शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने अपना पहला बजट भाषण सदन में पढ़ते हुए यह खुलासा सामने रखा कि वीरभद्र के इस शासनकाल में 18787 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज लिया गया जो कि किसी भी पूर्व सरकार के शासनकालों से अधिकत्तम है। जयराम ने यह भी आरोप लगाया कि प्रदेश वित्तिय प्रबन्धन बुरी तरह कुप्रबन्धन में बदल चुका है। मुख्यमन्त्री ने सदन मे आंकड़े रखते हुए कहा कि 2007 में भाजपा सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश का कर्ज 19977 करोड़ था। जो कि 31 दिसम्बर 2012 को पद छोड़ते समय 27598 करोड़ था। परन्तु अब 18 दिसम्बर 2017 को यह कर्ज बढ़कर 46385 करोड़ हो गया है। वीरभद्र सरकार ने 2013 से 2017 के बीच 18787 करोड़ का अतिरिक्त ऋण लिया है। जयराम ने कर्ज की जो तस्वीर सदन में रखी है वह निश्चित तौर पर एक चिन्ता जनक स्थिति है और यह सोचने पर विवश करती है कि कर्ज लेकर विकास कब तक किया जाये और क्या सरकारें सही में विकास कर रही हैं या छोटे-छोटे वर्ग बनाकर तुष्टिकरण की नीति पर चल रही है। क्योंकि तुष्टिकरण और विकास में दिन और रात जैसा अन्तर होता है।
जयराम को जिस तरह की वित्तिय विरासत मिली है उसको सामने रखकर यह स्वभाविक सवाल उठता है कि क्या जयराम इस स्थिति से अपने बजट से बाहर निकल पाये हैं या नही। इसके लिये बजट को समझना होगा। इस सरकार ने 41440 करोड़ के कुल खर्च का बजट पेश किया है। इसमें 11263 करोड़ वेतन, 5893 करोड़ पैशन, 4260 करोड़ ब्याज, 3184 करोड़ ऋणों की वापसी पर, 448 करोड़ अन्य ट्टणों पर और 2741 करोड़ रख -रखाव पर खर्च होंगे। इस तरह 41440 करोड़ में से 27789 करोड़ इन अनुत्पादक मुद्दों पर खर्च होंगे जोकि हर हालत में खर्च करने ही पडेंगे। इसलिये इन खर्चों को राजस्व व्यय कहा जाता है तथा यह नाॅन प्लान में आता है। नाॅन प्लान का खर्च सरकार को अपने ही साधनों से करना पड़ता है। इसके लिये केन्द्र से कोई सहायता नही मिलती है। इस खर्च का विकास कार्यो के साथ कोई संबध नही होता है। इन खर्चों के बाद सरकार के पास विकास कार्यों के लिये 41440 में से केवल 13651 करोड़ बचता है।
इसी परिदृश्य में यह सवाल उठता है कि 41440 करोड़ का खर्च करने के लिये सरकार के पास आय कितनी है। सरकार जहां राजस्व पर खर्च करती है वहीं राजस्व से आय भी होती है। राजस्व आय में टैक्स और नाॅन टैक्स से आय केन्द्रिय करों से आय, केन्द्रिय प्रायोजित स्कीमों के तहत अनुदान से आय शामिल होती है। सरकार की यह कुल राजस्व आय 30400.21 करोड़ है। इसके अतिरिक्त पूंजीगत प्राप्तियां आती हैं और इन पूंजीगत प्राप्तियोें में सकल ऋण और दिये गये ऋणो की वसूलीयां शामिल होती हैं इसमें सरकार 7730.20 करोड़ के ऋण लेगी और 34.55 करोड़ दिये गये ऋणों की वापसी के रूप में प्राप्त होंगे। इस तरह सरकार की कुल पूंजीगत प्राप्तियां 7764.75 करोड़ होगी। राजस्व प्राप्तियां और पूंजीगत प्राप्तियों को मिलाकर सरकार के पास 38164 करोड़ आयेंगे। इस तरह 41440 करोड़ के कुल प्रस्तावित खर्च से कुल प्राप्तियों को निकाल देने के बाद 3276 करोड़ का ऐसा खर्च रह जाता है जिसे पूरा करने के लिये कर्ज लेना पडेगा। गौरतलब है कि पूंजीगत प्राप्तियों में किये गये 7730 करोड़ के ऋण के प्रावधान से यह 3276 करोड़ का ऋण अतिरिक्त ऋण होगा। मूलतः सरकार का कुल खर्च 41440 करोड़ है और आय केवल 30400 करोड़ है। इस तरह करीब 11000 करोड़ सरकार को ऋण से जुटाने होंगे। जिस ऋण का पूंजीगत प्राप्तियों में जिक्र कर दिया जाता है वह तो राज्य की समेकित निधि का हिस्सा बन जाता है लेकिन ऋण पूंजीगत प्राप्तियों से बाहर लिया जाता है। उसे अतिरिक्त ऋण कहा जाता है। इस तरह किये गये खर्च का नियमितीकरण काफी समय बाद हो पाता है और कैग रिपोर्ट में इस खर्च को समेकित निधि से बाहर किया गया खर्च करार देकर इसे संविधान की धारा 205 की उल्लघंना माना जाता है पिछले कई वर्षों से सरकारें संविधान की इस धारा का उल्लंघन करके खर्च करती आ रही है। कैग रिपोर्ट मे हर वर्ष इसका विशेष उल्लेख रहता है।
सरकार 41440 करोड़ कहां खर्च करेगी इसका पूरा उल्लेख बजट दस्तावेज में है। इस दस्तावेज को देखने से पता चलता है कि 2018-19 में निर्माण कार्यों पर केवल 9.22% ही खर्च कर पायेगी।