सहकारी बैंको को लेकर सरकार की शिकायत पर विजिलैन्स की चुप्पी सवालों में

Created on Tuesday, 30 October 2018 04:46
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार बनने के बाद सहकारी सभाएं ने 6 अप्रैल को कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैक धर्मशाला के अध्यक्ष और बोर्ड को निलंबित करने का नोटिस जारी किया था। इस नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। चुनौती दिये जाने के बाद 19 जुलाई को तकनीकि आधार पर इस नोटिस को वापिस ले लिया गया और फिर उसी दिन नया नोटिस जारी कर दिया गया। इसे भी उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। अब इस पर उच्च न्यायालय का फैसला आ गया है। अदालत ने इस निलंबन को सही पाया है।
अदालत ने अपने फैसले में नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट का जिक्र उठाते हुए कहा है कि बैंक ने 90 लोगों को 31 दिसम्बर 2017 जोखिम सीमा से बाहर जाकर कर्ज दिया। इसके अतिरिक्त 119 लोगों को नियमों के बाहर जाकर ऋण दिया गया। सी.ए. की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 2017 तक की आडिट रिर्पोटों में कई अनियमितताएं उजागर हुई है। जिसमें बैंक का एन.पी.ए. 11.43 प्रतिशत से बढ़कर 16.25 प्रतिशत होना सामने आया है। रिर्पोट में फ्राड उजागर हुआ है लेकिन इसमें शामिल रकम की वसूली के लिये कोई कदम नही उठाये गये हैं। यही नही आरबीआई के दिशा निर्देशों के खिलाफ जाकर रियल इस्टेट को कर्ज दिया गया है। विधानसभा के पिछले सत्र में इस संबध में पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में एनपीए हुये खातों की पूरी रिपोर्ट सदन के पटल पर आ चुकी है। इसमें भाजपा के कई शीर्ष नेताओं के नाम भी सामने आये हैं। ऐसा भी लगता है कि प्रदेश से बाहर भी ट्टण बांटे गये हैं।
सदन में सहकारी बैंकों के एनपीए की रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने कुछ बिन्दुओं पर विजिलैन्स जांच करवाने के लिये विजिलैन्स को पत्रा लिखा था। लेकिन सरकार के इस शिकायत पत्र पर आज तक कोई कारवाई नही हुई है जबकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार सात दिन के भीतर मामला दर्ज हो जाना चाहिये था। अब जब प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार के निलंबन के फैसले को सही करार दे दिया है तब यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या अब विजिलैन्स इस पर कारवाई करेगी या नही और करेगी तो कितने समय के भीतर। क्योंकि सूत्रों के मुताबिक मुख्यमन्त्री कार्यालय में बैठे हुए कुछ लोग ऐसा नही चाहते है।