शिमला/शैल। देश में बढ़ती गारवेज समस्या का सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए 28 मार्च को सभी राज्यों के तीन माह के भीतर इस संद्धर्भ में बनाई गयी योजना से शीर्ष अदालत को अवगत करवाने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों के बाद 12 जुलाई को यह मामला जस्टिस मदन वी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की खण्डपीठ में लगा था। लेकिन इस अवसर पर राज्य सरकार की ओर से गारवेज प्रबन्धन को लेकर न तो कोई योजना अदालत के समक्ष रखी गयी और न ही सरकार की ओर से अदालत में कोई पेश हुआ। अदालत ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की यह अजीब स्थिति है जहां न तो राज्य सरकारें अदालत के निर्देशों की अनुपालना कर रही है और न ही भारत सरकार के वन एवम् पर्यावरण विभाग द्वारा जारी निर्देशों को मान रही हैं। इस टिप्पणी के साथ ही राज्य सरकार पर एक लाख का जुर्माना लगाया गया है। हिमाचल सहित दस राज्यों पर भी यह जुर्माना लगा है। इस तरह का जुर्माना लगाना सीधे प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है क्योंकि 28 मार्च को अदालत ने योजना बनाकर उसे पेश करने के आदेश दिये थे।
प्रदेश उच्च न्यायालय में भी इस दौरान जितने गंभीर मामले आये हैं अदालत ने उन पर सरकार से जवाब तलब किया है उन अधिकांश मामलों में उच्च न्यायालय ने सरकार के शपथ पत्रों पर अप्रसन्नता ही व्यक्त की है। इनमें महत्वपूर्ण मामले वनभूमि अतिक्रमण, अवैध निर्माण, शिमला के सफाई कर्मचारियों की समस्या, शिमला की पेयजल संकट, स्नोडन की पार्किंग समस्या, कसौली में अदालत के आदेशों की अनुपालना और अब शिक्षण संस्थानों में अध्यापकों की कमी का मामला रहे हैं। यह सारे मामले में अदालत में पहुंचे हैं और लगभग सभी मामलों में सरकार पर तथ्यों को छुपाने के आरोप लगे हैं। बहुत सारे मामलों में शैल यह शपथ पत्र जनता के सामने रख भी चुका है। लेकिन अब जब सर्वोच्च न्यायालय सरकार के आचरण का कड़ा संज्ञान लेते हुए जुर्माना लगाने पर विवश हो जाये तो निश्चित रूप से प्रशासन की नीयत और नीति पर सवाल उठेंगे ही।
अभी सरकार को सत्ता में आये केवल छः माह का ही समय हुआ है। इस अवधि में सरकार पर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नही लग पाया है। मंत्री और मुख्यमन्त्री बराबर जनता से संपर्क में जुटे हुए है। लेकिन इस सबके बावजूद सरकार होने का कोई पुख्ता संदेश जनता में नही जा पाया है क्योंकि इस दौरान जो भी बड़े फैंसले सरकार ने लिये हैं उनमें कहीं न कहीं ऐसा कुछ घट गया है जिससे सरकार की छवि पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ा है। विकास के नाम पर सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि एशिया विकास बैंक से 4378 करोड़ के ऋण का वायदा लेना ही रहा है जबकि इस वायदे को पूरा होने के लिये एक लम्बा सफर तय करना है और दूसरी ओर पिछले कुछ दिनों में बहुत सारी अन्तर्राष्ट्रीय वित्तिय संस्थाओं ने विकासशील देशों को ऋण के रूप में भी वित्तिय सहायता देने से हाथ पीछे खींच लिये हैं। जब से डॉलर के मुकाबले में रूपये की कीमत मे कमी बढ़ी है उसी के साथ यह हुआ है इसका प्रभाव देश के हर राज्य पर पडे़गा यह तय है। इसलिये कर्ज को उपलब्धि बनाकर प्रचारित करना कोई बहुत समझदारी नही है क्योंकि कल को यदि यह पूरे ऋण नही मिल पाते हैं तब इसका कोई भी जवाब जनता को स्वीकार्य नही हो पायेगा। फिर जनता के सामने यह भी नही रखा गया है कि पर्यटन और बागवानी जिन दो क्षेत्रों में इस ऋण से निवेश किया जाना है उन क्षेत्रों में ऋण पर ही आधारित पहले से ही कितनी योजनाएं चल रही हैं और इससे प्रदेश के राजस्व में कितनी बढ़ौत्तरी हुई है और आगे कितने समय में कितनी हो पायेगी तथा पिछले ऋण की इससे आये राजस्व से कितनी भरपायी हो पायी है।