शिमला/शैल। जयराम सरकार ने अभी 8.8.2018 को एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी के सदस्य है सेवानिवृत पूर्व मुख्य सचिव श्रीमति आशा स्वरूप, श्रीमति राजवन्त संधू और सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन। यह कमेटी मुख्यन्त्रा की ओर से सरकार की फ्रलैगशिप योजनाओं का रिव्यू और इसकी रिपेर्ट सीधे मुख्यमन्त्री को सौंपेगी। अभी तत्काल प्रभाव से यह कमेटी प्रधानमन्त्री फसल बामी योजना, कौशल विकास योजना और स्वच्छ भारत अभियान का रिव्यू करके 25 सितम्बर को मुख्यमंत्रा को अपनी रिपोर्ट सौपेगी। कमेटी के सदस्य इकक्ठे मिलकर भी और अकेले -अकेले भी यह रिव्यू कर सकते हैं यह उनके ऊपर छोड़ दिया गया है।
दीपक सानन को इससे पहले हिप्पा में भी एक ऐसी ही जिम्मेदारी दी गयी है। स्मरणीय है कि सानन एचपीसीए के एक मामले मे भी अभियुक्त नामज़द हैं और संभवतः इसी कारण से वीरभद्र शासन में मुख्य सचिव की ताजपोशी के लिये नज़रअन्दाज हुए थे। जब वीसी फारखा को मुख्य सचिव बनाया गया था। तब उनकी नियुक्ति को कैट में चुनौती देने वालो में विनित चौधरी के साथ सानन भी शामिल थे। उस समय 24.10.2016 से 24.1.2017 तक सानन छुट्टी पर रहे थे और 31.1.2017 को सेवानिवृत हो गये थे। जयराम सरकार ने फरवरी 2018 में सानन की यह छुट्टी स्टडीलीव करार दे दी है। जबकि नियमों के मुताबिक जब किसी अधिकारी/ कर्मचारी का कार्यकाल केवल दो वर्ष रह जाता है तब उसे स्टडीलीव नही मिलती है। सानन को सेवानिवृति के एक सप्ताह पहले तक दिया गया स्टडीलीव लाभ प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह अपराध की श्रेणी में आता है।
दीपक सानन ने भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत अनुमति लेकर शिमला के कुफरी क्षेत्रा में ज़मीन भी खरीद रखी है। यहां पर मकान बनाने के लिये सानन ने 4.11.2004 को टीडी के तहत लकड़ी के लिये आवेदन किया था उनके इस आवेदन पर उन्हें 16.12.2004 को यह लकड़ी मिल भी गयी थी। सानन स्यंव सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व रह चुके हैं और अच्छी तरह जानते है कि धारा 118 के तहत ज़मीन खरीद कर टीडी की पात्रता नही बनती। प्रदेश में हजा़रों लोग 118 के तहत अनुमति लेकर ज़मीन खरीद चुके हैं लेकिन किसी को भी सरकार ने टीडी की पात्रता नही दी है। क्योंकि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में है ही नही। बल्की इस तरह टीडी का लाभ लेना अपराध की श्रेणी में आता है और कई लोग इसके के लिये सज़ा भी भोग चुके हैं।
दीपक सानन को जिस तरह से जयराम सरकार एक के बाद एक जिम्मेदारी देती जा रही है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार उन पर अच्छा भरोसा जता रही है। लेकिन यह भरोसा सार्वजनिक जिम्मेदारीयों को लेकर है इसलिये यह हरेक का सरोकार है। यदि जयराम उन्हे अपनी कोई व्यक्तिगत जिम्मेदारी सौंपे तो उस पर किसी को भी कोई एतराज नही हो सकता। लेकिन जब सरकार की ओर से किसी को भी ऐसी जिम्मेदारी सौंपी जायेगी तो स्वभाविक रूप से उस पर सवाल उछलेंगे ही। ऐसे में आज जयराम सरकार की यह सार्वजनिक जबावदेही बनती है कि उसने सारे नियमों/कानूनों को ताक पर रखकर फरवरी में सत्ता संभालने के दो माह बाद दीपक सानन को स्टडीलीव का लाभ देकर सरकारी खज़ाने को करीब आठ लाख का नुकसान क्यों पंहुचाया। क्योंकि यह लाभ आपने दिया है। सानन ने 2004 में टीडी लाभ लेकर भी सरकारी खज़ाने को नुकसान पंहुचाया है उस समय किसके प्रभाव में उन्हें यह लाभ दिया गया? इसके लिये उन्होने स्वयं अपने पद का दुरूप्योग किया है क्योकि वह जानते थे कि वह टीडी के पात्रा नही हैं। यहां यह भी सवाल उठता है कि आज जब सरकार ने उन्हें यह जिम्मेदारीयां सौंपी है तब क्या सरकार को इसकी जानकारी नही रही है।
सानन की नियुक्ति मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से हुई है। स्टडीलीव का लाभ भी उनके अनुमोदन से मिला है। इसलिये यह माना जा रहा है कि सानन द्वारा लिया गया टीडी लाभ भी उनकी जानकारी में रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इस तरह के कार्यों से सरकार क्या संदेश देना चाह रही है। एक ओर तो सरकार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरैन्स के दावे कर रही है और दूसरी ओर इस तरह की भ्रष्टता को संरक्षण दे रही है। क्या ऐसी नियुक्तियों पर मुख्यमन्त्री को उनके सलाहकारों द्वारा कोई राय नही दी जा रही है? क्या प्रदेश के मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव भी ऐसे मामलों में सही जानकारियां उनके सामने नही रख रहे हैं। इस समय प्रदेश में कई ऐसे मामले भी हैं जहां 118 के तहत अनुमति लेकर मकान बनाने के लिये ज़मीने तो खरीद ली गयी परन्तु एक दशक से अधिक का वक्त बीत जाने के बाद भी उस ज़मीन पर मकान नही बना है। जबकि 118 में अनुमति लेकर यह अनिवार्य है कि यदि दो वर्ष के भीतर जमीन पर उस उद्देश्य की पुर्ति के लिये कोई कदम न उठाया जाये तो अनुमति रद्द करके ज़मीन को बिना शर्त सरकार के अधिकार में ले लिया जाता है। लेकिन जयराम सरकार ऐसे सारे मामलों पर आंखे बन्द करके बैठी हुई है।