राजधानी में सनातन धर्मसभा का कारनामा
शिमला/शैल। शिमला की सनातन धर्म सभा ने फरवरी 1992 में स्कूल भवन बनाने के लिये 3744 वर्ग फुट भूमि 99 वर्ष की लीज सौ रूपये प्रतिवर्ष पर सरकार से ली थी। यह ज़मीन शिमला के गंज बाजार में स्थित एसडी स्कूल के सामने वाली पहाड़ी पर स्थित है। अब 27 वर्ष बाद इस ज़मीन पर स्कूल भवन के स्थान पर एक बड़ी सराय का निर्माण हुआ है। सराय के नाम पर हुआ यह निर्माण किसी आलीशान होटल से कम नही है सरकार द्वारा 26-2-1992 को जो लीज अनुमति हस्ताक्षरित हुई है उसमें यह कहा गया है कि ‘‘उक्त सभा के प्रबन्धन मण्डल में प्रदेश सरकार द्वारा मनोनीत दो सदस्य रखे जायेंगे तथा इस स्कूल में 10 प्रतिशत दाखिला उन गरीब परिवारों के बच्चो को दिया जायेगा जिन्हें सरकार मनोनीत करेगी और ऐसे छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जायेगी’’।
इस लीज में यह भी कहा गया है कि ‘‘उपरोक्त पट्टा पर प्रदान की गयी सरकारी भूमि का उपयोग दो वर्ष की अवधि के भीतर प्रस्तावित स्कूल के भवन के लिये ही किया जायेगा। यदि इसका उपयोग किसी और उद्देश्य के लिये किया गया तो यह भूमि सरकर को वापिस हो जायेगी और उक्त भूमि पर किये गये निर्माण का कोई भी मुआवजा़ नही दिया जायेगा।
यह लीज फरवरी 1992 में शान्ता कुमार के शासनकाल में ही दी गयी थी। 1992 के बाद से प्रदेश में तीन बार वीरभद्र के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकारें रह चुकी हैं। दो बार भाजपा की सरकारें धूमल के नेतृत्व में और अब तीसरी बार जयराम के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्ता में है। यह लीज जब हुई थी तब सुरेश भारद्वाज ही शिमला के विधायक थे और आज फिर भारद्वाज ही शिमला के विधायक हैं और उन्होंने ही अब बतौर शिक्षा मन्त्री इस होटलनुमा सराय का उद्घाटन किया है। इस नाते यह नही माना जा सकता कि इस लीज और इसकी शर्तों के बारे में उन्हे कोई जानकारी नही रही हो।
लीज़ के दस्तावेजों में साफ है कि यहां पर केवल स्कूल का ही भवन बनना है जो कि नही बना। जब स्कूल का भवन ही नही बना तो उसमें गरीब बच्चों के दाखिले और उन्हे निःशुल्क शिक्षा का भी कोई सवाल नही रहता तथा साथ ही प्रबन्धक मण्डल में दो सरकारी सदस्यों के मनोनीत होने का सवाल नही उठता। अब जब स्कूल भवन ही नही बना तो क्या सरकार लीज की शर्त के अनुसार इस सराय का अधिग्रहण करेगी? यह एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा हो गया है। क्या शिक्षा मन्त्री स्थानीय विधायक और प्रदेश के कानून मन्त्री होने के नाते इस लीज में लगी शर्तो की अनुपालना सुनिश्चित करेंगे। इसी के साथ एक बड़ा सवाल प्रदेश के प्रशासनिक तन्त्र पर भी खड़ा होता है। 1992 में मिली इस भूमि पर दो वर्ष के भीतर निर्माण होना था और ऐसा न होने पर यह लीज रद्द हो जानी थी लेकिन ऐसा नही हुआ। यही नहीं अब जब इस सराय के निर्माण का नक्शा संवद्ध प्रशासन को सौंपा गया होगा तब उसके साथ ज़मीन की मलकियत के दस्तावेज भी सौंपे गये होंगे क्योंकि ऐसा नियम है। इस जमीन की मलकियत का दस्तावेज यह लीज दस्तावेज है। जिसमें यह सारी शर्ते दर्ज हैं। ऐसे में यह स्वभाविक है कि नक्शा पास करने वाले संवद्ध तन्त्र के संज्ञान में यह अवश्य आया होगा कि इस जमीन पर तो स्कूल भवन बनना और उसके स्थान पर सराय बनायी जा रही है। ऐसा तभी संभव हो सकता है जब इसका नक्शा ही न सौंपा गया हो लेकिन इतना बड़ा निर्माण शहर के केन्द्रीय स्थान में नक्शा पास हुए बिना हो जाना संभव नही लगता। ऐसे में यह जयराम सरकार के लिये एक बहुत बड़ा प्रश्न बन जायेगा कि वह इस पर क्या करती है क्योंकि इसका परिणाम बहुकोणीय होगा।