शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर ने सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों को सबोंधित करते हुए स्पष्ट किया है कि उसकी सरकार भ्रष्टाचार कतई सहन नही करेगी चाहे वह प्रशासनिक स्तर पर हो या राजनीतिक स्तर पर। इसी के साथ अधिकारियों को यह भी निर्देश दिये है कि वह अपने -अपने विभागों में सौ दिन की कार्य योजना तैयार करे और उसे इसी अवधि में पूरा करें। मुख्यमन्त्री ने अधिकारियों को यह भी खुला आमन्त्रण दिया है कि यदि किसी के पास किसी भी संद्धर्भ में कोई नयी योजना हो तो वह कभी भी उस पर उनसे खुली चर्चा कर सकता है। यह एक ऐसा आमन्त्रण है जिससे यह पता चलेगा कि हमारे वरिष्ठ अधिकारियों को समाज और आम आदमी की कितनी समझ है तथा उसके कल्याण के लियेे किस तरह की व्यवहारिक योजनाएं सोच पाते हैं। मुख्यमन्त्री की अधिकारियों सेे यह अपेक्षा कब और कितनी पूरी होती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमन्त्री अभी किसी भी तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रसित नही है।
सरकार ने पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र को पहले ही दिन अपनाकर उसेे सरकार का योजना पत्र घोषित कर दिया है। सरकार की सोच को प्रशासनिक तन्त्र ही कार्यान्वित करता है। इसकेे लिये सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल को भी अंजाम दे दिया है। भाजपा ने सत्ता में आने के लियेे वीरभद्र सरकार पर सबसे बड़ा हमला भ्रष्टाचार को लेकर बोला था। वीरभद्र की संशोधित आयकर रिटर्नो से ही भाजपा को यह मुद्दा मिला था कि वीरभद्र के तो पेड़ो पर भी नोट उगते है। भ्रष्टाचार का यह आरोप वीरभद्र के साथ अन्त तक चिपका रहा है और इसी के चलते पूरी सरकार पर माफियाराज का आरोप लगा। भाजपा ने इसी आधार पर सरकार के खिलाफ समय समय पर आरोप पत्र सौंपे है और इनकी जांच सीबीआई तक से करवाने की मांगे भी कर चुके हैं। अब भाजपा स्वयं सत्ता में है और भ्रष्टाचार कतई सहन न करनेे का संकल्प भी दोहराया है। ऐसे में अब इस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कितना कारगर अमल होता है इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।
सरकार में भ्रष्टाचार तब तक नही पनपता जब तक नेता और अधिकारी में इसके लिये गठजोड़ न हो जाये। स्वभाविक है कि वीरभद्र सरकार पर लगे माफियाराज के आरोपों में इसी प्रशासन के कुछ छोटे बडे अधिकारियों की भी बराबर की भागीदारी रही होगी। विजिलैन्स के पास दर्जनों गंभीर मामलों की शिकायतें आज भी लंबित है जिन पर कारवाई करने का साहस इसी प्रशासन के कारण नही हो सका है। बहुत सारे संस्थान इसी भ्रष्टाचार की भंेट चढ़ गयें है। जिनमें वित्त निगम का नाम सबसे पहले आता है। विकास इसी भ्रष्टाचार के नीचेे दब कर रह जाता है और इसी कारण से विकास के नाम पर सरकारें बहाल नही होती हैं। भ्रष्टाचार का एक आरोप सारे किये धरे पर पानी फेर देता है इस परिदृश्य में जयराम सरकार अपने स्तर पर वस्तुस्थिति का आंकलन कैसे करती है उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। क्योंकि अभी तक जो प्रशासनिक फेरबदल हुआ है वह एकमुश्त न होकर किश्तों में हुआ है। एक एक करके भी अधिकारियों के आदेश हुए हैं। मुख्य सचिव को बदलने में भी समय लगा है। मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव की दौड़ में भी कई नाम सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा बन चुके हैं। वरिष्ठ अधिकारियों में बड़े विभागों के लिये दौड़ रहती ही हैं एक स्वभाविक प्रक्रिया है। लेकिन कई बार इस दौड़ में ऐसा कुछ घट जाता है। जिसका नुकसान आने वाले समय में उठाना पड़ता है। संयोगवश अभी जो फेरबदल हुआ है उसमें भी बहुत कुछ नज़र अन्दाज होने जाने या कर दिये जाने की आशंकाएं अभी से उठने लग पड़ी हैं। यह माना जा रहा है कि इस सरकार पर संघ परिवार की दृष्टि और आर्शीवाद बराबर बना रहेगा क्योंकि संघ के हजारों स्वयं सेवकों ने चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाई है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अकेले संघ के वोटों से ही सरकार नही बनी है। इसलिये संघ और दूसरों में सरकार कितना तालमेल बिठा पाती है उस पर सबकी बराबर निगाहें लग गयी है।