शिमला/शैल। भाजपा ने प्रदेश में अपनेे चुनाव की शुरूआत ‘हिसाब मांगे हिमाचल’ के नाम से एक पत्र जारी करके की थी। यह पत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह के कांग्रेस दौरे से पहले जारी किया गया था। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. संबित पात्रा की प्रैस वार्ता में जारी किये इस पत्र में वीरभद्र सरकार को माफिया सरकार करार दिया गया था। यह पत्र जारी होने के बाद भाजपा की हर पत्रकार वार्ता में प्रदेश के सुसाशन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का वादा किया जा रहा है। क्योंकि पार्टी ने अपने अभियान की शुरूआत ही ‘हिसाब मांगे हिमाचल’ से की है। लेकिन जब यह पत्र जारी किया गया था उस समय प. सुखराम का परिवार भाजपा में शामिल नही हुआ था। परन्तु आज न केवल यह परिवार भाजपा में शामिल ही हो चुका है बल्कि उनके मन्त्री बेटे अनिल को मण्डी से पार्टी का टिकट भी दे दिया गया है। सुखराम को संचार घोटाले में सजा हो चुकी है और वह सर्वोच्च न्यायालय से बढ़ती उम्र और बीमारी के आधार पर अन्तरिम ज़मानत पर है। अनिल शर्मा पर भाजपा अपने ही आरोप पत्रों में गंभीर आरोप लगा चुकी है।
इस पृष्ठभूमि में जब भाजपा वीरभद्र और उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है तब उसके आरोपों की गंभीरता स्वयं ही सवालों में आ खड़ी होती है। भाजपा जब वीरभद्र और उनके परिवार पर ज़मानत पर होने का आरोप लगाती है तब उससे सुखराम को लेकर सवाल पूछे जाने स्वभाविक है। लेकिन इन सवालों का कोई जवाब भाजपा नही दे पा रही है। बल्कि तब उसके सामने यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि अपने जिन नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं वह सब भी ज़मानत पर है। इनमें सांसद विरेन्द्र कश्यप का केस आॅन कैमरा विधायक राजीव बिन्दल का सोलन नगर पालिका का प्रकरण तथा एचपीसीए को लेकर सांसद अनुराग ठाकुर और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ चल रहे मामले चर्चा में आ जाते हैं। जो स्थिति इन आपराधिक मामलों में भाजपा नेताओं की है, वही स्थिति वीरभद्र और उनके परिवार की उनके मामलों में है। क्योंकि वीरभद्र को अभी तक किसी भी मामलें में कोई सजा नही हुई है। बल्कि अभी ईडी का मामला तो अदालत में पहुचा ही नही है।
इसी परिदृश्य में जब भाजपा भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का दावा करती है तब उसके दावे उसी के द्वारा सौंपे गये आरोप पत्रों पर अपनी सरकार आने पर आज तक कोई कारवाई न करने का कड़वा सच उसके सामने आ खड़ा होता है। भाजपा ने चिट्टो पर भर्ती मामले में दो-दो जांच कमेटीयां बैठाई लेकिन उनकी रिपोर्ट पर प्रदेश उच्च न्यायालय की सख्त टिप्पणीयों के वाबजूद कोई कारवाई नही की गई। जेपी उद्योग को 1990 में दिये गये बसपा प्रौजेक्ट के 92 करोड़ सीएजी की टिप्पणीयों के बावजूद रिकवर नही किये और अन्त में वट्टे खाते में डाले गये। जेपी के ही सीमेन्ट प्लांट में 12 करोड़ का आरोप भाजपा के आरोप पत्र में प्रमुखता से लगाया था लेकिन कोई कारवाई नही हुई। जेपी थर्मल प्लांट मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा बैठायी गयी एसआईटी की रिपोर्ट के बारे में कोई चर्चा नही है। बल्कि आज भाजपा ने चैपाल से विधायक बलवीर वर्मा को पार्टी में शामिल करक टिकट दे देने से एक और सवाल अपनी कथनी और करनी पर खड़ा कर लिया है क्योंकि बलवीर वर्मा को नगर गिनम शिमला का 60 लाख का टैक्स चुकाना है। 90 करोड की संपति के मालिक वर्मा जब नोटिसों के बावजूद टैक्स नही चुका रहे है तो यह सवाल भाजपा पर भी आ जाता है कि वह किस तरह की राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा देने जा रही है।
यह सारे सवाल आज भाजपा के दावो के साथ उठ खड़े हुए है। क्योंकि आज भाजपा के साथ सुखराम परिवार जुड़ गया है बल्कि इसे भाजपा की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन इस उपलब्धि के साथ ही भाजपा भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाने और उसके खिलाफ कारवाई के दावे करने का नैतिक बल खो देती है। बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि सुखराम को भाजपा में शामिल करके पार्टी अचानक ही आक्रामकता से फिसल कर रक्षात्मकता पर आ खड़ी होती है। माना जा रहा है कि भाजपा को सुखराम के ग्रहण ने जिस तरह से ग्रस लिया वह उसके लिये धातक सिद्ध होने जा रहा है।