14 अगस्त तक करना होगा 1950 से लेकर अब तक के भू-लेखों का डिजिटलाईजेशन

Created on Saturday, 01 July 2017 06:42
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल।  मोदी सरकार ने नोटबंदी से पहले बेनामी संपत्तियों की स्वेच्छा से घोषणा करने के लिये लोगों को करीब एक वर्ष का समय दिया था। इस घोषणा की समय सीमा समाप्त होने के बाद नोटबंदी के तहत पांच सौ और एक हजार के पुराने नोटों का चलन बंद कर दिया था। सरकार के यह दानों फैसले काले धन के खिलाफ बड़ी कारवाई करार दिये गये थे। क्योंकि यह माना जाता है कि काले धन का निवेश व्यक्ति सामान्यतः चल/अचल संपत्ति खरीदने में करता है। यदि संपत्ति में यह निवेश नहीं है तो फिर पांच सौ और एक हजार के नोटों में ही इसका संग्रह करेगा। लेकिन बेनामी संपत्ति की घोषणा और उसके बाद नोटबंदी के आने से भी काले धन के संद्धर्भ में कोई विशेष परिणाम सामने नही आये हैं। इसलिये सारी भू-संपत्तियों की डिजिटलाईजेशन किये जाने और उसको आधार नम्बर से जोड़ने का फैसला लिया गया है।
15 जून को देश के सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों/अतिरिक्त मुख्य सचिवों को सारे भू-अभिलेखों को 14 अगस्त तक डिजिटलाईज़ और आधार से लिंक करने के आदेश जारी किये गये है। क्योंकि हर भू -संपत्ति का राजस्व में रिकार्ड उपलब्ध रहता है। हर भू-संपत्ति का राजस्व रिकार्ड में कोई न कोई मालिक होना आवश्यक है। जिस संपत्ति का कोई मालिक नहीं है उसकी मालिक सरकार होती है। भू-संपत्ति अर्जित भी व्यक्ति दो ही प्रकार से करता है, या तो खरीद कर उसका मालिक बनता है या फिर पुश्तैनी रूप से उसे मिलती है। ऐसे में जो संपत्ति व्यक्ति के राजस्व रिकार्ड में होगी उसी का उसे मालिक माना जायेगा। इस डिजिटलाईजेशन के लिये 1950 को आधार वर्ष माना गया है क्योंकि 1947 में देश की आजादी और बंटवारे के बाद सारी स्थितियां सामान्य हो गयी थी और 26 जनवरी 1950 को ही संविधान लागू हुआ था। इसलिये व्यक्ति को उसकी वंश परम्परा से कब क्या मिला और उसने अपने स्तर पर कब क्या खरीदा इसका रिकार्ड राजस्व अभिलेख में होना आवश्यक है।
केन्द्र सरकार के आदेश के मुताबिक 1950 से लेकर अब तक सारे भू-अभिलेख म्यूटेशन और खरीद- बेच जिसमें कृषि योग्य और गैर कृषि योग्य, मकान, प्लाॅट व्यक्तिगत या सोसायटी के माध्यम से हासिल किया गया है सबका डिजिटलाईजेशन 14 अगस्त तक पूरा किया जाता है। जो संपत्तियां आधार नम्बर से लिंक नहीं होगी उन्हे बेनामी संपत्ति मानकर उसके खिलाफ आयकर अधिनियम 1861 की धारा दो तथा बेनामी संपत्ति संशोधित अधिनियम 2016 के तहत कारवाई की जीयेगी। केन्द्र सरकार ने इस काम को पूरा करने के लिये केवल दो माह का समय दिया है। ऐसे में स्पष्ट है कि हर पटवारखाने को कम्प्यूटर से लैस करना होगा। हर पटवारी को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना होगा। सारे भू-रिकार्ड को 1950 से लेकर अब तक उसकी डाटा एंट्री करनी होगी। क्या सरकार इस काम को दो माह के समय में पूरा कर पायेगी? क्योंकि प्रदेश के कई पटवारखानों में पटवारी तैनात ही नहीं है। कई जगह एक-एक पटवारी को दो-दो पटवारखानांे का काम सौंपा हुआ है।
इस समय विभाग में पटवारीयों के 2565 पद सृजित है और 2338 पटवार वृत हैं जिनमें 397 कानूनगो सेवायें दे रहे हैं। विभाग में करीब 2400 पटवारी काम कर रहे हैं। सरकार ने भू -अभिलेखों को डिजिटल करने का काम पिछले एक दशक से शुरू कर रखा है। पटवारीयों को इस काम को अन्जाम देने के लिये लैपटाॅप भी उपलब्ध करवा रखे हैं। लेकिन अभी तक एक दशक में करीब वर्षों के रिकार्ड को ही डिजिटल किया जा सका है और इसको भी आधार से लिंक नही किया गया है। अब केन्द्र सरकार ने 1950 से लेकर अब तक के रिकार्ड डिजिटलाईज़ करके आधार से लिंक करने के आदेश किये हैं। केन्द्र का यह आदेश अभी तक निदेशक लैण्ड रिकार्ड तक नही पहुंचा है। लेकिन इसमें विभाग के सामने संभवतः कई कठिनाईयां आ सकती है कि 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद पंजाब के जो भाग हिमाचल में मिले हैं जिनमें वर्तमान कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, कुल्लु और शिमला के कुछ भाग आते हैं इनका 1966 से पहले का लैण्ड रिकार्ड आज यहां उपलब्ध होगा या नहीं। यदि यह रिकार्ड उपलब्ध न हुआ तो क्या इसे पंजाब से हासिल किया जायेगा। विभाग ने संभवतः इस पक्ष पर अभी तक विचार ही नहीं किया है। ऐसे में भारत सरकार के आदेश की 14 अगस्त तक पूरी तरह से अनुपालना हो पाना संभव नहीं लग रहा है।