शिमला/शैल। प्रदेश में बढ़ते अपराध और असामाजिक गतिविधियों पर अपनी नज़र जमाये रखने के लिये 242 संवेदनशील स्थलों पर सीसीटीवी कैमरें और तीन स्पीड कैमरे स्थाापित करने के लिये मई 2013 में डीजीपी कार्यालय में एक योजना तैयार की गयी। इस योजना को सरकार की स्वीकृति के लिये के भेजा गया और अगस्त में ही यह स्वीकृति मिल गयी तथा साथ एक करोड़ के धन का प्रावधान भी कर दिया गया। लेकिन यह खर्च करने से पूर्वे इस संद्धर्भ में आईटी विभाग से पूर्व अनुमति लेने की शर्त साथ लगा दी। इस पर डीजीपी कार्यालय ने आईटी को अपना प्रस्ताव भेज दिया। आईटी ने भी इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान करते हुए यह शर्त लगा दी कि यह खरीद इलैक्ट्रानिक्स विकास निगम से ओपन टैण्डर के माध्यम से की जाये। इसके बाद यह प्रस्ताव इलैक्ट्राॅनिक्स विकास निगम को चला गया।
इलैक्ट्राॅनिक्स विकास निगम ने इस तरह कीे कोई खरीद जून 2013 में कर रखी थी। उस समय जो रेट आये थे और कैमरों की जो तकनीकी गुणवत्ता आयी थी उसी के आधार पर पुलिस की खरीद के लिये संभावित अुनमति प्रारूप तैयार कर दिया और पुलिस विभाग को भेज दिया। पुलिस ने भी उसी के आधार पर 27 कैमरों की खरीद का आर्डर इलैक्ट्राॅनिक्स विकास निगम को जुलाई 2014 में दे दिया। यह कैमर 62.74 लाख के आये और जिस फर्म ने यह सप्लाई दी थी उसी कोे इन्हें लगाने का काम भी दे दिया तथा फर्म ने मार्च 2015 से 2017 अप्रैल के बीच यह कैमरे स्थापित भी कर दिये। लेकिन इन कैमरों की माॅनिटरिंग लोकल इन्स्टाॅलेशन स्थलों पर ही रखी गयी जबकि इन्हे ब्राडबैंड के साथ जोड़ते हुए यह किसी केन्द्रिय स्थान पर होनी चाहिये थी। इसके कारण यह कैमरे वांच्छित परिणाम नही दे पाये हैं और पूरी तरह असफल रहे हैं और इस असफलतता का कारण रहा कि पुलिस मुख्यालय जिसको यह सीसीटीवी कैमरे चाहिये थे उसने इस बारे में यह विचार ही नही किया कि उसे किस गुणवत्ता के चाहिये।
आईटी विभाग ने अपनी अनुमति में कहा था कि इलैक्ट्राॅनिक्स विकास निगम से ओपन टैण्डर के माध्यम सेे यह खरीद की जाये। लेकिन निगम ने नये टैण्डर मंगवाने कीे बजाये फर्म को आर्डर दे दिया। निगम ने भी पुलिस विभाग से यह नही पूछा कि उसे कैस कैमरेे चाहिये और न ही पुलिस ने इस पर कोई ध्यान दिया। फर्म ने कैमरे सप्लाई करके इन्स्टाल भी कर दिये और निगम ने 27 कैमरों का 62.74 लाख का बिल भी पुलिस को थमा दिया और 55.09 लाख का भुगतान भी कर दिया। लेकिन यह सब कुछ हो जाने पर भी इस पर ध्यान नही दिया गया कि जब 62.74 लाख में केवल 27 ही कैमरेे आये हैं तो 242 एक करोड़ में कैसे आ जायेंगे। फिर 62.74 लाख में खरीदे गये 27 कैमरे ऐसे क्या हैं और यदि 27 कैमरों की 62.74 लाख कीमत सही है तो फिर 242 कैमरे एक करोड़ पांच लाख में आ जायेंगे यह अनुमान किसनेे कैसे लगा लिया। इस प्रकरण से यही प्रमाणित होता है कि पुलिस में भी अंधेेर नगरी चैपट राजा का ही आलम चल रहा है।
इसी तरह का कारनामा पुलिस में हैवी क्रेन की खरीद इसमें भारत सरकार से रोड़ ट्रांसपोर्ट विभाग ने राष्ट्रीय उच्च मार्ग दुर्घटना सेवा योजना के तहत प्रदेश सरकार को दस क्रेने उपलब्ध कराई थी। जिससे कि दुर्घटना में क्षतिग्रसत हुए वाहनों को उठाने में सहायता मिले। इनको चलाने व रख-रखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी। इसमें पांच वर्षो तक इन क्रेनो से किये गये कार्यों की रिपोर्ट भारत सरकार को देनी थी। इन क्रेनो की खरीद के लिये जो टैण्डर आमन्त्रित किये गये थे उनमें सप्लायर पर यह शर्त लगाई गयी थी कि वह विभाग के कम से कम पांच लोगों को इन्हे चलाने की ट्रैनिंग देगा और यह ट्रैनिंग निःशुल्क होगी।
इस योजना के तहत डीजीपी ने सितम्बर 2009 में दस हैवी क्रेनों की मांग भारत सरकार को भेजी। जिस पर भारत सरकार ने 91.14 लाख मूल्य की चार हैवी क्रेने प्रदेश को दे दी। प्रदेश में मई से अगस्त 2010 के बीच यह क्रेने पहुंची और विभाग ने इनका कांगडा, मण्डी, शिमला और सोलन चार जिलों को आवंटन कर दिया। मण्डी में इसका कुछ आंशिक उपयोग किया गया लेकन बाकी जिलों में इनका कोई उपयोग नही हो पाया क्योंकि इनको चलाने वाला कोई ट्रेण्ड कर्मचारी ही विभाग के पास नही था और विभाग ने इनके स्पलायर से किसी को ट्रेनिंग दिलाने का प्रयास ही नही किया था। इसके अतिरिक्त यह हैवी क्रेने प्रदेश की तंग और छोटी सड़कों के लिये उपयोगी हो ही नही सकती थी। भारत सरकार ने हैवी क्रेनों के साथ ही छोटी और मध्यस्तर की क्रेन लेने का विकल्प भी प्रदेश को दे रखा था। लेकिन विभाग में इस व्यवहारिकता की ओर किसी ने भी ध्यान देने का प्रयास ही नही किया। इस तरह विभाग की कार्य कुशलता के कारण सरकार के 91.14 लाख का यह निवेश भी अन्ततः शून्य होकर रह गया।
इस तरह सीसीटीवी कैमरों और क्रेन प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस विभाग पब्लिक निवेश के प्रति कितना संवदेनशील रहा है।