धर्मशाला रैली के बाद और बढ़ी जयराम की चुनौतियां

Created on Wednesday, 09 January 2019 10:55
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या भाजपा में गुटबन्दी सुलगना शुरू हो गयी है? यह सवाल सरकार द्वारा धर्मशाला में एक साल पूरा होने के मौके पर मनाये गये जश्न के बाद अचानक चर्चा में आ गया है। क्योंकि इस मौके पर शान्ता, धूमल और नड्डा को मंच से जनता को संबोधित करने का अवसर नही मिल पाया। यही नही इस अवसर पर जो प्रदर्शनी आयोजित की गयी थी उसमें प्रधानमन्त्री के साथ जे.पी. नड्डा तक शामिल नही हो पाये। क्योंकि प्रधानमन्त्री के साथ प्रदर्शनी में कौन साथ रहेगा और मंच कौन -कौन सांझा करेगा इसकी सूची राज्य सरकार तैयार करके पीएमओ तथा एसपीजी को भेजती है। सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार की सूची में नड्डा का नाम ही शामिल नही किया गया था। इसकारण से नड्डा यह प्रदर्शनी देखने और इसमें बुलाये गये लाभार्थियों को नही मिल पाये। नड्डा का नाम राज्य की सूची से जानबुझ कर बाहिर रखा गया या अनजाने में छूट गया इसको लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। लेकिन यह जो कुछ भी घटा है उसका संदेश बहुत ज्यादा सकारात्मक नही गया है। क्योंकि इस रैली के मंच से मोदी के आने के बाद केवल दो ही भाषण हुए। एक जयराम का और दूसरा स्वयं मोदी का। यहां तक की धन्यवाद भाषण भी नही हुआ। यह सब जितनी जल्दी निपटाया गया उसके लिये उसी दिन संसद में तीन तलाक पर बहस और मतदान से पहले संसद में पहुंचने का कवर लिया गया। लेकिन यहां समय इतना भी कम नही था कि शान्ता और धूमल से दो-दो मिनट का संबोधन न करवाया जा सकता था। यही नही मोदी ने भी अपने भाषण में शान्ता-धूमल का केवल रस्मी तौर पर ही नाम लिया। जबकि पहले मोदी शान्ता-धूमल की सरकारों के वक्त हुए काम का जिक्र जरूर किया करते थे। लेकिन इस बार मोदी का पूरा फोक्स जयराम पर ही रहा। जयराम के एक वर्ष में अनेकों विकास योजनाएं बनी है यह कह कर मोदी ने यह साफ संकेत दिया कि अब उनके लिये हिमाचल में जयराम ही सब कुछ हैं। वह जयराम को अपना परम मित्र बता गये। जयराम ने भी इसके बदले में मोदी को आश्वस्त कर दिया कि वह हर मोर्चे पर उनके साथ खड़े मिलेंगे। मोदी हिमाचल के प्रभारी भी रहे चुके हैं और इस दौरान जो जो मोदी के घनिष्ठ रहे हैं उन्हें जयराम ने भी 32 सदस्यी योजना आयोग में स्थान देकर स्पष्ट कर दिया है कि वह मोदी की अपेक्षाओं पर पूरे खरे उतरेंगे।
धर्मशाला की रैली के इस सारे घटनाक्रम से यह साफ हो जाता है कि मोदी जयराम को प्रदेश में खुला हाथ दे गये हैं। इस नाते अब प्रदेश से चारों लोकसभा सीटें जीत कर मोदी के हाथ मजबूत करना जयराम की नैतिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारी बन जाती है। आगे लोकसभा के लिये उम्मीदवार कौन होंगे यह तय करने में भी जयराम की भूमिका अहम होगी। क्या पूराने ही उम्मीदवार फिर से मैदान में होंगे या कोई नये चेहरे होंगे यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। यह साफ हो गया है कि लोकसभा जीतना अब केवल जयराम की ही जिम्मेदारी होगी। लेकिन क्या जयराम मोदी की अपेक्षाओं पर खरे उतर पायेंगे यह एक बड़ सवाल बनता जा रहा है क्योंकि इस समय जयराम की सरकार पर सबसे जयादा प्रभाव विद्यार्थी परिषद और आरएसएस का माना जा रहा है। क्योंकि मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर तथा पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती और कई अन्य मंत्री स्वयं विद्यार्थी परिषद के नेता रह चुके हैं। इस नाते विद्यार्थी परिषद का वर्तमान नेतृत्व भी सरकार पर पूरा दखल बनाये हुए है। प्रदेश के संघ प्रमुख संजीवन तो सचिवालय में अधिकारियों और मन्त्रियों के साथ बैठक में भाग ले चुके हैं इसी के साथ मुख्यमन्त्री के गिर्द कुछ अधिकारियों का भी पूरा घेरा है। मुख्यमन्त्री के विश्ववस्त पत्रकार इन अधिकारियों की प्रशसां के पुल भी बांध चुके हंै। भले ही स्तुतिगान के बाद अन्य अधिकारियों ने नियमों के दायरे में रह कर सरकार के आदेशों की अनुपालना करने की नीति अपना ली है। इस तरह मुख्यमन्त्री के गिर्द घेरा डाले बैठे कुछ अधिकारी और कुछ पत्रकारों का दखल आज सबकी चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस परिदृश्य में यह बड़ा सवाल हो जाता है कि क्या यह सब लोग मिलकर जयराम और भाजपा को प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें दिला पायेंगे? इसके लिये यदि एक साल पर नज़र दौड़ाएं तो सबसे पहले यह आता है कि जब जयराम ने सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कर्जभार 45000 करोड़ था जो अब 50973 करोड़ को पहुंच गया है । इस एक वर्ष में सरकार कितनों को रोज़गार दे पायी है इसका पता इसी से चल जाता है कि आज शिक्षा विभाग के अध्यापकों के खाली पद उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद नही भरे जा सके हैं। बिजली बोर्ड में आऊट सोर्स के लिये टैण्डर आने के बाद भी कुछ फाइनल नही हो पाया है। हर विभाग में कोई भी रिक्त पद भरने के लिये मन्त्रीमण्डल की बैठक में प्रस्ताव लाये जाते हैं। जबकि यह एक सतत प्रक्रिया है जो स्वतः ही चलती रहनी चाहिये। इससे यह सामने आता है कि अधिकारी हर छोटे काम पर भी कबिनेट की मोहर लगवा रहे हैं जो एक तरह से सरकार पर विश्वास की कमी को दिखाता है। मुख्यमन्त्री ने अपने बजट भाषण में जिन नयी योजनाओं को शुरू करने की बात की थी उनमें से अभी अधिकांश की अधिसूचनाएं तक जारी नही हुई हैं। ऐसे में केन्द्र से जो राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्रदेश को मिलने का दावा किया गया था वह अब महज जुमला साबित होने वाला है। इसी तरह जिन नौ हजार करोड़ की योजनाओं के केन्द्र से मिलने का दावा मुख्यमन्त्री और जेपी नड्डा करते आये हैं उनकी व्यवहारिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगने का खतरा मडराता नजर आ रहा है। क्योंकि यह सारी योजनाएं एडीवी से पोषित होनी है और पर्यटन के मामले में एडीवी ने जो नाराजगी जाहिर की है उसका असर इन योजनाओं पर पड़ने की पूरी संभावना है। भ्रष्टाचार के मामले में जो सरकार अपनी ही पार्टी के आरोप पत्र पर गंभीर न हो वह अन्य मामलों में क्या करेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इस वस्तुस्थिति में लोकसभा चुनावों में सफलता मिलना लगातार संदिग्ध होता जा रहा है और इस परिदृश्य में जयराम की चुनौतीयां बढ़ती जा रही है।