क्या हिमाचल में आकार ले पायेगी आम आदमी पार्टी

Created on Tuesday, 18 July 2017 11:53
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के आकार ले पाने को लेकर फिर सवाल उठने शुरू हो गये हैं और यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि पार्टी की प्रदेश ईकाई के भंग कर दिये जाने के करीब एक साल बाद पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह ने पिछले सप्ताह शिमला में कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करने के बाद आयोजित की गयी पत्रकार वार्ता में यह घोषणा की कि पार्टी प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ सकती है। इस संबन्ध में रिपोर्ट तैयार करने के लिये एक सात सदस्यों की कमेटी गठित करने की भी जानकारी दी और यह भी दावा किया कि पन्द्रह दिन के भीतर पार्टी के प्रदेश संयोजक की भी घोषणा कर दी जायेगी। लेकिन अब सात सदस्यों की कमेटी के स्थान पर ग्यारह सदस्यों की कमेटी गठित की गयी है। पार्टी के प्रभारी संजय सिंह के शिमला से दिल्ली पहुंचते-पहुंचते ही कमेटी के सदस्यों की संख्या 7 से 11 हो गयी है। प्रदेश के 12 जिलें है और कमेटी में करीब आधे जिलों के ही सदस्य हैं इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जिन कारणों से प्रदेश ईकाई को एक वर्ष पहले भंग कर दिया गया था वह आज भी वैसे ही बने हुए हैं। क्योंकि अभी जो कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ उसके मंच पर लगे वैनर को लेकर इन कार्यकर्ताओं में हाथा-पाई की नौबत तक आ गयी और बैनर को मंच से हटवा दिया गया। यह झगड़ा उन लोगों ने किया जो लम्बे अरसे से अपने को सोशल मीडिया पर प्रदेश का भावी मुख्यमन्त्री प्रचारित करते आ रहे हैं। इन्ही लोगों के कारण अब फिर नयी शुरूआत से पहले ही पार्टी के बनने से पहले ही उसके बिखरने के आसार सामने आ गये हैं। क्योंकि जो 11 सदस्य चुनावों को लेकर अपनी रिपोर्ट देंगे उनमें संभवतः एक भी सदस्य ऐसा नही हो जो यह दावा कर सके कि वह अमुक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडे़गा।
अभी जिस तरह कार्यकर्ता सम्मेलन में झगडा हुआ है और जो कमेटी सामने आयी है उससे यह तय है कि पार्टी को प्रदेश संयोजक तय करना आसान नही होगा। आप ने 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की चारों सीटों पर उम्मीदवार उतार कर शुरूआत की थी लेकिन चुनावों के दौरान भी संगठन का कोई स्वरूप नही बन पाया। चुनावों कें बाद स्थिति यह बनी कि जिन चार लोगों ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था उनमें से दो ने तभी पार्टी से किनारा कर लिया। इसके बाद जो दो बचे उनमें से एक को संयोजक बनाया गया। उसने संगठन के लिये जो भी किया उसके कारण प्रदेश ईकाई को भंग करना पड़ा और आज वह संयोजक भापजा में घर वापसी का आवेदक है कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है। निष्पक्ष विश्लेष्कों का मानना है कि आज पार्टी में कार्यकर्ताओं के नाम पर जो भी लोग बचे हैं उनमें से जमीन पर काम करने वाला शायद एक प्रतिशत भी पूरा न हो और बाकी सारे सोशल मीडिया के नेता हैं। आज यह सोशल मीडिया के हीरो पार्टी के सर्वेसर्वा बनना चाह रहे हैं लेकिन इनमें से एक भी चुनाव लड़ने की स्थिति में नही है।
आम आदमी पार्टी से देश की जनता को उम्मीद बंधी थी कि पार्टी कांग्रेस और भाजपा का एक कारगर विकल्प बन पायेगी। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों से जनता उत्साहित हुई थी लेकिन उसके बाद जो कुछ दिल्ली में घटता गया और उसका प्रभाव परिणाम नगर निगम चुनावों में सामने आया उससे आम आदमी का विश्वास बुरी तरह टूटा है। उसके साथ ही पंजाब विधान सभा चुनावों में जिस तरह से प्रदेश नेतृत्व को लेकर विवाद उठा उसका परिणाम चुनावों में सामने आया है। बल्कि अभी भी पंजाब विधानसभा में ‘आप’ के विधायक दल के नेतृत्व को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है वह पुराने ही विवाद का प्रतिफल है। इसलिये आज ‘आप’ के केन्द्रिय नेतृत्व को हर प्रदेश की व्यहारिक स्थिति को सामने रखकर कदम उठाने होंगे। पार्टी को किन कारणों से यहां की ईकाई भंग करनी पड़ी कौन लोग उसके लिये कितने जिम्मेदार रहे है और आज उन सबकी स्थिति क्या है इसको लेकर जब तक केन्द्रिय नेतृत्व स्पष्ट नही हो जाता है तब तक किसी भी प्रयास का कोई परिणाम सकारात्मक नही रहेगा यह तय है।
इस समय विधान सभा चुनावों में हिस्सा लेना चुनाव आयोग के नियमों के कारण हो सकता है पार्टी की आवश्यकता हो क्योंकि राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता बनाये रखने के लिये यह अनिवार्य हो सकता है। परन्तु इसके लिये यदि एक बार फिर चयन करने में पार्टी से चूक हो जाती है तो उसका नुकसान न केवल पार्टी को ही होगा बल्कि प्रदेश को भी होगा। आज प्रदेश को कांग्रेस और भाजपा का विकल्प चाहिये क्योंकि प्रदेश गहरे आर्थिक और राजनीतिक संकट की ओर बढ़ता जा रहा है। लेकिन इसमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह दोनों बड़े दल आसानी से यह विकल्प नही बनने देंगे। इस समय पार्टी को प्रदेश में संठगन खड़ा करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका नेतृत्व इतना सशक्त होना चाहिए कि वह कांग्रेस और भाजपा के नेता और नीतियों पर एक साथ प्रहार कर सके। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्रदेश को लेकर उसके अपने पास कितना कारगार रोड मैप है। आप की जो टीम अब तक सामने आयी है उस पर अभी आम आदमी का भरोसा नही बन पा रहा है। फिर ‘आप’ का केन्द्र में भाजपा से जो टकराव चल रहा है उसको भी ध्यान में रखकर चलना होगा। इसके लिये प्रदेश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की पूरी समीक्षा और उसके लिये कांग्रेस और भाजपा नेतृत्व कहां-कहां और कितना जिम्मेदार रहा है इसका पूरा लेखा जोखा हर समय तैयार रखना होगा।