सबसे अधिक बीमार है प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल आईजीएमसी

Created on Tuesday, 30 April 2019 06:01
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मोदी सरकार ने देश के करोड़ों गरीब लोगों के स्वास्थ्य की चिन्ता करते हुए उनके लिये आयुष्मान भारत योजना शुरू कर रखी है। बल्कि इन्ही योजनाओं के दम पर यह सरकार सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाकर बैठी हुई है। क्योंकि इस योजना के तहत गरीब आदमी पांच लाख तक का अपना ईलाज मुफ्त में करवा सकता है। इसी योजना की तर्ज पर जयराम सरकार ने भी अपनी ओर से हिमकेयर योजना इसमें और सहयोग करने के लिये शुरू कर रखी है। लेकिन आज इन योजनाओं की व्यवहारिक स्थिति यह है कि पैसों के अभाव में यह योजनाएं बन्द होने के कगार पर पंहुच चुकी है। क्योंकि इन योजनाओं के तहत खरीदी जा रही दवाईयां एवम अन्य उपकरणों के सप्लायरों को उनके बिलों का भुगतान नही हो पा रहा है। आईजीएमसी में ही सप्लायरों का करीब दस करोड़ का भुगतान रूका पड़ा है। एक सप्लायर के 6.88 करोड़ के बिल भुगतान के लिये पड़े हुए हैं। जब राजधानी में ही यह हालत होगी तो प्रदेश के अन्य भागों की हालत का अन्दाजा लगाया जा सकता है। भुगतान न हो पाने के कारण कुछ सप्लायरों ने तो सप्लाई ही बन्द कर दी है। भुगतान न हो पाने का कारण है कि केन्द्र से इसके लिये पैसा नही आ पा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि चुनावों के बाद इन योजनाओं को पुनर्विचार के नाम पर बन्द कर दिया जायेगा।
आईजीएमसी में ही ईलाज की स्थिति यह है कि पिछले दिनों मुख्यमन्त्री के प्रधान अतिरिक्त मुख्य सचिव डा. श्रीकान्त बाल्दी ने एक मरीज को अस्पताल भेजा लेकिन इस मरीज को तीन घन्टे तक डाक्टारों ने देखा तक नहीं परिणामस्वरूप इस मरीज ने ईलाज से पहले ही दम तोड़ दिया। इस पर डा. बाल्दी नाराज हुए और उन्होने आईजीएमसी प्रबन्धन से इस बारे में रिपोर्ट तलब की। यह रिपोर्ट मांगे जाने पर ऐसी लापरवाही के लिये एक जांच कमेटी गठित की गयी। इस कमेटी ने अपनी जांच में डाक्टारों और अन्य स्टाॅफ को इस लापरवाही के लिये कुछ लोगों को नाम से चिन्हित करते हुए अपनी रिपोर्ट जांच कमेटी के प्रमुख को सौंप दी। नामों का खुलासा हो जाने पर संबंधित डाक्टर हरकत में आये और अन्ततः फाईनल रिपोर्ट में यह कह दिया कि मरीज की मौत के लिये कोई भी जिम्मेदार नही है। यही नही आईजीएमसी के डाक्टरों का आचरण डाॅ. आर जी सूद और डाॅ. गोयल के मामलों में भी इसी तरह का रहा है चर्चा है कि डा. गोयल भी तीन घन्टे तक बाहर बैंच पर पड़े रहे थे और किसी ने भी उन्हे देखा तक नही था।
अब आयुष्मान योजना के तहत ईलाज के लिये आये एक मरीज को डाक्टरों ने 42000 रूपये के खर्चे के प्रबन्ध के लिये बोल दिया। गरीब आदमी यह प्रबन्ध करने में असमर्थ था। उसने आईजीएमसी प्रबन्धन से इस बारे में शिकायत की और सरकार तक भी यह सूचना पंहुच गयी। इस पर भी एक गंभीर जांच हुई है और इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप भी दी गयी है। लेकिन अभी तक इस रिपोर्ट पर कोई कारवाई नही हुई है। यही नही पिछले दिनों आईजीएमसी में ही एक नर्स की ट्रांसफर हुई यह ट्रांसफर कुछ रिपोर्टों के आधार पर हुई थी। लेकिन इस ट्रांसफर को रोकने के लिये तीन विधायक सिफारिश लेकर आ गये और मुख्यमन्त्री इस दबाव के आगे झुक गये।
जहां प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल की स्थिति इस तरह की है वहीं पर सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्राईवेट सैक्टर को बढ़ावा दे रही है। लेकिन प्राईवेट सैक्टर की हालत यह है कि यहां पर टैस्ट आदि के लिये जो मशीने लगायी जा रही हैं वह 15 से 20 वर्ष पुरानी तकनीकी की है। जबकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में आये दिन नई रिसर्च सामने आ रही है। फिर प्राईवेट सैक्टर में टैस्टों की फीस सरकार से कई गुणा अधिक है और जब मरीज इन टैस्ट रिपोर्टोें के आधार पर ईलाज के लिये आता है। तो उसे नये सिरे से टैस्ट करवाने पड़ते हैं और दोनों रिपोर्टो के परिणामों मे भारी भिन्नता सामने आती है। यह सब इस लिये हो रहा है क्योंकि प्राईवेट सैक्टर को रैगुलेट करने के लिये कोई प्रावधान नही रखा गया है।