वीरभद्र, फारखा और श्रीधर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाये-पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने की मांग

Created on Tuesday, 22 May 2018 10:37
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश में भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 का किस तरह से दुरूपयोग हो रहा है और इसको स्वयं सरकार कैसे बढ़ावा दे रही है इसका खुलासा सरकार में ही अतिरिक्त मुख्य सचिव रहे दीपक सानन द्वारा भेजी शिकायत से हो जाता है। दीपक सानन ने अपनी शिकायत में 2013 से 2017 के बीच घटे तीन मामलों का खुलासा करते हुए मन्त्रीमण्डल के सदस्यों जो बैठक में उपस्थित थे, प्रधान सचिव राजस्व, मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव, मुख्य सचिव वीसी फारखा तथा तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत आपराधिक मामला दर्ज करके तुरन्त कारवाई करने की मांग की है। दीपक सानन ने अपनी शिकयत में स्पष्ट कहा है कि यदि सरकार कारवाई नही करेगी तो वह स्वयं इस मामले में जनहित याचिका दायर करेंगे।
शिकायत के मुताबिक सरकार ने बड़ोग के होटल कोरिन, शिमला के तेनजिन अस्पताल और चम्बा के लैण्डलीज़ मामलों में सारे नियमों/कानूनों को अंगूठा दिखाते हुए भारी भ्रष्टाचार किया है। होटल कोरिन को लेकर खुलासा किया है कि पीपी कोरिन और रेणु कोरिन ने 1979/ 1981 में बड़ोग में होटल निर्माण के लिये ज़मीन खरीदने की अनुमति धारा 118 के तहत मांगी थी। यह अनुमति की प्रार्थना 1990 तक अनुतरित रही और इसी बीच कोरिन ने वहां होटल का निर्माण कर लिया। जब धारा 118 के तहत अनुमति मिले बिना ही होटल निर्माण का मामला सामने आया तो डीसी सोलन ने इसका संज्ञान लेकर कारवाई शुरू कर दी। इस पर कोरिन ने 1993 में सब जज सोलन की अदालत में याचिका दायर कर दी। लेकिन इसमें सरकार को पार्टी नही बनाया। अदालत ने कोरिन के हक में फैसला दे दिया। जब सरकार को इसकी जानकारी मिली तो सरकार ने सीनियर सब जज के पास अपील दायर कर दी। इस पर सरकार के हक में फैसला हो गया। इसके बाद कोरिन ने जिला जज से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक दरवाजे खटखटाये लेकिन कहीं सफलता नही मिली।
इसी बीच 2004 में कोरिन ने फिर सरकार से इस खरीद की अनुमति दिये जाने का अनुरोध किया जबकि उस समय प्रदेश उच्च न्यायालय में यह मामला लंबित था और मई 2005 में इनके खिलाफ फैसला आ गया। इस तरह 2004 के अनुरोध पर भी सरकार ने कोई अनुमति नही दी और कोरिन पुनः उच्च न्यायालय चले गये और अदालत ने मई 2007 में सरकार को निर्देश दिये कि वह अपने फैसले से कोरिन को अवगत कराये। सरकार ने इस फैसले की अनुपालना करने की बजाये (क्योंकि डीसी सोलन इस ज़मीन को सरकार में वेस्ट कर चुके थे) एक और अनुरोध पर कारवाई करते हुए मन्त्रीमण्डल ने 10.8.2007 को कोरिन को पिछली तारीख से ही दो लाख के जुर्माने के साथ अनुमति दे दी। जब सरकार के इस फैसले पर डीसी सोलन को अनुपालना के लिये कहा गया तो उन्होने सरकार को जबाव दिया कि यह कानून सम्मत नही हैं 2008 में विधि विभाग ने भी यहां तक कह दिया कि मन्त्रीमण्डल का 2007 का फैसला असंवैधानिक है इस पर मन्त्रीमण्डल ने 2.12.2011 को इस पर पुनःविचार किया और 2007 के फैसले को रद्द कर दिया।
इसके बाद 2013 में पुनः एक नया प्रतिवेदन कोरिन से लिया गया और राजस्व विभाग ने नये सिरे से केस तैयार किया तथा मन्त्रीमण्डल ने 4.9.2013 को इस पर अपनी मोहर लगा दी। इस फैसले की भी जब डीसी सेालन को जानकारी दी गयी तो वह पुनः सरकार के संज्ञान में लाये कि इस ज़मीन को धारा 118 के प्रावधानों के तहत बहुत पहले ही सरकार में लेकर इसका राजस्व ईन्दराज हो चुका है। डीसी की जानकरी के बाद प्रधान सचिव राजस्व ने अपने ही स्तर पर राजस्व ईन्दराज को रिव्यू करने के आदेश कर दिये जबकि वह इसके लिये अधिकृत ही नही था। इस तरह इस पूरे मामले से यह स्पष्ट हो जाता है कि सारे नियमो/ कानूनों को नज़रअन्दाज करके कोरिन को लाभ पहुंचाया गया है। जबकि वह सर्वोच्च न्यायालय तक से राहत पाने में असफल रहा है।
इसी तरह शिमला के कुसुम्पटी स्थित तेनजिन अस्पताल का मामला है इसमें तेनजिन कंपनी ने 7.6.2002 को 471.55 वर्ग मीटर ज़मीन में कंपनी का  दफ्तर और एक आवासीय काॅलोनी बनाने के लिये खरीद की अनुमति मांगी। लेकिन कंपनी ने  दफ्तर और कालोनी बनाने की बजाये अनुमति के बिना ही अस्पताल का निर्माण कर लिया। इसका संज्ञान लेते हुए डीसी शिमला ने धारा 118 के प्रावधानों के तहत कारवाई करते हुए इस ज़मीन को 16.1.2012 को सरकार में वैस्ट कर दिया। इस पर कंपनी ने भूउपयोग बदलने की अनुमति दिये जाने का अनुरोध कर दिया। इस अनुरोध पर निदेशक हैल्थ सेफ्टी एवम् नियमन ने अनिवार्यता प्रमाण पत्र जारी कर दिया लेकिन राजस्व विभाग ने इस पर प्रधान सचिव राजस्व ने अपने ही विभाग की टिप्पणी को नज़रअन्दाज करके मामला मन्त्रीमण्डल की बैठक में विचार के लिये लगा दिया। मन्त्रीमण्डल ने प्रधान सचिव के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाकर पिछली तारीख से अनुमति प्रदान कर दी। यह भूउपयोग बदलने की अनुमति दिया जाना एकदम धारा 118 को एक तरह से अप्रभावी बनाने का प्रयास है।
ऐसे ही चम्बा के डलहौजी में मन्त्रीमण्डल ने स्टांप डयूटी में 3% की छूट देकर कुछ लोगों की लीज़ को नियमित करने का फैसला 17.7.2017 को कर दिया है। इसके वित्तिय और कानूनी पक्षों पर वित्त विभाग और विधि विभाग की राय लिये बिना ही यह फैसला ले लिया गया है। इसमें रूल्ज़ आॅफ विजनैस के प्रावधानों की अनदेख करके कुछ लोगों को लाभ पहुंचाया गया है। इस तरह पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव में इन मामलों की शिकायत करके पूूरे प्रशासन और सरकार को एक ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई की उसकी नीयत और नीति दोनों की परीक्षा होगी।
                                               यह है दीपक सानन का पत्र