शिमला/शैल। प्रदेश के मुख्य सचिव विनित चौधरी ने भी प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के प्रशासनिक सदस्य के पद के लिये आवदेन कर दिया है। उनका आवेदन अन्तिम तिथि को आया है। इस समय ट्रिब्यूनल में प्रशासनिक सदस्य के दो पद खाली चल रहे हैं जिनके लिये आवेदन मांगे गये थे। इसके लिये पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा ने पहले ही आवदेन कर रखा है और अब चौधरी का भी आवदेन आने से दोनों ही मुख्य सचिव रहे इन दोनों ही पदों के लिये प्राथी हो जाते हैं। इन्ही के साथ ही जुलाई 2016 में सेवानिवृत हुए अतिरिक्त मुख्य सविच पी.सी. धीमान भी आवेदक हैं। चौधरी कीे सेवानिवृति इसी वर्ष सितम्बर में है और फारखा की दिसम्बर 2019 में है। सदस्य पद के लिये तीन सदस्यों का चयन मण्डल है जिसमें प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के चेयरमैन और प्रदेश के मुख्य सचिव। अब क्योंकि मुख्य सविच स्वयं ही एक आवेदक हैं इस नाते वह इस चयन मण्डल में नही रहेंगे केवल मुख्य न्यायाधीश और ट्रिब्यूनल के चेयरमैन ही यह चयन करेंगे। माना जा रहा है कि इन दोनों पदो के लिये दोनो मुख्य सचिवों, चौधरी और फारखा का चयन तय है क्योंकि प्रशासनिक सदस्य के लिये इनसे अधिक अनुभव और किसी का नही होगा। क्योंकि चौधरी को लेकर संजीव चतुर्वेदी और प्रशांत भूषण ने जो याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर कर रखी है उसका अभी इस चयन पर प्रत्यक्षतः कोई प्रभाव नही होगा।
विनित चौधरी के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल मेें जाने के साथ ही प्रदेश में अगला मुख्य सचिव आयेगा। यह अगला मुख्य सचिव कौन होगा इसको लेकर प्रदेश के प्रशासनिक हल्कों में अभी से हलचल शुरू हो गयी है। चौधरी 1982 बैच के अधिकारी हैं और उनके बाद 1983 बैच की वरिष्ठता में बारी आती है। प्रदेश में 1983 बैच में श्रीमति उपमा चौधरी सबसेे वरिष्ठ हैं। उनके बाद डा. सिहाग आते हैं। उपमा और सिहाग दोनों की सेवानिवृति दिसम्बर 2019 में है और दोनों इस समय केन्द्र में हैं । 1984 बैच के तरूण श्रीधर, अजय त्यागी और अरविन्द मैहता तीनों ही केन्द्र में है त्यागी तो सैवी के चेयरमैन है। इनके बाद त्यागी 1985 बैच के वी.के.अग्रवाल और संजीव गुप्ता केन्द्र में हैं जबकि श्रीकांत बाल्दी और मनीषा नन्दा प्रदेश में ही हैं। बाल्दी प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त हैं तो मनीषा नन्दा अतिरिक्त मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री हैं। दोनों ही मुख्यमन्त्री के बराबर के विश्वस्त माने जाते हैं।
इस परिदृश्य में प्रदेश के अगले मुख्य सचिव का चयन बहुत रोचक होगा। यदि वरिष्ठता को ही अधिमान देते हुए यह चयन किया जाता है तो उपमा चौधरीे ही मुख्य सचिव होगी। यदि किसी भी कारण से वरियता को अधिमान नहीं मिल पाता है जैसा कि फारखा को मुख्य सचिव बनाते समय था तो फिर यह चयन मुख्यमन्त्री के निकटस्थों में से ही किसी एक पर आकर टिकेगा। प्रदेश का अगला चुनाव 2022 में होगा। इस समय 1983, 1984 और 1985 बैच के अधिकारियों में से सात अधिकारियों की सेवानिवृति 2019 दिसम्बर तक हो जायेगी। केवल तीन अधिकारियों की सेवानिवृति 2020 और 2021 में होगी। इस समय प्रदेश की वित्तिय स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है इस कठिन वित्तिय स्थिति में मुख्यमन्त्री को प्रदेश के अगले प्रशासनिक मुखिया का चयन करते हुए इस वस्तुस्थिति को ध्यान में रखना आवश्यक होगा। क्योंकि प्रदेश के मुख्य सचिव, वित्त सचिव और मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव में सही तालमेल होना आवश्यक है। इससे पूर्व जब मुख्य सचिव के चयन में वीरभद्र के शासनकाल में वरियता को नज़रअन्दाज किया गया था तब इस नज़रअन्दाजी को चौधरी ने ही कैट मे चुनौती दी थी। लेकिन इस याचिका पर अब तक कोई फैसला नही आया है। इस याचिका में नज़रअन्दाजगी के साथ यह भी शिकायत थी कि सरकार ने उन्हें एक तरह से बिना काम के बिठा रखा है। इस पर जब कैट ने उन्हें फारखा के समकक्ष सुविधायें देने का आदेश दिया था तब चौधरी ने अपनी याचिका वापिस ले ली थी। यदि सरकार न बदलती तो शायद चौधरी का मुख्य सचिव बनना फिर संदिग्ध ही रह जाता। क्योंकि मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री के विश्वास का ही व्यक्ति होगा यह सर्वोच्च न्यायालय ने भी कह रखा है।
इस परिदृश्य में मुख्यमन्त्री के लिये अगले सचिव का चयन करना बहुत आसान नही होगा। क्योंकि अभी ही सचिवालय के गलियारों से सड़क तक यह चर्चा शुरू हो चुकी है कि शीर्ष प्रशासन पर मुख्यमन्त्री की पकड़ पूरी नही बन पायी है। अभी जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष के गृह जिला ऊना और पूर्व मुख्यमन्त्री के गृह जिला हमीरपुर से जिलाधीशों को बदला गया है उससे इसी पकड़ का सन्देश बाहर आया है। क्योंकि चार माह के अन्दर ही इन दो जिलों के डी.सी. बदलना प्रशासन के लिये तो एक बड़ा संकेत हो ही जाता है क्योंकि यह भी चर्चा चल पड़ी है कि मुख्यमन्त्री के यहां से फाईलों का निपटारा होने में लम्बा वक्त लग रहा है। अभी चार माह की सरकार को लेकर ऐसी धारणाओं का पनपना कोई अच्छा संकेत नही है।