वीरभद्र से त्यागपत्र मांगना बना भाजपा नेतृत्व की मजबूरी

Created on Tuesday, 13 June 2017 15:10
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा के हर छोटे बडे़ नेता को मुख्यमन्त्री वीरभद्र से त्यागपत्र मागंना क्या राजनीतिक मजबूरी बन गया है यह सवाल अब चर्चा में आने लगा है। क्योंकि वीरभद्र के खिलाफ केन्द्र की तीन ऐजैन्सीयों  आयकर सीबीआई और ईडी में मामले चल रहे हैं। इनमे सीबीआई के आय से अधिक संपत्ति मामले में जांच पूरी होकर चालान भीअदालत में पहुंच चुका है। इस मामले में वीरभद्र सहित सभी नामजद़ अभियुक्तों को अदालत से जमानत मिल चुकी है। इस मामले कोअन्तिम निर्णय तक पहुचने के लिये ट्रायल कोर्ट से सर्वोच्च न्यायालय तक का लम्बा सफर तय करना पडे़गा यह तय है। ऐसे में इस मामले का अभी कोई प्रतिकूल राजनीतिक प्रभाव पड़ना संभव नहीं है।
सीबीआई के बाद ईडी में मनीलाॅडरिंग का मामला चल रहा है। इस मामले में ईडी चल /अचल संपत्ति को लेकर दो अटैचमैन्ट आदेश जारी कर चुकी है। पहला आदेश जारी होने के बाद ईडी ने जुलाई 2016 में वीरभद्र के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान को गिरफ्तार कर लिया था। आनन्द की जमानत याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय भी रद्द कर चुका है। उसके खिलाफ चालान भी अदालत में पहुंच चुका और अदालत ने उसका संज्ञान लेने के बाद अगली प्रक्रिया भी शुरू कर दी है लेकिन दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी होने के बाद किसी की भी गिरफ्तारी नही हुई है। इस मामले में नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर किसी अदालत से कोई रोक नही है फिर भी अभी तक किसी की गिरफ्रतारी हुई नही है। अब तक किसी अन्य की गिरफ्तारी न हो पाने और आनन्द की जमानत उच्च न्यायालय द्वारा भी अस्वीकार कर दिये जाने से इस मामले को लेकर ईडी और केन्द्र सरकार की नीयत तथा नीति पर ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि ईडी सीधे जेटली के वित्तमन्त्रालय के अधीन आती है।
इन मामलों से हटकर अब सीबीआई ने प्रदेश के उद्योग विभाग के बद्दी स्थित संयुक्त निदेशक तिलकराज शर्मा को एक उद्योगपति अशोक राणा के साथ पांच लाख की रिश्वत लेते चण्डीगढ में रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। चार दिन के रिमाण्ड के बाद इन लोगों को चौदह दिन की ज्यूडिश्यिल कस्टडी में भेज दिया गया है। इस मामले में भी यह आया है कि रिश्वत का पैसा मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी को जाना था लेकिन इस मामले में भी अभी तक कोई और गिरफ्तारी नही हुई है। जबकि यह चर्चा आम हो चुकी है कि चार दिन के रिमाण्ड में तिलक राज ने मुख्यमन्त्री के ही कार्यालय के दो अधिकारियों का नाम लिया है जिनको रिश्वत का पैसा जाता था। यह भी चर्चा है कि उद्योगमंन्त्री और उनके अधिकारियों का नाम भी सामने आया है यह भी चर्चा है कि इसमें कुछ पत्रकारों के भी नाम सामने आये हैं। जिनके माध्यम से ऊपर तक लेन-देन होता था। चार महिलाओं के नाम भी चर्चा में हैं। तिलक राज प्रकरण के सामने आते ही भाजपा नेताओं ने भी इस पर काफी ब्यानबाजी शुरू की थी जो अब बन्द है। चर्चा है कि तिलक राज के साथ गिरफ्तार हुए अशोक राणा की सास सत्या राणा ऊना की एक प्रमुख भाजपा नेत्री  हैं और उनका मायका रोहडू में है। रोहडू के नाते उनके संबध मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह से भी बहुत अच्छे हैं। इसी के साथ यह भी चर्चा है कि तिलक राज की भाजपा नेतृत्व के साथ भी बराबर की नजदीकीयां हैं। इस मामलें में भी और कोई गिरफ्तारी नही हुई है। साथ ही भाजपा भी इस प्रकरण पर अब चुप है।
ऐसे में आज वीरभद्र के मामलों की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी कि एचपीसीए और अनुराग-धूमल के मामलों की है। बल्कि केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा के खिलाफ भी ऐम्ज का मामला एक लम्बे अरसे से चर्चा में चल रहा है। संजीव चतुर्वेदी ने इस ऐम्ज प्रकरण में अदालत तक में नड्डा की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठाये हैं इन चर्चाओं में अब ऐम्ज की जमीन का हजारों करोड़ का मामला भी जुड़ गया है। इस जमीन मामले को संघ परिवार के ही एक सहयोगी प्रकाशन ने दस्तावेजों सहित पाठकों के सामने रखा है। फिर जब नड्डा प्रदेश वन मन्त्री थे तब जेपी उद्योग ने कैट प्लान में आभूषणों की खरीद दिखाकर जो कारनामा किया था विभाग में आज भी उसकी चर्चा सुनी जा सकती है। उस दौरान वन विभाग द्वारा विभिन्न एनजीओ को जो करोड़ो का अनुदान दिया गया था उसमें अधिकांश के तो नाम पते भी संदिग्ध रहे हैं। ऐसे मे भ्रष्टाचार आज एक ऐसा विषय बन गया है जिस पर कड़ा स्टैण्ड दिखाना और विरोधी से त्यागपत्र मांगना महज एक राजनीतिक संस्कृति मात्र रह गया है जिसके प्रति कभी कोई गंभीर नही होता। इस परिदृश्य में भाजपा को वीरभद्र के मामलों से अब राजनीतिक लाभ मिलने की बजाये नुकसान होने की ज्यादा संभावना हो गयी है।