अदाणी प्रकरण में महाधिवक्ता को निर्देश किसने दिये खड़ा हुआ विवाद

Created on Monday, 13 May 2019 12:48
Written by Shail Samachar

प्रधान सचिव ने मुख्यमन्त्री को भेजी फाईल

शिमला/शैल। अदाणी पावर ने हिमाचल सरकार से 280 करोड़ रूपये 18ः ब्याज सहित वापिस लेने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर रखी है। 2019 में दायर हुई इस याचिका पर उच्च न्यायालय में दो बार पेशी लग चुकी है पहली बार लगी पेशी में उच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिये थे कि वह यह बताये कि उसने इस परियोजना को आवंटित करने के लिये क्या कदम उठाये हैं। अदाणी पावर के 280 करोड़ वापिस करने का जो वायदा सरकार ने कर रखा है वह पूरा हो सके। उच्च न्यायालय में यह आदेश 19 मार्च को हुआ था। इसके बाद यह मामला 26 अप्रैल को फिर अदालत में लगा और तब प्रदेश के महाधिवक्ता ने अदालत को यह बताया कि सरकार इस मामले को पुनः विचार के लिये मन्त्रीमण्डल में ले जायेगी। इस समय आचार संहिता लागू होने के कारण मन्त्रीमण्डल की बैठक नही हो सकती है इसलिये इसमें और समय दिया जाये। महाधिवक्ता के आग्रह पर अदालत ने और समय देते हुये अगली सुनवाई 20 जून को तह की है
महाधिवक्ता के आग्रह पर अदालत ने और समय दे दिया है लेकिन इसी के साथ इस मामले को पुनः मन्त्रीमण्डल में ले जाने की बाध्यता भी बन गयी है। स्मरणीय है कि अदाणी पावर के 280 करोड़ वापिस करने का फैसला सरकार ने 2015 में लिया था। इस फैसले से अदाणी को अवगत भी करवा दिया था। लेकिन दिसम्बर 2017 में सरकार ने इस फैसले को फिर बदल दिया और अदाणी को फिर सूचित कर दिया कि कुछ जटिलताओं के चलते सरकार को यह फैसला बदलना पड़ रहा है। अब अदानी इस मामले को 2019 मेंं प्रदेश उच्च न्यायालय में ले गये हैं। जहां इस पर सुनवाई चल रही है।
हिमाचल सरकार ने 2006 में 960 मैगावाट की जलविद्युत परियोजना जंगी थोपन और पावरी के लिये निविदायें आमन्त्रित की थी। इन निविदाओं के आधार पर यह परियोजना निष्पादन के लिये नीदरलैण्ड की एक कंपनी ब्रेकल को आवंटित कर दी थी। लेकिन जब ब्रेकल तय समय के भीतर 280 करोड़ का अपफ््रन्ट प्रिमियम अदा नही कर पायी तब इसमें निविदाओं में दूसरे स्थान पर रही रिलांयस ने अपना दावा जता दिया। रिलायंस इसमें उच्च न्यायालय में चला गया। उच्च न्यायालय ने 7 अक्तूबर को यह आवंटन रद्द कर दिया और सरकार को इसमें नये सिरे से प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिये। 2006 से यह परियोजना विवादो में चल रही है। मामला विजिलैन्स तक गया था। विजिलैन्स की जांच में पाया गया कि ब्रेकल ने गलत ब्यानी की है उसके खिलाफ आपराधिक मामला चलाने की संस्तुति हुई थी। लेकिन आपराधिक मामला चलाने की बजाये फिर सरकार ने ब्रेकल के प्रति नरमी दिखायी। ब्रेकल के नाम पर 280 करोड़ अदानी ने सरकार को दे दिये। जबकि अदानी अधिकारिक तौर पर इसमें कहीं आता ही नही था। रिलायांस इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय तक ले गया। सरकार का इसमें 2713 करोड़ का नुकसान हो चुका है। इस नुकसान की भरपायी के लिये ब्रेकल को नोटिस तक देने की बात हो चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय में यह सारा कुछ रिकार्ड पर आ चुका है। लेकिन यह सब होने के बावजूद 280 करोड़ जो सरकार के पास ब्रेकल के नाम पर आ चुका है उसे जब्त करने की बजाये 18ः ब्याज सहित उसे लौटाने का प्रयास किया जा रहा है। इस मामले में धूमल वीरभद्र और अब जयराम सरकार की भूमिका भी सन्देह के घेरे में आ गयी है। क्योंकि महाधिवक्ता के अदालत में ब्यान से जयराम सरकार की मंशा भी यही हो जाती है कि वह यह पैसा लौटाना चाहती है। लेकिन कानूनी तौर पर यह पैसा लौटाना आसान नही होगा। इसलिये जब उच्च न्यायालय में महाधिवक्ता का मामले को मन्त्रीमण्डल में ले जाने का आश्वासन आया तो प्रधान सचिव ऊर्जा ने इसका संज्ञान लेते हुए मुख्यमन्त्रा को फाईल पर यह अवगत करवाया है कि महाधिवक्ता को अदालत में यह कहने के निर्देश उन्होने नही दिये हैं। प्रधान सचिव के इस स्टैण्ड से इसकी जिम्मेदारी सीधे मुख्यमंत्री और महाधिवक्ता पर आ जाती है।