शिमला/शैल। पिछले कुछ अरसे से प्रदेश मन्त्रीमण्डल में फेरबदल किये जाने की अटकलों का दौर चल रहा है। इसमें यह भी चर्चा चल रही थी कि राजीव बिन्दल को मन्त्री बनाया जा सकता है। लेकिन बिन्दल के खिलाफ लम्बे अरसे से विजिलैन्स में आपराधिक मामला चल रहा है। अब इस मामले को वापिस लेने के लिये सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अदालत मे आवेदन करना पड़ता है और यह आवेदन केवल मामले से जुड़ा सरकारी वकील ही कर सकता है। इसके लिये मामले से जुड़े सरकारी वकील को सरकार की ओर से निर्देश गये थे कि वह यह आवेदन अदालत में करे। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक सरकारी वकील ने यह आवेदन करने से इन्कार कर दिया है क्योंकि मामला निर्णायक मोड़ तक पंहुच चुका है। सीआरपीसी की धारा 321 के तहत सरकारी वकील को मामला वापिस लेने के लिये यह कहना पड़ता है कि उसकी राय में यह मामला सफल नही हो सकता। लेकिन इसमें जब मामला अन्तिम चरण में पंहुच चुका है और आज से पहले कभी सरकारी वकील की ओर से यह इंगित ही नही हुआ है तो अब इस स्टेज पर ऐसे आग्रह से उसी की फजीहत होती।
स्मरणीय है कि धूमल शासन के दौरान भी इस मामले को खत्म करने के प्रयास किये गये थे। उन प्रयासों के तहत विधानसभा अध्यक्ष ने इसमें मुकद्दमा चलाने की अनुमति नही दी थी। लेकिन अदालत ने यह अनुममित न दिये जाने को यह कह कर नकार दिया था कि विधानसभा अध्यक्ष इसके लिये सक्षम अधिकारी नही हैं। अब जब सरकारी वकील ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन करने में असमर्थता जता दी है तो यह स्पष्ट हो गया कि यह मामला अदालत में चलेगा ही। मामले की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इसमें परिणाम कुछ भी आ सकते हैं।
इस परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा यह खड़ा हो गया है कि मंत्री बनने के लिये तो तब तक वंदिश नही हैं जब तक किसी मामले में दो वर्ष से अधिक की सजा़ न हो जाए। क्योंकि दो वर्ष की सज़ा पर तत्काल गिरफ्तारी के बाद ही अपील और जमानत की स्थिति आती है। बिन्दल के मामले तो यह सब कुछ अभी अनिश्चितता में चल रहा है। उन्हें मामले के चलते हुए जब विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है तो उसी तर्क पर उन्हें मन्त्री बनाने में भी कोई दिक्कत नही हो सकती थी। फिर सूत्रों का यह भी दावा है कि सरकारी वकील ने दो माह पहले ही लिख दिया था कि मामला वापिस ले लिया जाये। उसके बाद सरकार ने उस वकील को ही बदल दिया। अब इस केस में जो नया सरकारी वकील लगाया गया है उसने नये सिरे से अपनी राय देते हुए यह लिख दिया है कि मामला वापिस नही लिया जा सकता। इन तथ्यों को सामने रखते हुये तो एकदम सारा परिदृश्य ही बदल जाता है और यह संदेश जाता है कि सरकार मामला वापिस ही नही लेना चाहती है। इससे यह भी संकेत उभरता है कि जब बिन्दल का ही मामला सरकार वापिस नही लेना चाहती है तो अन्य नेताआें के मामलों में भी ऐसी ही रणनीति अपनाई जायेगी। माना जा रहा है कि जयराम सरकार की इस रणनीति के दूरगामी राजनीतिक परिणाम होंगे।