शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के अन्दर चल रहा सुक्खु बनाम वीरभद्र वाक्युद्ध जिस मोड़ पर पंहुच चुका है तथा बन्द होने का नाम नही ले रहा है। इससे अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस हाईकमान ने अब वीरभद्र को ज्यादा अहमियत देना छोड़ दिया है। क्योंकि वीरभद्र सिंह एक लम्बे अरसे से सुक्खु का खुला विरोध करते आ रहे हैं। लेकिन इस विरोध का कोई असर नही हो पाया है। जबकि एक समय था जब प्रदेश कांग्रेस में वही होता था जो वीरभद्र चाहते थे। वीरभद्र ने आनन्द शर्मा, कौल सिंह और सुखराम जैसे नेताओं को जिस तरह पूर्व में अपने रास्ते से हटाया है यह पूरा प्रदेश जानता है। जिस तरह का खेल खेलकर वीरभद्र ने 1983 में मुख्यमन्त्री का पद संभाला था क्या वह कार्यशैली अब उनकी नीयती बन गयी है। क्योंकि इसी कार्यशैली से 1993 में वीरभद्र ने सुखराम को रास्ते से हटाया था। आज सुक्खु को हटाने के लिये भी ठीक उसी कार्यशैली पर चल रहे हैं। उस समय इस कार्यशैली के लाभार्थी वह स्वयं होते थे। लेकिन आज परिस्थितियां एक दम बदली हुई हैं। प्रदेश में भाजपा की सरकार है। अगला विधानसभा चुनाव 2022 में होगा और तब वह 90 वर्ष के हो रहे होंगे। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दे। लेकिन क्या वह तब एक बार फिर मुख्यमन्त्री बनने की ईच्छा रखे हुए हैं। क्योंकि उनका बेटा तो 2022 में तभी नेतृत्व का दावेदार हो सकता है कि अभी से एक अलग संगठन खड़ा कर ले और उसे सत्ता तक ला पाये। वैसे प्रदेश में एक विकल्प की आवश्यकता और संभावना तो बराबर है। वीरभद्र यदि दिल से चाहें तो वह ऐसा सफलतापूर्वक कर भी सकते हैं। यदि उनकी मंशा ऐसा कुछ करने की नही है तो जो कुछ वह आज कर रहे हैं उससे कांग्रेस से ज्यादा अपने ही परिवार का राजनितिक अहित कर रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस के अन्दर जो भूमिका वह निभा रहे हैं वही भूमिका संयोगवश भाजपा में शान्ता ने संभाल ली है।
वीरभद्र की भूमिका से जो लाभ भाजपा-जयराम को अपरोक्ष में मिलने की संभावना मानी जा रही है उससे कहीं अधिक नुकसान शान्ता के ब्यान से हो जायेगा। क्योंकि जो दावे आज भी मोदी रोज़गार के क्षेत्र में कर रहे हैं आने वाले दिनों में उन दावों की व्यवहारिकता पर हर प्रदेश में सीधे सवाल उठेंगे। मोदी ने आज भी यह दावा किया है कि उनकी सरकार ने प्रतिवर्ष एक करोड़ रोज़गार दिये हैं। एक करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने के हिसाब से पांच वर्षों में हिमाचल के हिस्से में पांच लाख तो आने ही चाहिये थे। इसका जवाब वीरभद्र और जयराम को देना होगा। क्योंकि पहले वीरभद्र की सरकार थी और अब जयराम की है। हिमाचल में वीरभद्र के शासन में कितनों को सरकारी और नीजि क्षेत्र में रोज़गार मिला है इसका खुलासा बजट सत्र में विधानसभा के पटल पर रखे गये सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ो से हो जाता है। इन आंकड़ो के मुताबिक लाखों तो दूर हज़ारों को भी रोज़गार नही मिला है। अभी मण्डी जिले की ही एक पीएचडी टॉपर का मुख्य न्यायधीश को लिखा पत्र रोज़गार के दावों की कलई खोल देता है। क्योंकि इस लड़की ने बेरोज़गारी से तंग आकर ईच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। यह मण्डी जिले की हकीकत है। और आठ माह से प्रदेश में मण्डी के ही जयराम की सरकार है। ऐसी ही हकीकत अन्य क्षेत्रों में भी है। यही नही चुनावों तक आते-आते राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ जितने मुद्दे उठने वाले हैं उनके मद्देनज़र आने वाले दिनों में वीरभद्र के ब्यानों और प्रयासों से भाजपा को कोई लाभ नही मिल पायेगा। क्योंकि यदि कांग्रेस प्रदेश में एक सीट भी जीतती है तो यह भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर एक चौथाई हार हो जायेगी और इससे शान्ता का कथन भी सही साबित हो जायेगा। इसलिये आज वीरभद्र के ब्यानों का यही अर्थ लगाया जायेगा कि वह शायद यह सब कुछ किसी बड़ी विवशता में कर रहे हैं।