शिमला/शैल। शिमला के सांख्यिकी विभाग में तैनात एक कनिष्ठ सहायक प्रेम ठाकुर द्वारा 55 दिन के मैडिकल अवकाश के बाद विभाग को सौंपा फिटनेस प्रमाणपत्र के बाद आईजीएमसी शिमला की कार्यप्रणाली गंभीर सवालों में घिर गयी है। क्योंकि जब प्रेम ठाकुर ने यह स्वास्थ्य प्रणाम पत्र सौंपा तब विभाग में इसकी प्रमाणिकता को लेकर सवाल उठ गये। क्योंकि इसकी प्रमाणिकता को लेकर कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष और महासचिव तथा सदस्यों ने विजिलैन्स में इसकी शिकायत दर्ज करवा दी। विजिलैन्स के साथ ही अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य को भी यह शिकायत भेज दी। इस पर जब जांच शुरू हुई तक यह सामने आया कि जिस डा. राहुल गुप्ता ने यह फिटनेस जारी किया है वह आईजीएमसी में बतौर वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक तैनात ही नही है और इस कारण से वह यह प्रमाणपत्र जारी करने के लिये अधिकृत ही नही है। आईजीएमसी में वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक का अतिरिक्त कार्यभार तो न्यूरो विभाग के सजृन डा. जनक राज के पास है।
विजिलैन्स जांच में यह सवाल उठा कि प्रेम ठाकुर को जिस बीमारी के लिये स्वास्थ्य प्रमाणपत्र जारी किया है उसका संबंध तो आर्था विभाग से है जबकि प्रमाणपत्र जारी करने वाला डा. राहुल गुप्ता तो फॉरैन्सिक विभाग में सहायक प्रोफैसर है। सरकार के निर्देशों के अनुसार किसी बीमार को 14-21 दिन तक का ही रेस्ट दिया जा सकता है वह भी तब जब बीमार का ईलाज अस्पताल में वाकायदा दाखिल करके किया गया हो। लेकिन प्रेम ठाकुर तो एक दिन भी अस्पताल में दखिल नही रहे हैं। यही नही जांच के दौरान उनके पास अस्पताल की वह पर्ची भी उपलब्ध नही रही जिस पर दवाई और रेस्ट का विवरण रहा हो न ही वह उस डाक्टर को खोज पाये जिसने उन्हें देखा और रेस्ट लिखा हो। इसी दौरान यह भी सामने आया कि प्रेम ठाकुर ने 26-6-2014 को आईजीएमसी की एक पर्ची भी विभाग को सौंपी थी और इसमें उन्हें दिल का मरीज ‘‘दिखाया गया था लेकिन उस पर्ची के मुताबिक जिस डाक्टर ने उन्हें दिल का मरीज घोषित किया था वह हृदय रोग के विभागाध्यक्ष के मुताबिक विभाग में तैनात ही नही था। इस तरह प्रेम ठाकुर द्वारा दोनों बार दिये गये आईजीएमसी के स्वास्थ्य प्रमाणपत्र सन्देह के घेरे में आ गये हैं।
जब आईजीएमसी द्वारा जारी इन स्वास्थ्य प्रमाणपत्रों पर सवाल उठे तब इसको लेकर आईजीएमसी में भी एक जांच टीम गठित और इस टीम ने डा. राहुल गुप्ता को क्लीन चिट दे दी। प्रेम ठाकुर को जिस बीमारी के लिये 55 दिन का रेस्ट दिया गया है वह आर्थो से संबधित है लेकिन फिटनेस देने वाला डा. फारैन्सिक विशेषज्ञ है। आईजीएमसी के वष्शिठ मैडिकल अधीक्षक न्यूरो सर्जन है। इस नाते वह भी आर्थो के मरीज को फिटनेस देने के लिये कायदे से अधिकृत नही हो सकते। लेकिन इसके लिये आईजीएमसी में जो जांच टीम बनी उसमें एक तरह से वही डाक्टर शामिल किये गये जिनके खिलाफ प्रत्यक्षतः जांच होनी थी। यह जांच कायदे से प्रिंसिपल द्वारा की जानी चाहिये थी। वरिष्ठ मैडिकल अधीक्षक का पद पदोन्नती से भरा जाता है और इसके लिये ब्लॉक मैडिकल अफसरों की पात्रता रखी गयी है। लेकिन लम्बे अरसे से इस पद पर किसी भी विशेषज्ञ डाक्टर को अतिरिक्त कार्यभार देकर भर दिया जाता है। जबकि यह पद पूरी तरह प्रशासनिक है। आईजीएमसी में आरटीआई के तहत भी डाक्टर ही सूचना अधिकारी का काम कर रहे हैं जबकि यह काम प्रशासनिक अधिकारी या प्रिंसिपल का होना चाहिये। जब विशेषज्ञ डाक्टरों से प्रशासनिक काम लिया जायेगा तब यही होगा कि आर्थो के मरीज को फिटनेस न्यूरो सर्जन या फॉरैन्सिक मैडिसन वाले देंगे।