बाबा हरदीप की सुक्खु को चुनौति माफी मांगे या मानहानि झेलें

Created on Tuesday, 03 July 2018 05:18
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पार्टी अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खु के बीच चल रहे विवाद का निपटारा अभी हो नही पाया है और इंटक के प्रदेश अध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह ने अब इसमें एक नया अध्याय जोड़ दिया है। बाबा हरदीप ने सुक्खु को चुनौती दी है कि वह एक सप्ताह के भीतर यह प्रमाणित करें कि डा. जी संजीवा रेड्डी इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष नही हैं। उन्हे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अस्वीकार कर दिया है या किसी अदालत ने उन्हे उनके पद से हटा दिया है। यदि सुक्खु ऐसा कोई प्रमाण नही दे पाते हैं तो वह अपने ब्यान पर इंटक के प्रत्येक कार्यकर्ता से क्षमा याचना करें। नही तो एक सप्ताह के बाद सुक्खु के खिलाफ मानहानि का मामला दायर कर दिया जायेगा। स्मरणीय है कि इसी तर्ज का एक मानहानि का मामला कुल्लू की अदालतत में सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष बलदेव ठाकुर की ओर से किया हुआ सुक्खु झेल रहे हैं।
हरदीप बाबा अगस्त 2017 में बिलासपुर में हुए इंटक के चुनावों में तीन वर्ष के लिये अध्यक्ष चुने गय थे। इस चुनाव में इंटक की ओर से राष्ट्रीय संगठन मन्त्री संजय गाबा प्रेक्षक के रूप में हाज़िर थे लेकिन बाबा को जब 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने टिकट नही दिया था तब उन्होंने नालागढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ लिया था। यह चुनाव लड़ने के कारण बाबा को अनुशासनहीनता के तहत कांग्रेस पार्टी से छः वर्ष के लिये निकाल दिया था। लेकिन इस निष्कासन का इंटक की अध्यक्षता से कोई लेना देना नही था। परन्तु अब कुछ दिन पूर्व पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुक्खु के एक ब्यान के माध्यम से यह जानकारी दी गयी कि बाबा की जगह मनोहर लाल उर्फ बबलू पंडित को इंटक का अध्यक्ष बना दिया गया है। यह भी कहा गया कि पंडित को इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुन्दरयाल ने प्रदेश का अध्यक्ष मनोनीत किया है।
सुक्खु के इस दावे को बाबा ने अपनी पूरी टीम के साथ एक पत्रकार वार्ता में चुनौती दी है। बाबा ने स्पष्ट किया कि इंटक एक स्वतन्त्र मजदूर संगठन है और विचार के आधार पर कांग्रेस का समर्थन करता है तथा अपने को इसकी मजदूर ईकाई मानता है लेकिन इंटक का अपना एक अलग संविधान है और उसी से इंटक की हर गतिविधि संचालित होती है। इस संविधान के मुताबिक कांग्रेस के प्रदेश को इंटक में दखल देने को कोई अधिकार नही है। प्रदेश अध्यक्ष को इंटक में अध्यक्ष मनोनीत करने का अधिकार नही है क्योंकि इसके संविधान के मुताबिक इसका हर स्तर का अध्यक्ष चयनित होता है इसमें मनोनयन को कोई प्रावधान नही है। बाबा ने इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. रेड्डी का जुलाई 2018 का वह पत्र भी मीडिया को जारी किया जिसमें बाबा को अगस्त 2017 से तीन वर्ष के लिये इंटक का अध्यक्ष घोषित किया गया है। जुलाई 2018 में जारी हुए इस पत्र से यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि बाबा ही इंटक के अध्यक्ष हैं बाबा के इस दावे को तभी खारिज किया जा सकता है यदि इस पत्र को ही अप्रमाणिक करार दे दिया जाये। दूसरा यदि यह प्रमाणित हो जाये कि डा. रेड्डी इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष नही हैं। तीसरा यदि यह सामने आ जाये कि रेड्डी को किसी अदालत द्वारा अध्यक्ष पद से हटा दिया गया हो और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसका अनुमोदन किया हो। बाबा ने मीडिया के सामने पूरे साक्ष्य रखते हुए यह प्रमाणित कर दिया कि डा. संजीवा रेड्डी ही इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राहूल गांधी ने रेड्डी को ही मान्य करार दिया है। बाबा ने सुक्खु को सात दिन के भीतर यह प्रमाणित करने को कहा है कि सुन्दरयाल को किसने राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया है और वह किस मजदूर संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं। बबलू पंडित को लेकर भी बाबा ने सुक्खु से पूछा है कि वह किस मज़दूर संगठन से  ताल्लुक रखते हैं।
बाबा ने बड़े जोरदार तरीके से मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा है और दावा किया कि प्रदेश में इंटक के साथ 118 मज़दूर संगठन जुड़े हुऐ हैं और 26 और संगठनों की संवद्धता की प्रक्रिया चल रही है। इंटक प्रदेश में मज़दूरों /कामगारों/श्रमिकों का एक अग्रणी संगठन है। पिछले विधानसभा चुनावों में इंटक को एक भी चुनाव टिकट न मिलने के कारण इसको कार्यकर्ताओं ने पूरे मनोयोग के साथ चुनावों में सक्रिय सहयोग नही दिया है। कांग्रेस की हार का यह भी एक ब़डा कारण रहा है। लेकिन अब जब लोकसभा के चुनाव आने वाले हैं और पार्टी में पुराने सभी नाराज़ लोगों को वापिस लाने के प्रयास किये जा रहे है। कांग्रेस को हर कार्यकर्ता की सक्रिय एकजुटता की आवश्यकता है। ऐसे में एक अग्रणी ईकाई के साथ इस तरह के विवाद का उठाया जाना पार्टी की सेहत के लिये नुकसानदेह हो सकता है। यह सही है कि बाबा को पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह का एक कट्टर समर्थक माना जाता है और सुक्खु तथा वीरभद्र में द्वन्द चल रहा है लेकिन क्या इस द्वन्द में पार्टी की ईकाईयों के कार्यकर्ताओं को भी इसका शिकार बना दिया जाना चाहिये। इस संद्धर्भ में सुक्खु के नक्ष को कमजोर माना जा रहा है अब देखना यह है कि एक सप्ताह के भीतर सुक्खु क्या जवाब देते हैं और बाबा वास्तव में ही उनके खिलाफ मानहानि का दावा दायर करते हैं या नहीं।