क्या केन्द्र की तर्ज पर हिमाचल सरकार भी इस प्रकरण की जांच करेगी उठा सवाल
शिमला/शैल। बहुचर्चित कोल ब्लाॅक्स आंवटन प्रकरण में एक समय सर्वोच्च न्यायालय की प्रताड़ना का शिकार बनी सीबीआई ने इस मामले में संभवतः अपनी जांच पूरी कर ली है। इस आंवटन में नियमों की किस हद तक अनेदखी करके सरकारी राजस्व को कितना घाटा पहुंचाया गया और इसमें कितना भाई-भतीजावाद चला यह सब सीबीआई जांच की विषय वस्तु था। इस प्रकरण में हिमाचल का नाम भी इसलिये जुड़ गया था क्योंकि 2006 में हिमाचल सरकार ने भी बंगाल में 2400 करोड़ की लागत से एक थर्मल प्लांट लगाने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिये एक एम्टा कंपनी के साथ एमओयू साईन किया गया था। एम्टा ने आगे कोल ब्लाॅक हासिल करने के लिये जेएसडब्लयू स्टील के साथ इकरार किया। जेएस डब्लयू स्टील को कोल ब्लाक हालिस करने के लिये विभिन्न संवद्ध मन्त्रालयों को वीरभद्र सिंह ने शायद एक ही दिन छः सिफारशी पत्र लिखे थे। यह थर्मल प्लांट लगाने की प्रक्रिया प्रदेश के अधोसंरचना बोर्ड ने शुरू की थी लेकिन एमओयू साईन होने की स्टेज पर यह काम पावर कारपोरेशन को दे दिया गया था। उस समय पावर कारपोरेशन के एमडी डा. श्रीकान्त बाल्दी थे और अध्यक्ष एसएस परमार थे। सीबीआई जांच में इन दोनों अधिकारियों से भी पूछताछ हुई है और इन्हे सीबीआई ने अपने गवाहों की सूची में शामिल कर लिया है।
जेएस डब्लयू स्टील को यह आवंटन कितना सही हुआ या नही यह सीबीआई जांच में सामने आ जायेगा। लेकिन इस पूरे प्रकरण में जिस तरह का आचरण प्रदेश सरकार के अधिकारियांे का रहा है और उससे प्रदेश को करोड़ो का नुकसान हुआ है क्या उसकी अलग से प्रदेश सरकार द्वारा जांच नही करवायी जानी चाहिये यह एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2006 में हिमाचल सरकार ने भी संयुक्त क्षेत्र में सितम्बर 2006 में एक थर्मल पावर प्लांट लगाने का फैसला लिया था। इसके लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर बोर्ड के माध्यम से निविदायें मांगी गयी। इसमें छः पार्टीयों ने आवेदन किया लेकिन प्रस्तुति पांच ने ही दी। इसमें से केवल दो को शार्ट लिस्ट किया गया और अन्त में एम्टा के साथ ज्वाइंट बैंचर हस्ताक्षरित हुआ। क्योंकि एम्टा ने पंजाब और बंगाल में थर्मल प्लांट लगाने के अनुभव का दावा किया था। इस दावे के आधार पर जनवरी -फरवरी 2007 में एम्टा के साथ एमओयू साईन हो गया और 48 महीने में इसके पूरे होने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिये निविदायें अधेासंरचना बोर्ड के माध्यम से मांगी गयी थी लेकिन एमओयू साईन होने के समय इसमें बोर्ड की जगह पावर कारपोरेशन आ गयी थी। अब प्लांट के लिये कोल ब्लाॅक चाहिये था जो कि एम्टा के पास था नहीं। इसके लिये एम्टा ने जेएस डब्लयू स्टील को अपना पार्टनर बनाया। एम्टा और पावर कारपोरेशन में 50-50% की हिस्सेदारी तय हुई थी। ऐसे में एम्टा और जे एस डब्ल्यू स्टील के मध्य कितनी हिस्सेदारी तय हुई और उसका पावर कारपोरेशन पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसको लेकर रिकार्ड में बहुत कुछ स्पष्ट नही है। एम्टा और जेएस डब्ल्यू स्टील ने मिलकर भारत सरकार से गौरांगढ़ी में कोल ब्लाक हासिल कर लिया। इसके लिये एम्टा और जेएस डब्लयू स्टील में मई 2009 में एक और सांझेदारी साईन हुई। एम्टा और जेएस डब्ल्यू स्टील को कोल ब्लाक आंवटित करवाने के लिये वीरभद्र ने एक ही दिन में विभिन्न मन्त्रालयों को पांच सिफारिशी पत्र लिखे हैं लेकिल यह सब कुछ होने के बाद नवम्बर 2012 में कोल ब्लाक्स का आंवटन ही भारत सरकार ने रद्द कर दिया।
जब भारत सरकार ने यह आवंटन नवम्बर 2012 में रद्द कर दिया तब उसके बाद दिसम्बर 2012 में ही एम्टा के निदेशक मण्डल की बैठक हुई और इस बैठक में फैसला लिया गया कि इसमें और निवेश न किया जाये। एम्टा के साथ जो एमओयू 2007 में साईन हुआ था उसके मुताबिक एम्टा को दो करोड़ की धरोहर राशी पावर कारपोरेशन में जमा करवानी थी जो कि समय पर नही हुई। जब 2012 में कोल ब्लाक का आवंटन रद्द हो गया और एम्टा के निदेशक मण्डल ने भी इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया तो फिर 26 दिसम्बर 2012 को पावर कारपोरेशन ने इसमें 40 लाख का निवेश क्यो किया? यही नहीं इसके बाद 9-5-2013 को 20 लाख का और निवेश इसमें कर दिया गया। पावर कारपोरेशन के इस निवेश के बाद 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने फिर फैसला लिया कि जब तक विद्युत बोर्ड पावर परचेज़ का एग्रीमेंट नही करेगा तब तक इसमें निवेश नही करेंगे। अन्त में मार्च 2015 में बोर्ड ने यह एग्रीमेंट करने से मना कर दिया और इसी के साथ थर्मल प्लांट लगाने की योजना भी खत्म हो गयी।
इस पूरे प्रकरण में यह सवाल उभरते हैं कि जब निविदायें अधोसरंचना बोर्ड के नाम पर मंगवाई गयी तो फिर एमओयू के समय पावर कारपोरेशन कैसे आ गयी? जब एम्टा का चयन किया गया तब उसके अनुभव के दावों की पड़ताल क्यों नही की गयी? इसमें जेएस डब्लयू स्टील की एन्ट्री कैसे हो गयी। एम्टा से दो करोड़ क्यो नहीं लिये गये? जब एम्टा ने नवम्बर 2012 में ही इसमें कोई निवेश न करने का फैसला ले लिया था फिर दिसम्बर 2012 और मई 2013 में किसके कहने पर 60 लाख का निवेश कर दिया। एम्टा के साथ हुए एमओयू के मुताबिक यह प्लांट 2010 के अन्त तक तैयार हो जाना था। लेकिन इसके लिये जेएस डब्लयू स्टील के साथ एम्टा की हिस्सेदारी कोल ब्लाक के लिये मई 2009 मे साईन हुई? ऐसे में सवाल उठता है कि पावर कारपोरेशन का प्रबन्धन 48 माह में इस प्लांट के लग जाने के लिये समय समय पर क्या पग उठा रहा था जबकि उसके साथ एमओयू जनवरी 2007 में हो गया था। उसी दौरान पावर कारपोरेशन में एमडी डा. बाल्दी आ गय थे। यह उस समय देखा जाना चाहिये था कि एम्टा जो अनुभव के दावे कर रहा है उसकी प्रमाणिकता क्या है। एम्टा के अपने पास जब कोल ब्लाक था ही नही तोे उसे किस आधार पर चुना गया? क्योंकि जो रिकाॅर्ड अब तक सामने आया है उसके मुताबिक एम्टा के दावे भी ब्रेकल जैसे ही रहे हैं। यह करीब 2400 करोड़ का प्लांट लगना था और 2010-11 में पूरा हो जाना था। कोल ब्लाक आवंटन का विवाद 2012 में शुरू हुआ और नवम्बर 2012 में आवंटन रद्द हुए। इसलिये एम्टा जेएस डब्लयू स्टील और पावर कारपोरेशन इस विवाद का सहारा लेकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। प्रदेश का करोड़ो का नुकसान इसमें हो चुका है और प्रदेश सरकार को अपना काम चलाने के लिये आये दिन कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में क्या जयराम सरकार इस प्रकरण में अपने स्तर पर मामला दर्ज करके जांच शुरू करवाएगी? क्योंकि यह एक संयोग है कि जयराम के प्रधान सचिव एसीएस बाल्दी को इस मामले की पूरी जानकारी है और उनसे इसकी जांच में पूरा सहयोग विजिलैन्स को मिलेगा।