अदालत के फैसले और अवैधकर्ताओं को दिये आश्वासनों के बीच फंसी सरकार

Created on Tuesday, 28 August 2018 06:57
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कसौली गोली कांड प्रकरण के बाद जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना को अदालत की अवमानना करार देते हुए इस पर अगली कारवाई शुरू की तब सरकार से चार बिन्दुओं पर रिपोर्ट तलब की थी। लेकिन जब सरकार की ओर से रिपोर्ट सौंपने की बजाये अदालत की खण्डपीठ से ही आग्रह कर डाला कि वह इस मामले की सुनवाई ही न करे तब सरकार के वकील को अदालत की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था। इस प्रताड़ना के बाद पुनः अदालत ने सरकार को वांच्छित बिन्दुओं पर स्टे्टस रिपोर्ट का समय दिया है। सरकार के लिये यह स्थिति तब पैदा हुई जब एनजीटी के आदेशों की अनुपालना नही की गयी। स्मरणीय है कि कसौली के अवैध निर्माणों पर सबसे पहले एनजीटी का फैसला आया था। इस फैसले की सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गयी थी। जिसमें एनजीटी के फैसले को ही बहाल रखा गया था। इस तरह एनजीटी के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय की भी मोहर लग जाने के बाद जब इसकी अनुपालना के लिये कदम उठाये गये तब कसौली में गोली कांड घट गया। कसौली के बाद शिमला को लेकर भी पिछले साल दिसम्बर में एनजीटी का फैसला आ गया है। इस फैसले का रिव्यू एनजीटी में दायर किया गया था जो अस्वीकार हो चुका है। सरकार इस फैसले की अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर करने की बात कह चुकी है परन्तु अभी तक ऐसा हो नही पाया है।
इसी के साथ मुख्यमन्त्री कुल्लु में अवैध निर्माणों के दोषीयों को यह आश्वासन दे चुके हैं कि सरकार इस संबंध में एक कानून बनाकर इन निर्माणों को कानून के दायरे में लाकर राहत प्रदान करेगी। यहां यह गौरतलब है कि सरकार कानून लाकर इन अवैधताओं को राहत देने का प्रयास पहले भी कर चुकी है। लेकिन प्रदेश उच्च न्यायालय सरकार के इस प्रयास को निरस्त कर चुका है। फिर अब तो मामला सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में है और कसौली गोली कांड दो लोगों की जान ले चुका है इस परिदृश्य में सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से कोई राहत मिल पायेगी या नही यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यहां पर यह समझना भी आवश्यक है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से रिपोर्ट क्या मांगी है। सरकार से यह पूछा गया है कि अवैध निर्माणों को रोकने के लिये प्रदेशभर में क्या कदम उठाये गये हैं। इसके साथ यह भी पूछा है कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध निर्माण हुए हैं उनके नाम और पद अदालत को बताये जाएं। ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कारवाई की गई है यह भी बताया जाये। सरकार को इन बिन्दुओं पर अदालत में स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करनी है। अवैध निर्माण आपदाओं को न्योता देते हैं। जिससे जान और माल दोनां का नुकसान होता है। यह चिन्ता एनजीटी ने अपने 165 पृष्ठों के आदेश में व्यक्त की है क्यांकि हिमाचल का अधिकांश हिस्सा तीव्र भूंकप जोन में आता है। शिमला को लेकर यह अध्ययन रिकार्ड पर आ चुके हैं कि भूकंप की स्थिति में शहर में 30,000 लोगों की जानें जा सकती हैं और एक चौथाई से अधिक मकान गिर सकते हैं।
लेकिन इस सबके बावजूद सरकारों की और से इस पर कोई गंभीरता नही दिखाई गयी। उल्टे सरकार बार-बार रिटैन्शन पॉलिसी लाती रही जिस पर अदालत यहां तक कह चुकी है कि "It seems that ‘Retention Policy’ had been a tool deployed to regularize such illegal or unauthorized constructions."  अदालत की ओर से गठित की गयी एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी ओर से स्पष्ट कहा है कि There should be no new retention policy to allow deviation from building  bye-laws. Over the last twenty years, retention policies, guidelines, compounding rules have been introduced at least seven times for significant deviation from building bye-laws. This has not only allowed but also encouraged unsafe construction in Shimla. There should be a complete and permanent moratorium on allowing such deviations in the future. There should be no discretionary provisions with regards to application of building bye-laws. New buildings that do not follow that building bye-laws must be demolished at owner’s expense and neither the Government nor the legal institution should have any discretion for ratification for any such building. इस परिदृश्य में एक ओर से एनजीटी का आदेश और उस पर सर्वोच्च न्यायालय में रिपोर्ट सौंपने की बाध्यता तथा दूसरी ओर अवैधकर्ताओं को मुख्यमन्त्री द्वारा दिये गये राहत के आश्वासन के बीच सरकार उलझ गयी है। इसका कोई हल निकालने के लिये पिछले दिनों मुख्यमन्त्री की अध्यक्षता में शिमला योजना क्षेत्र की रिटैन्शन पॉलिसी पर एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस बैठक में टीसीपी सचिव प्रबोध सक्सेना ने रिटैन्शन पालिसी पर विस्तृत जानकारी रखी। बैठक में शिमला के विधायक, शिक्षा मन्त्री सुरेश भारद्वाज, शहरी विकास मन्त्री सरवीण चौधरी, परिवहन एवम् वनमन्त्री गोविन्द ठाकुर, प्रधान सचिव विधि यशवन्त सिंह, प्रधान सचिव आेंकार शर्मा और महाधिवक्ता अशोक शर्मा, मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीकान्त बाल्दी, अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यटन राम सुभग तथा कुछ अन्य लोग शामिल हुए थे। सूत्रों के मुताबिक यह कमेटी कोई ठोस हल नही निकाल पायी है। बल्कि इस बार भारी वर्षा के कारण प्रदेश में जान माल का जो नुकसान हुआ है उससे स्थिति और जटिल हो गयी है। क्योंकि शिमला के जिन हिस्सों में नुकसान हुआ है उन हिस्सों में हुए अवैध निर्माणों का जिक्र एनजीटी के फैसले में प्रमुखता से आ चुका है। इसलिये माना जा रहा है कि जब सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह सारे तथ्य आयेंगे तब सरकार का पक्ष काफी कमजा़ेर हो जायेगा। एनजीटी के फैसले में साफ कहा गया है कि यह फैसला आने के बाद जो निर्माण चल रहे हैं और पूर्ण नही हुए हैं उन पर भी यह फैसला लागू होगा। इस फैसले के बाद तो कोई भी निर्माण अढ़ाई मंजिल से ज्यादा नही हो पायेगा यह स्पष्ट कहा गया है। एनजीटी का फैसला दिसम्बर 2017 में आ गया था। परन्तु इस फैसले के बाद मालरोड़, टूटीकण्डी और अन्य कई क्षेत्रों में पांच -पांच मंजिला निर्माण अब तक चल रहे हैं। इससे यह और स्पष्ट हो जाता है कि सरकार और उसका तन्त्र अदालत के फैसलों के प्रति कितना गंभीर है।