मण्डी से कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार को मकरझण्डू कहकर वीरभद्र ने की भाजपा की राह आसान

Created on Tuesday, 17 July 2018 10:50
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री और प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष सुक्खु को पद से हटाने के लिये विधानसभा चुनावों से बहुत पहले से अभियान छेड़ रखा है। इसी अभियान के कारण विधानसभा चुनावों के लिये वीरभद्र सिंह को नेता घोषित किया गया था लेकिन फिर भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गयी जबकि पचपन टिकट वीरभद्र की सिफारिश पर दिये गये थे। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को अधिकारिक तौर पर विपक्ष का दर्जा हासिल करने लायक भी बहुमत नहीं मिल पाया है। शायद इसीलिये कांग्रेस विधायक दल का नेता वीरभद्र की बजाये मुकेश अग्निहोत्री को बनाया गया है। इन विधानसभा चुनावों में वीरभद्र की व्यक्तिगत बडी उपलब्धि यही रही है कि वह अपनी पुरानी सीट शिमला ग्रामीण से अपने बेटे विक्रमादित्य को विधायक बनवा पाये हैं। स्वयं भी नये क्षेत्रा अर्की से जीत हासिल कर पाये हैं। वैसे इस जीत को लेकर यह भी चर्चा रही है कि यहां पर भाजपा ने अपने दो बार लगातार जीत हासिल करने वाले विधायक गोविन्द शर्मा का टिकट काटकर वीरभद्र की जीत की राह आसान कर दी थी। इन चुनावों जहां कांग्रेस के अन्दर वीरभद्र के विरोधी हारे हैं वहीं पर कुछ उनके निकटस्थ भी हार गये हैं। विधानसभा चुनाव परिणामों के इस गणित से यह स्पष्ट संकेत उभरता है कि जिस ऐज और स्टेज पर वीरभद्र पहुंच चुके हैं वहां से जनता पर उनकी पकड़ अब पहले जैसी नहीं रह गयी है। यह सही है कि वह छः बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं और इस नाते प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में कुछ न कुछ लोग उनको व्यक्तिगत तौर पर जानने वाले आज भी हैं। लेकिन प्रदेश की जो समस्याएं आज है जिसका सबसे बड़ा कारण कर्ज का चक्रव्यूह है। यही नहीं आज स्कूलों में चौदह हज़ार से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं, सैंकड़ों स्कूलों को बन्द करना पड़ रहा है। यह सब कुछ बहुत हद तक उन्हीं के शासन काल की योजनाओं का परिणाम है। इस सब को लेकर अधिकांश जनता का आकलन क्या है शायद इसकी जानकारी वीरभद्र और कांग्रेस को व्यवहारिक तौर पर नहीं है।
आज कांग्रेस के अन्दर अगले नेता को लेकर एक बड़ा शून्य चल रहा है क्योंकि वीरभद्र ने अभी तक किसी एक का नाम अधिकारिक तौर पर घोषित नहीं किया है। क्योंकि जब उन्होंने यहां तक कह दिया है कि वह कांग्रेस के अन्दर भाजपा के आडवाणी और जोशी जैसे मार्गदर्शक नहीं बनना चाहते। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह अभी भी अपने को सत्ता के हकदारों में पहले स्थान पर मानकर चल रहे हैं लेकिन अपने इस मन्तव्य को वह सीधा घोषित नहीं कर रहे हैं परन्तु जिस तर्ज पर उन्होंने सुक्खु को हटवाने का अभियान छेड़ रखा है उससे तो पहला अर्थ यही निकलता है। अन्यथा वह पार्टी हित में वरिष्ठतम नेता होने के नाते कांग्रेस में सरकार और संगठन के नेतृत्व के लिये किसी को तो नामजद करते। लेकिन जब वह ऐसा नहीं कर रहें है और साथ ही यह भी कह चुके हैं कि न तो वह स्वयं और न ही उनके परिवार से कोई दूसरा लोकसभा चुनाव लड़ेगा तब इस सब के राजनीतिक मायने बदल जाते हैं। वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा मण्डी लोकसभा क्षेत्र का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार भी यदि यह लोग चुनाव लड़े तो स्वभाविक रूप से मण्डी से ही लड़ना होगा। लेकिन उन्होंने न केवल स्वयं लड़ने से मना किया है बल्कि कांग्र्रेस से जो भी लड़ेगा उसे अभी से ही मकर झण्डू कहकर उसकी हार की बुनियाद रख दी है। कांग्रेस हाईकमान उनके इस कथन को कैसे लेता है यह तो आगे पता चलेगा लेकिन निश्चित तौर पर मण्डी से होने वाले उम्मीदवार को मकरझण्डू कहकर भाजपा का रास्ता बहुत आसान कर दिया है। वीरभद्र जहां सुक्खु को हटाने की मांग कर रहे हैं वहीं पर उनके समर्थकों ने लोकसभा चुनाव वीरभद्र के नेतृत्व में लड़ने की मांग कर दी है। बल्कि शिमला से तो उनके समर्थकों ने सुरेन्द्र गर्ग को टिकट देने की मांग कर दी है। अभी ठियोग और सोलन की बैठकों में भाग लेने से पहले वीरभद्र ने हमीरपूर और कांगडा लोकसभा क्षेत्रों का व्यापक दौरा किया है। कांगड़ा में सुधीर शर्मा और जी एस बाली उम्मीदवार के तौर पर सामने आये हैं लेकिन यहां वीरभद्र ने किसी एक का भी नाम सीधे नहीं लिया है। क्योंकि शायद बाली का सीधा विरोध करने से वह बच रहे हैं। लेकिन हमीरपुर में वह राजेन्द्र राणा के साथ खुलकर खड़े हैं और राणा स्वयं की जगह अपने बेटे को आगे बढ़ा रहे हैं। वीरभद्र इस पर खामोश हैं। कांग्रेस के अन्दर वीरभद्र बनाम सुक्खु विवाद पर तो अब भाजपा ने चुटकीयां लेना शुरू कर दिया है क्योंकि इस विवाद से जहां कांग्र्रेस पक्ष जनता में कमजोर होता जा रहा है वहीं पर इससे भाजपा को अनचाहे ही लाभ मिल रहा है। क्योंकि इस समय मण्डी लोकसभा सीट मुख्यमन्त्री जयराम के लिये प्रतिष्ठा का मामला होगा। विधानसभा चुनावों में मण्डी से कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पायी है। क्योंकि चुनाव के दौरान ही अमित शाह ने यह घोषणा कर दी थी कि जयराम को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जायेगी। परन्तु अब सरकार बनने के बाद जयराम को सबसे पहली समस्या अपने ही चुनाव क्षेत्र से सामने आयी जब एस डी एम कार्यालय को लेकर जंजैहली में लोग आन्दोलन पर उतर आये। आज ही मण्डी की स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि यदि फिर से चुनाव हो जायें तो यह भाजपा पर भारी पडेंगे। यदि मण्डी से वीरभद्र या उनकी पत्नी में से कोई चुनाव लड़ता है तो भाजपा के लिये सीट जीतना कठिन हो जायेगा। ऐसे में वीरभद्र का मण्डी से चुनाव लड़ने से इन्कार करना और होने वाले उम्मीदवार को मकरझण्डू करार देना निश्चित रूप से जयराम और भाजपा की मदद करना बन जाता है।
इस वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि वीरभद्र ऐसा कर क्यों रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस के अन्दर संगठन के चुनाव क्यों रूके थे यह सब जानते हैं। अगले चुनाव कब करवाये जायेंगे यह हाईकमान के आदेशों से तय होगा। तो क्या वीरभद्र का सुक्खु पर हमला बोलना हाईकमान पर ही हमला नहीं बन जाता है। वीरभद्र एक लम्बे समय से आयकर और सी बी आई तथा ई डी के मामले झेल रहे हैं, यह मामले अभी तक खत्म नहीं हुए हैं। ऐसे में कुछ क्षेत्रों में वीरभद्र की सारी कारगुज़ारी को इन मामलों के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है। क्योंकि ई डी के अटेचमैन्ट आदेश में जिस तरह के दस्तावेज सामने आ चुके हैं उनसे मामलों की गंभीरता का स्वतः ही अनुमान लग जाता है।