इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र से भाजपा सरकार और संगठन पर उठते सवाल

Created on Monday, 22 July 2019 14:26
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष इन्दु गोस्वामी ने 9-7-2019 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। इन्दु गोस्वामी ने जब यह त्यागपत्र दिया तब यह पत्र के अनुसार दिल्ली में थी। गोस्वामी ने अपने पत्र में लिखा है कि मेरे प्रदेश अध्यक्षा बनने से लेकर विधानसभा चुनाव लड़ने तक मुझे कई विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लेकिन मेरा विधानसभा चुनाव लड़ना प्रदेश संगठन और सरकार  दोनों को शायद सुखद नही लगा। बहुत बार अपनी परिस्थिति से प्रदेश नेतृत्व और सरकार को अवगत करवाया लेकिन समस्या कम होने की बजाये बढ़ती गयी। इन्दु गोस्वामी प्रदेश महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्षा थी और पिछले 32 वर्षों से संगठन में विभिन्न पदों पर रह कर इस मुकाम तक पहुंची हैं। लेकिन इन्दु के त्यागपत्र पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती की यह प्रतिक्रिया कि वह तो घर बैठी हुई थी उन्हें महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाकर हमने पहचान दी है। इस प्रतिक्रिया से इन्दु गोस्वामी का 32 वर्षों तक संगठन में काम करना एकदम अर्थहीन हो जाता है।
इन्दु गोस्वामी ने संगठन और सरकार  दोनों पर सवाल उठाये हैं। संगठन में सतपाल सत्ती स्वयं प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में जब गोस्वामी यह कहती है कि संगठन और सरकार  दोनों को उनका चुनाव लड़ना शायद सुखद नही लगा तो यह आरोप स्वयं सत्ती पर आ जाता है। गोस्वामी ने प्रदेश नेतृत्व और सरकार  दोनों को अपनी परिस्थिति से अवगत करवाया। इसमें भी सत्ती पर बात आती है लेकिन सत्ती ने इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए गोस्वामी की अहमियत को ही एक तरह से नकार दिया है। सरकार की ओर से मुख्यमन्त्री की कोई प्रतिक्रिया नही आयी है जबकि गोस्वामी के त्यागपत्र में सरकार का अर्थ सीधे मुख्यमन्त्री है।


इन्दु गोस्वामी के त्यागपत्र से पहले जयराम सरकार के एक मन्त्री एक सलाहकार और एक ओ एस डी को लेकर पत्र आ चुके हैं। यह पत्र मीडिया में चर्चित भी हुए हैं। इन पत्रों में गंभीर आरोप भी दर्ज रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले एक बड़े नौकरशाह के खिलाफ भी एक पत्र चर्चा में आया था। इस पत्र के पीछे जिन लोगों का हाथ होने की चर्चा थी अब शायद सरकार ने उस व्यक्ति को ही उस पद से हटा दिया है। लेकिन मजे की बात यह है कि इन सभी लोगों के खिलाफ आये पत्रों पर संगठन की ओर से प्रदेश अध्यक्ष की कोई प्रतिक्रियाएं नही आयी है।
इन्दु गोस्वामी अपनी परिस्थितियां प्रदेश नेतृत्व के सामने ला चुकी हैं और अब उन्होने अपना त्यागपत्र दिल्ली से दिया है। इसका स्वभाविक अर्थ है कि भाजपा के केन्द्रिय नेतृत्व को भी इस सबसे उन्होने अवगत करवाया होगा और आज की तारीख में केन्द्रिय नेतृत्व का सीधा अर्थ हो जाता है जे.पी. नड्डा। नड्डा प्रदेश से ताल्लुक रखने के नाते अपने स्तर पर भी बहुत सारी जानकारी रखे हुए हैं। विशेषकर जो पत्र बम पिछले दिनों आ चुके हैं उनके संद्धर्भ में। राज्य की वित्तिय स्थिति पर जो नियन्त्रण रखने के लिये केन्द्रिय वित्त मंत्रालय ने वीरभद्र शासन के अन्तिम के दिनों में लिखा था अब उस पर अमल करने की बाध्यता आ खड़ी हो चुकी है और इस बारे में पुनः निर्देश भी जारी हो चुके हैं। ऐसे में आज यदि सरकार के अन्दर से ही सरकार पर इस तरह से सवाल उठते है तो इससे विपक्ष को स्वतः ही एक बड़ा मुद्दा मिल जायेगा। अभी सरकार में बहुत सारे निगमों/बोर्डो में ताजपोशीयां होनी हैं। बल्कि अभी तक सरकार नगर निगम शिमला में मनोनीत किये जाने वाले सदस्यों तक को नामित नही कर पायी है। यह सारे ऐसे सवाल हैं जो अभी तक जन चर्चा में नही आये हैं लेकिन जैसे ही मन्त्रीमण्डल के खाली पद भर लिये जायेंगे उसके बाद जिन लोगों को मन्त्री पद नही मिल पायेंगे उनके लिये इन्दु गोस्वामी जैसे नेताओं के पत्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के सहज़ हथियार बन जायेंगे। यही नही ऐसे पत्रों का असर आने वाले उपचुनावों पर भी पड़ सकता है।
माना  जा रहा है कि इन्दु गोस्वामी के पत्र से कांगड़ा की राजनीति में विशेष असर पडे़गा। क्योंकि धर्मशाला का उपचुनाव होना है और यहीं से मन्त्रीमण्डल का स्थान खाली हुआ है। कांगड़ा से ही रमेश धवाला और राकेश पठानिया इसके प्रबल दावेदारों में गिने जा रहे हैं। धवाला, शान्ता कुमार तो पठानिया, जे.पी.नड्डा के नजदीकी माने जाते हैं। कांगड़ा के ज्वालामुखी से ही भाजपा के प्रदेश के संगठन मन्त्री राणा भी ताल्लुक रखते हैं। पार्टी में राणा संघ के प्रतिनिधि हैं और शायद शीघ्र ही संघ में उनकी पदोन्नति हो रही है। उन्हें चार राज्यों का दायित्व सौंपा जायेगा। इस नाते राणा का स्थान पार्टी में महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिये मन्त्रीयों के चयन में उनकी राय भी महत्वपूर्ण रहेगी यह तय है। लेकिन कांगड़ा के ही कुछ विधायक राणा के दखल को राजनीतिक हस्ताक्षेप और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी करार दे रहे हैं। सूत्रों की माने तो कुछ लोग इस बारे में मुख्यमन्त्री से भी बात कर चुके हैं। शायद इनमें राणा के विरूद्ध सबसे अधिक शिकायत रमेश धवाला को ही है क्योंकि संयोगवश दोनांे एक ही विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। इस तरह कुल मिलाकर जो कुछ भाजपा के अन्दर गोस्वामी के पत्र के माध्यम से उभरता नज़र आ रहा है उसके परिणाम दूगामी होंगे यह तय है।