क्या यह मामला भी ईडी तक पहुंचेगा
शिमला/शैल। केन्द्र की जांच ऐजैन्सी सीबीआई ने 30 मई को उद्योग विभाग के बद्दी स्थित संयुक्त निदेशक तिलक राज शर्मा और एक उद्योगपति अशोक राणा को बद्दी के ही एक फार्मा उद्योग के सीए चन्द्रशेखर की शिकायत पर चण्डीगढ़ में 5 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। यह एक संयोग है कि 29 तारीख को वीरभद्र सिंह एवं अन्य को उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दिल्ली की अदालत में डाले गये आय से अधिक संपत्ति के मामले में जमानत मिली है। इसी दिन चण्डीगढ में सीबीआई तिलक राज के संद्धर्भ में आयी शिकायत की वैरीफिकेशन में तिलक राज, अशोक राणा और शिकायतकर्ता की रिश्वत के संद्धर्भ में हुई बातचीत की विडियो रिकार्डिंग करती है। जिसमें यह भी आता है कि रिश्वत में लिया जाने वाला पैसा दिल्ली में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के ओएसडी रघुवंशी को दिया जाना है। रघुवंशी का नाम आने से ही इस पूरे प्रकरण का परिदृश्य ही बदल गया है।
सामान्यतः केन्द्र की सीबीआई को राज्य से जुड़े मामलों में तब तक सीधे जांच का अधिकार नही है जब तक की राज्य सरकार ऐसी जांच का स्वयं आग्रह न करे या फिर कोई अदालत ऐसी जांच के आदेश न दे। तिलक राज के मामले में यह दोनों ही स्थितियां नही है। सिर्फ इतना है कि तिलक राज का आवास चण्डीगढ़ में है। शिकायतकर्ता चन्द्रशेखर पंचकूला का रहने वाला है। रिश्वत की अदायगी चण्डीगढ़ में होती है, रिश्वत मांगे जाने और कब कैसे दी जानी है इस संद्धर्भ में हुई सारी बात चण्डीगढ़ के ही एक सैलून में होती है। वहीं इसकी रिकार्डिंग हो जाती है। बातचीत के अनुसार चण्डीगढ़ में ही अदायगी होती है और सारे लोग रंगे हाथो पकड़े जाते है सबकुछ चण्ड़ीगढ़ में ही घटता है। ऐसे में ऐसे ट्रैप की जानकारी हिमाचल पुलिस को पूर्व में दिये जाने का समय ही नहीं था और चण्डी़गढ़ केन्द्र शासित होने के कारण ऐसे मामलों में सीधे सीबीआई का क्षेत्राधिकार बन जाता है। ऐसे में यदि यह प्रकरण सिर्फ तिलक राज के रिश्वत लिये जाने तक ही सीमित रहता है तो इसे अंजाम तक पहुंचाने में सीबीआई को कोई दिक्कत नही आयेगी। यदि रिश्वत से आगे निकल कर यह मामला आय से अधिक संपत्ति तक का बन जाता है और इसमें अन्य लोगों की संलिप्तता भी सामने आती है तब इसी मामले की ईडी तक भी पहुंचने की संभावना बन जायेगी यह तय है।
इस मामलें में आयी शिकायत और उस पर सीबीआई द्वारा की गयी वैरीफिकेशन पर नजर डालने से यह सामने आता है कि शिकायतकर्ता ने फार्मा उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में इस संयुक्त निदेशक के कार्यालय में 28 मार्च को 50 लाख की सब्सिडि लेने के लिये दस्तावेज सौंपे थे। इसके बाद वह कई बार इस कार्यालय में आता है और तिलक राज उसे अशोक राणा को मिलने के लिये कहता है जो उसे रिश्वत के बारे मे जानकारी देगा। फिर 22 मई को सब्सिडि के संद्धर्भ में विभाग द्वारा 19 मई को भेजा नोटिस उसे मिलता है। शिकायतकर्ता चन्द्र शेखर 19 मई को फोन पर तिलक राज से बात करता है और इसकी रिकार्डिंग कर लेता है लेकिन 22 मई को हुई बातचीत को वह रिकार्ड नही कर पाता है। 19 मई को रिकार्ड की गयी बातचीत में यह दर्ज नही है कि रिश्वत का पैसा रघुवंशीे को जाना है। 27 मई को रिश्वत मांगे जाने की शिकायत सीए चन्द्रशेखर सीबीआई से करते है, और प्रमाण के लिये 19 मई की रिकार्डिंग सौंपते हैं। इसके बाद सीबीआई स्वयं रिकार्ड़िंग की व्यवस्था करती है। यह रिकार्डिंग 28 और 29 मई को होती है इस रिकार्डिंग में एक बार यह जिक्र आता है कि यह पैसा रघुवंशी को जाना है। इस रिकार्डिंग के बाद 29 मई को सीबीआई ने विधिवत् मामला दर्ज कर लिया और 30 मई को रिश्वत कांड घट जाता है तथा रंगे हाथों गिरफ्तारी हो जाती है। इस प्रकरण में तिलक राज शर्मा और अशोक राणा के अतिरिक्त कोई और गिरफ्तारी नहीं हुई है। इन लोगों को चार दिन के रिमांड के बाद अब न्याययिक हिरासत में भेज दिया गया है।
अब यह सवाल उभरता है कि क्या सीबीआई ने इस रिश्वत कांड पर सिर्फ इसी आधार पर हाथ डाल दिया कि उसके पास शिकायत आई और उसने वैरीफाई करके इस पर अगली कारवाई कर दी। यदि सिर्फ इतना भर ही है तो यह प्रकरण अपने में पूर्ण हो गया है और इसका चालान अदालत में पहुंच जाना चाहिये। यदि इस प्रकरण की जांच में यह जुड़ता है कि इस तरह की रिश्वतखोरी कब से चल रही है और इसमें किस तरह के लोग शामिल रहे हैं, किस तरह के कितने कामों में यह रिश्वतखोरी हुई है, रिश्वत से हुई आय को किसने कहां और कैसे निवेशित किया है, ऐसे निवेश से कितनो के पास आय से अधिक संपत्ति मौजूद है, इस प्रकरण में रिमांड के दौरान इन लोगों ने क्या-क्या खुलासे किये है और उन पर कितना भरोसा किया जा सकता है तो इसके लिये यह जांच लम्बा समय लेगी। तब इसमें निश्चित रूप से कुछ और लोगों की गिरफ्तारी अवश्य होगी। यदि जांच में निश्चित रूप से यह स्थाापित हो जाता है कि वास्तव में ही यह पैसा रघुवंशी तक जाना था तो उस सूरत मे देर सवेर इसके छींटे मुख्यमंत्री के परिवार तक पहुंच जायेंगें किसी के भी खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला स्थापित होते ही ईडी भी इसका संज्ञान लेकर अपने स्तर पर कारवाई शुरू कर सकती है क्योंकि ऐसे मामलों में ईडी को सूचना देना अनिवार्य हो जाता है।
यह संभावना इसलिये उभर रही है क्योंकि इसमें मुख्यमन्त्री के दिल्ली स्थित ओएसडी रघुवंशी का नाम अशोक राणा, तिलक राज और चन्द्र शेखर की रिकार्डि़ंग में एक बार आ जाता है। फिर 23 मार्च 2016 के अटैचमैन्ट के बाद मुख्यमन्त्री परिवार के कुछ खाते सील हो चुके हैं ऐसे में फिर लाखों का खर्च किन साधनों से हो रहा है। इसके लिये इनसे परोक्ष/अपरोक्ष में जुडे़ लोगों पर नजर रखी जा रही थी, बल्कि ईडी ने बहुत अरसा पहले ही दो मन्त्रीयों को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली थी। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक तिलक राज प्रकरण भी इसी रिपोर्ट का प्रमाण है। चण्डीगढ़ में एक मित्तल से भी ईडी ने कुछ जानकारीयां हासिल कर रखी है। मित्तल के एक समय मुख्यमन्त्री के साथ जुडे एक अधिकारी से गहरे रिश्ते रहे हैं। अब सीबीआई रघुवंशी और सुरेश पठानिया की काॅल डिटेलज का रिकार्ड खंगाल रही है। इस रिकार्ड की पड़ताल होने के बाद मामले के आगे बढ़ने की संभावना है। फिर ईडी से गिरफ्तारी की संभावना को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका 856/16 अभी तक लंबित चल रही है। इस संद्धर्भ में यदि इन सारी कड़ियों को एक साथ मिलाकर देखा जाये तो अभी संकट टला नही है और इसमें कई लोग लपेटे में आ सकते है क्योंकि ईडी ने दूसरे अटैचमैन्ट आदेश के साथ जो एनैक्सचर लगाये हैं वह बहुत गंभीर है उनके चर्चा में आते ही कई नये प्रकरण इसके साथ जुड़ जायेंगे यह तय है।