नशे के कैंसर से देश को बचाने का दायित्व किस का ?

Created on Thursday, 26 October 2023 11:55
Written by Shail Samachar

आज हमारे सामने सबसे बड़ी गम्भीर समस्या नशे की समस्या है । नशे का यह कैंसर जिस तीव्रता से समाज में फैल रहा है उसे देखकर, सुनकर आदमी सीहर उठता है और लगता है जिस गति से नशा समाज को विनाश की गर्त में ले जा रहा है उससे तो समाज का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। प्रतिदिन नषे से होने वाली युवाओं की मौतों की खबरें और नशे की बड़ी बड़ी खेपें पकड़े जाने के समाचार डराते हैं। मानव समाज के अस्तित्व को खतरे में डालने वाला स्वयं मानव समाज ही है । आदमी पैसे के लालच में अन्धा होता जा रहा है । एक समय था जब तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी और अधिक से अधिक शराब को नशा माना जाता था ।

आज अफीम, चरस, गांजा, कोकीन, चिट्टा और न जाने कौन कौन से नये नामों के साथ नशा समाज में तवाही मचा रहा है। इस धंधे में जो अन्धाधुंध कमाई हो रही है उसके लालच में लोग इस दलदल में फंसते हैं और जो फंस गये वे फिर निकल नहीं पाते । अधिक से अधिक धन कमाने के लालच में लोग फंसते हैं और वैसे ही बेईमानी का धन कमाने में पुलिस प्रशासन और अन्य एजैंसियां, जिन को इस पर नियन्त्रण करना है, वो भी रिश्वत के चक्कर में आंखें मूंद लेते हैं ।
इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि छोटे बच्चे, विद्यार्थी और युवा नशेड़ी बन जाते हैं । परिवार नियोजन के कारण बहुत सारे परिवारों में एक ही बच्चा, लड़का या लड़की होती है और वह मासूम जब नषे की लत का शिकार हो जाते हैं तो मॉं-बाप की जिन्दगी वैसे ही नरक बन जाती है । यदि युवा पीढ़ी नशेड़ होगी तो न सेना के लिये वीर सैनिक मिलेंगे न पुलिस प्रशासन में स्वस्थ जागरूक कर्मचारी, अधिकारी मिल पायेंगे न ही कृषि का क्षेत्र, न उद्योग का क्षेत्र और न ही सेवाओं का क्षेत्र बचेगा। नशे का यह जहर सारे समाज को खोखला करके समाप्त कर देगा ।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि करें क्या ? इस संकट को दूर करने के लिये कोई बाहर से आकर समाधान नहीं निकालेगा हमें स्वयं प्रत्येक नागरिक को अपना अपने परिवार के प्रति, समाज के प्रति और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाना है । कुछ समय से मैं देख रहा हॅूं कि परिवार की परिभाषा पति, पत्नि और बच्चों तक ही सीमित हो गई है । समाज के अन्य लोगों का सुख दुख हमारा अपना नहीं होता । इसी प्रकार से हमारा सुख दुख समाज के लोगों का नहीं होता । इसी कारण से मनुष्य कष्ट या समस्या के समय सामाजिक प्राणी होते हुये भी अपने आप को अकेला पाता है।
कुछ समय पहले तक किसी का भी बच्चा अगर सिगरेट, बीड़ी या शराब आदि का नशा करते किसी को मिलता था तो प्रत्येक व्यक्ति अपना सामाजिक दायित्व समझते हुये उसे रोकता था । उसके परिवारजनों को सूचना देता था तो एक प्रकार से कुरीतियों पर दुष्प्रभावों पर पारिवारिक नियन्त्रण के साथ साथ सामाजिक नियन्त्रण भी होता था । नशे की बात हो, महिलाओं से छेड़खानी की बात हो या कोई दुर्घटना हो जाए तो आंख बचाकर निकलने में ही भलाई समझी जाती है ।
इसलिये पहले तो सभी अपना पारिवारिक दायित्व निभायें केवल बच्चे पैदा करना ही अपना दायित्व न समझें बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार देना, बच्चों को समय देना और समाज को सुसंस्कृत, सभ्य नागरिक देना भी सभी का दायित्व है। सामाजिक दायित्व को समझते हुये उसके खिलाफ खड़े होने का नैतिक साहस अपने अन्दर पैदा करें और सामाजिक दायित्व को निभायें, गल्त किसी के साथ भी हो रहा है तो उसके खिलाफ आवाज उठायें ।
परिवार और समाज के साथ सरकार पर भी बहुत बड़ा दायित्व आता है इन बुराईयों को कुचलने के लिये सरकार को सख्त कानून बनाने की आवष्यकता है । इसमें वर्तमान कानूनों में अगर किसी संषोधन की आवश्यकता हो तो केन्द्र और प्रदेश की सरकारें मिलकर सख्त कानून बनायें ।
पुलिस प्रशासन के लोग अकसर यह षिकायत करते हैं कि हम तो केस पकड़ते हैं लेकिन अदालत से लोग छूट जाते हैं क्योंकि पकड़ी गई नशे की खेप की मात्रा कम होती है । तो क्या अपराधी इतनी कम मात्रा में लाते हैं या पकड़ने वाले पकड़ी गई खेप की मात्रा कम दिखाते हैं । इसलिये सख्त कानून की आवश्यकता केवल धन के लालच में लगे समाज विरोधी ड्रग तस्करों के लिये नहीं अपितु इसे बनाने वालों, तस्करी करने वालों, नशा फैलाने वालों, प्रयोग करने वालों और पुलिस प्रशासन तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों समेत सब के लिये सख्त कानून की आवश्यकता है । इसके लिये सब को इन सभी समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त सभी लोगों के विरूद्ध सख्त दृष्टिकोण अपनाना होगा और सामान्य कानूनों के तहत मिलने वाले संरक्षण से इन्हें बाहर रखना होगा ।
मुझे याद है 1995 में संसद की ’’पर्यटन और परिवहन’’ की स्थाई समिति के सदस्य के तौर पर सिंगापुर जाने का अवसर मिला । उन दिनों अमेरिका के दो नागरिक नशे की तस्करी के आरोप में सिंगापुर में पकड़े गये थे । अमेरिका के राष्ट्रपति ने उन्हें छुड़ाने के भरसक प्रयास किये लेकिन प्रधानमन्त्री श्री ली ने एक न सुनी और तीस लाख की आवादी वाले सिंगापुर ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश के नशे के दो तस्करों को अपने देश के कानून के अनुसार फांसी पर लटका दिया ।
क्या 140 करोड़ की आबादी वाला नया भारत और यहां के विभिन्न दलों के शासक दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नशे के इस कैंसर से देश को मुक्त करने की इच्छाशक्ति दिखायेंगे और विश्वशक्ति बनने वाला भारत ’’नशा मुक्त’’ भी होगा ? यही हमारी सबसे बड़ी परीक्षा है और पास कर ली तो सबसे बड़ी उपलब्धि भी होगी ।