजट सत्र के दौरान भी मुकेश अग्निहोत्री और रामलाल ठाकुर ने पूछा था। इसके जवाब में बताया गया था कि 3451 करोड़ का कर्ज लिया गया है जिसमें से 3000 करोड़ खुले बाजार से लिया गया। इसमें से कुछ कर्ज वापिस करने के बाद 1838.75 करोड़ का ऋण शेष बचा है। इन दोनों सूचनाओं को इकट्ठा रखने के बाद 6600 करोड़ से अधिक का ऋण इस सरकार के अब तक के कार्यालय में लिये गये ऋण में से अभी वापिस दिया जाना बाकी है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने सदन में आये इन आंकड़ो को नज़रअन्दाज़ करते हुए यह जानकारी दी कि उनकी सरकार ने केवल 2711 करोड़ का ऋण लिया है। मुख्यमन्त्री के इस दावे को नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने सदन में खुली चुनौती देते हुए आरोप लगाया है कि मुख्यमन्त्री सदन को गुमराह कर रहे हैं। सरकार द्वारा स्वयं सदन में रखे इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि मुकेश अग्निहोत्री की चुनौती बिना आधार के नही है।
मुख्यमन्त्री के ब्यान और इन आंकड़ों के बाद यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या मुख्यमन्त्री सही में सदन से कुछ छुपा रहे हैं या अफसरशाही ने जानबूझ कर मुख्यमन्त्री को इन आंकड़ों को नज़रअन्दाज़ करके कुछ और ही तस्वीर उनको दिखा दी है। मुख्यमन्त्री ने सदन में माना है कि प्रदेश की वित्तिय स्थिति  ठीक नही है और इसके लिये उन्होंने कांग्रेस के पिछले कार्यालय में 18000 करोड़ से कुछ अधिक का ऋण लेने को जिम्मेदार ठहराया है।
लेकिन यह जिम्मेदार ठहराने के बाद यह सरकार राजस्व बढ़ाने के लिये क्या कदम उठा रही है इसका कोई खुलासा अभी तक सामने नही आया है। बल्कि सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि क्या कर्ज की ही सही स्थिति को सरकार समझ पायी है या नही। क्योंकि बजट में जो पूंजीगत प्राप्तियां दिखायी जाती हैं वह वास्तव में कर्ज ही होती हैं और बजट दस्तावेजों में उसे पूरी स्पष्टता के साथ कर्ज ही दिखाया गया होता है। परन्तु जब कर्ज पर सदन में सवाल पूछा जाता है और उसका उत्तर दिया जाता है तो इस ऋण का कोई जिक्र ही नही उठाया जाता है। क्योंकि यह ऋण अधिकांश में उस पैसे में से लिया जाता है जो आम आदमी की स्माल सेविंग्ज और कर्मचारियों की भविष्य निधि या और किसी तरीके से सरकार के पास जमा होता है लेकिन सरकार उसकी मालिक नही होती। यह कर्ज वापिस किया जाता है। 2018 -19 में 7730.20 करोड़ और 2019-20 में 8330.75 करोड़ का ऐसा ऋण लिया जायेगा। बाजार और अन्य ऐजैन्सीयों से लिया जा रहा है ऋण इस कर्ज से अलग होता है। पूंजीगत प्राप्तियों के रूप में लिया जाने वाला ऋण सिद्धान्त रूप में भविष्य के लिये संसाधन खड़े करने के लिये लिया जाता है जिनसे आगे आने वाले समय में सरकारी कोष में निश्चित और नियमित आय हो सके। आज प्रदेश में कर्जभार 50,000 करोड़ से पार हो गया है लेकिन इस कर्ज से कौन से संसाधन खड़े किये गये और उनसे कितनी आय हो रही है इसको लेकर आजतक कोई खुलासा जनता के सामने नही रखा गया है। इस परिदृश्य में यदि प्रदेश की पूरी वित्तिय स्थिति का सरकारी दस्तावेजों के आईने में ही आकलन किया जाये तो कोई भी सरकार जनता के सामने सही स्थिति नही रख रही है।