शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर और उनकी टीम प्रदेश में औद्योगिक निवेश जुटाने के लिये पिछले कुछ अरसे से अपने देश से लेकर विदेशों तक यात्राएं करके प्रयास कर रहे हैं। उनके इन प्रयासों से करीब 80,000 करोड़ के एमओयू साईन होने की जानकारी विभिन्न सरकारी विज्ञप्तियों के माध्यम से जनता में आयी है। जो एमओयू साईन हुए हैं उनसे अभी ज्यादा खुश होने की भी बात नही है क्योंकि इनमें निवेशकों की ओर से इतना ही भरोसा है कि वह यहां निवेश करने को ईच्छुक हैं और सरकार की ओर से यह आश्वासन है कि वह निवेशकों को इसमें पूरा सहयोग करेगी। इस भरोसे और आश्वासन को अमली शक्ल लेने में कितना समय लगेगा यह कहना संभव नही है। निवेश को लेकर शंकायें केन्द्र का बजट आने के बाद ज्यादा उभरी हैं क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर ही निवेशकां का करीब छः लाख करोड़ डूब गया है। स्वभाविक है कि जब देश में ही निवेशक नही आयेगा तो प्रदेश में कैसे आयेगा।
इस परिप्रेक्ष में यह आकलन करना आवश्यक हो जाता है कि प्रदेश में चल रहे उद्योगों की वर्तमान में स्थिति क्या है क्योंकि इससे पहले रहे दोनां मुख्यमन्त्रीयों प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह के काल में भी ऐसे प्रयास हुए हैं और इन्ही प्रयासो के बाद दोनां सरकारों पर ‘‘ हिमाचल ऑन सेल’’ के आरोप भी लगे है। पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से हर मुख्यमन्त्री के बजट भाषण में प्रदेश में सैटलाईट टाऊन बनाने की घोषणाएं दर्ज हैं लेकिन व्यवहार में अब तक कुछ नही हो पाया है। इसलिये यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या जिस तरह के औद्योगिक विकास की परिकल्पना लेकर हम चले हुए हैं क्या वह प्रदेश के लिये व्यवहारिक भी है या नही। क्योंकि प्रदेश को विद्युत राज्य बनाते-बनाते आज यह परियोजनाएं एक संकट का कारक बनती नजर आ रही है विभिन्न अध्ययन रिपोर्टों से यह सामने आ चुका है। अब तक के औद्योगिक विकास से प्रदेश को क्या हासिल हुआ है उसमें कर राजस्व और गैर कर राजस्व में तो कोई बड़ा योगदान नही रहा है लेकिन इससे जीडीपी का आंकड़ा बढ़ने से कर्ज लेने की सीमा बढ़ती चली गयी और आज प्रदेश 52000 करोड़ के कर्ज में डूबा हुआ है और रोजगार कार्यालयों में दर्ज बेरोजगारों की संस्था भी दस लाख के करीब हो चुकी है। इसी परिदृश्य में यदि पिछले एक दशक के आंकड़ो पर नजर डाले तो सरकार के ही आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक 2009-10 में कुल 36315 उद्योग ईकाईयां प्रदेश में पंजीकृत थी जिनमें मध्यम और बड़ी ईकाईयों की संख्या 428 थी। इनमें 8936.57 करोड़ का निवेश था तथा 2.35 लाख लोगों को रोजगार हासिल था। 2018-19 में आज ईकाईयों की संख्या 49058 हो गयी है जिनमें 140 बड़ी और 522 मध्यम हैं लेकिन इनमें निवेश कितना है और इसमें कितने लोगां को रोजगार मिला है इसको लेकर आर्थिक सर्वेक्षण में कोई जिक्र नही है। 31-12-2014 तक 40,429 ईकाईयां पंजीकृत थी और इनमें 18307.95 करोड़ का निवेश था तथा 2,84599 लोगों को रोजगार हासिल था।
प्रदेश में स्थापित उद्योगों के माध्यम से अब तक तीन लाख से कम लोगों को रोजगार हासिल हो पाया है इसमें भी रोजगार पाने वाले सभी हिमाचली नही है। लेकिन सरकार की ओर से 40 औद्योगिक बस्तियों और 15 एस्टेट्स के विकास पर करोड़ो रूपया खर्च किया गया है। पंडोगा में 88.05 और कन्दरोड़ी में 95.77 करोड़ आधारभूत ढ़ाचा विकसित करने में खर्च किया गया है। उद्योगों के लिये 781701 बीघा का भूमि बैंक तैयार करने के अतिरिक्त दमोटा में 515 बीघा वन भूमि ली गई है इसके अतिरिक्त विभिन्न समयों पर उद्योगां को जो सुविधा पैकेजों के माध्यम से दी गयी है यदि उसका पूरा विवरण खंगाला जाये तो उस रकम का जो ब्याज बनता है वह उद्योगों से मिलने वाले राजस्व से शायद दो गुणा से भी अधिक होगा।
आज प्रदेश में एनजीटी के आदेश के बाद निर्माण कार्यों पर लगभग रोक जैसी स्थिति बनी हुई है। प्रदेश सरकार को अभी तक सर्वोच्च न्यायालय से कोई राहत नही मिल पायी है और राहत की संभावना भी नही के बराबर है क्योंकि पूरा प्रदेश अधिकांश में सिस्मक जोन पांच में आता है। अधिकांश परियोजनाएं इसी जोन में स्थित हैं इसलिये यहां और स्थापनाओं से पर्यावरण के लिये और संकट बढ़ जायेगा। पर्यावरण के असन्तुलन के खतरे को सामने रखते हुये यह संभव नही लगता है कि अढ़ाई मंजिला से अधिक के निर्माण की अनुमति मिल पायेगी। एनजीटी का आदेश इसी सचिवालय के बड़े बाबूओं की कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित है और आज वही बाबू बाहर से निवेशक लाने के प्रयासों में लगे हैं। टीसीपी एक्ट पूरे प्रदेश में लागू है और उसी के कारण एनजीटी का आदेश भी सभी जगह लागू है। सरकार टीसीपी एक्ट में संशोधन करने की बात कर रही है लेकिन क्या इससे पहले रैगुलर प्लान नही लाना होगा। 1979 से अन्तरिम प्लान के सहारे ही काम चलाया जा रहा था और उसमें भी एक दर्जन से अधिक संशोधन किये गये है। सरकार की इन्ही विसंगतियों के कारण यह मामला एनजीटी और सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा है। ऐसे में जब तक सरकार इन विसंगतियों को दूर नही कर लेती है तब तक कोई भी निवेशक यहां निवेश का जोखिम नही ले पायेगा। क्योंकि अढ़ाई मंजिल का आदेश उसके सामने आ जायेगा। अवैध निर्माणों को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक कड़ा संज्ञान लेकर दोषीयों के खिलाफ सख्त कारवाई करने के निर्देश दे चुके हैं। गौरतलब यह है कि ऐसे सभी मामलां में संवद्ध प्रशासन ने नियमों कानूनो की जानबुझ कर अनदेखी की है और इस अनदेखी का नुकसान पूरे प्रदेश को झेलना पड़ रहा है। आज ठीक यही स्थिति इस प्रस्तावित औद्योगिक विकास में फिर घटती दिख रही है। क्योंकि इसमें सुधार अधिनियम की धारा 118 से लेकर टीसीपी एक्ट और एनजीटी के फैसले जैसे कई गंभीर मुद्दों पर खुली चर्चा की आवश्यकता है।