क्यों मेहरबान है सरकार डा. बवेजा पर?

Created on Tuesday, 26 September 2017 05:52
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कुछ समय पहले तक निदेशक बागवानी और एमडी कृषि विपणन बोर्ड का एक साथ कार्यभार संभाल रहे डा. एचएस बवेजा को अब सरकार ने स्थायी रूप से कृषि बोर्ड कार्यभार सौंप दिया है। डा. बवेजा जब निदेशक बागवानी थे उस समय ठियोग के पास बन रहे एक कोल्ड स्टोर की सब्सिडी के मामलें में काफी विवाद उठा था। कोल्ड स्टोर बना रही कंपनी ने डा. बवेजा के खिलाफ काफी गंभीर आरोप लगाते हुए एक शिकायत भी सरकार को भेजी थी। शिकायत में आरोप था कि सब्सिडी रिलिज करने के लियेे दो करोड़ रूपये की मांग की गयी थी लेकिन सरकार ने इस शिकायत पर कोई कारवाई न करके अब इस तरह से उन्हे राहत प्रदान कर दी है। जबकि ऐसी शिकायतों को तुरन्त विजिलैन्स को भेजकर जांच करवाई जाती है लेकिन बवेजा के मामले में ऐसा नही हुआ।
यही नही डा. बवेजा के खिलाफ सोलन के चंबाघाट में 374 वर्गमीटर सरकारी भूमि का अतिक्रमण करने का मामला भी अभी तक लंबित चल रहा है। इस अक्रिमण की जांच करके ग्रामीण राजस्व अधिकारी वृत बसाल त. सोलन ने 8.10.2015 को रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट में भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 के तहत कारवाई किये जाने का मामला पाया गया था। नियमानुसार इस रिपोर्ट के बाद डा. बवेजा के खिलाफ कन्डक्ट रूल्ज 1964 के तहत कार्यवाही हो जानी चाहिये थी। क्योंकि 14 सितम्बर 2005 को इस संद्धर्भ में सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में नियम 4.। के उल्लेख में स्पष्ट कहा गया है
सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमणों पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए इन अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश दिये हुए हैं। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों पर कारवाई करते हुए कई बागवानों को बागीचों से हाथ धोना पड़ा है। इन्ही निर्देशों की अनुपालना करते हुए जिलाधीश सोलन ने अगस्त 2017 में तहसीलदार सोलन को इनमें तुरन्त प्रभाव से कारवाई करने के निर्देश जारी किये हैं। लेकिन सूत्रों के मुताबिक अभी तक आगे कोई बड़ी कारवाई नही हुई है।
सरकार का डा. बवेजा के प्रति ऐसा नरम रूख क्यों है कि उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई कारवाई होती ही नही है। इस संद्धर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि 2012 में जब डा. बवेजा नौणी विश्वविद्यालय में वरिष्ठ वैज्ञानिक थे तब एक मामले में इनके खिलाफ जांच के आदेश हुए थे और इसके लिये 21.7.12 को सेवानिवृत सैशन जज ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाया गया था। लेकिन डा. बवेजा ने ओपी शर्मा को जांच अधिकारी लगाये जाने का विरोध किया। इस विरोध के बाद ओपी शर्मा के स्थान पर 14.8.2012 को ही सेवानिवृत आईएएस अधिकारी राकेश कौशल को जांच सौंप दी गयी। लेकिन बवेजा ने कौशल को जांच अधिकारी लगाये जाने का भी विरोध किया। जब सरकार ने उनके विरोध को स्वीकार नही किया तो बवेजा ने इस पर 1.9.2012 को राज्यपाल के पास बतौर चांसलर अपील दायर कर दी और राज्यपाल ने इस अपील पर 7.9. 2012 को जांच स्टे कर दी। इस स्टे के बाद अन्ततः 20.3.2013 को राज्यपाल ने डा. बवेजा को इस मामले मे क्लीनचीट दे दी। जबकि इसमें कोई जांच रिपोर्ट आयी ही नही। लेकिन इसी 2013 के दौरान ही बोर्ड में हुई कुछ खरीददारीयों और अन्य मामलों में डा. बवेजा के खिलाफ सरकार के पास शिकायतें आयी जिन पर कोई कारवाई नही हुई जबकि इस शिकायत में सबसे बड़ा आरोप 60 लाख के सीसीटीवी कैमरों की खरीद का रहा है। इनमें अरोप है कि टैण्डर आदि की सारी प्रक्रिया को पूरी तरह पूरी किये बिना ही यह कैमरे संजौली स्थित ग्लोबल नेटवर्क गुरूनानक बिल्ड़िग आईजीएमसी रोड़ से खरीद लिये गये। यह कंपनी मुख्यमन्त्री के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की कही जाती है। और संभवतः इसी संपर्क का लाभ डा. बवेजा आज तक उठा रहे हैं। तभी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण जैसे गंभीर मामले में अभी तक कोई कारवाई नही हो पा रही है।